दाम्पत्य के रिश्ते चन्द्रमा के चाहने से चलते हैं या उन्हें चाहिए विश्वास और स्नेह की कसौटी। खट्टी-मीठी यादों, बहसों एवं लड़ाइयों से सजे रिश्ते महज करवा चौथ के व्रत से संवर जाएं ये मुमकिन नहीं है।
शादी के बाद जिंदगी की असली कहानी शुरू होती है, पहले कुछ वर्ष सपनों से बीत जाने के बाद गृहस्थी का मजा शुरू होता है, जिसमे बहस, लड़ाई, रूठना-मनाना, अपने-अपने अहंकारों के खोलो से बाहर आते हुए व्यक्तित्व, बच्चों का लालन पालन, गृहस्थी का सफल संचालन इन्हीं सूत्रों को पिरो कर माला का रूप धारण करता है।
पति-पत्नी का रिश्ता वन वे ट्रैफिक रोड है। यहां से दूसरे रास्ते पर जाने की कोई गुंजाइश नहीं बचती है। उसी रास्ते पर या तो समन्वय से सरपट गाड़ी दौड़ाओ या अहंकारों के स्पीड ब्रेकर लगाकर अटक-अटक कर चलो।
रिश्तों में असहमति या मत भिन्नता जरूरी है। दो व्यक्तित्व कभी एक जैसी सोच नहीं रख सकते लेकिन 'सिर्फ मेरी ही सुनी जाए' से या तो टकराव की स्थिति बनेगी या फिर दास गुलामी प्रथा का अनुसरण होगा। कही गई बातों को गलत सन्दर्भों में पकड़ने से गलतफहमी उत्पन्न होती हैं, जो परिस्थितियों को गंभीर बनाती हैं एवं इसका एकमात्र उपाय ठंडे दिमाग से बातचीत कर गलतफहमियों को दूर करना है।
गृहस्थी की धुरी परिवार का बजट होता है। अगर धुरी गड़बड़ाई तो गाड़ी का डोलना स्वाभाविक है। जिंदगी में शौक उतने ही पालो जितना आपका बजट हो दूसरों के शौक को अगर आपने अपने शौक बनाए तो 'आमदनी अट्ठनी खर्च पांच रुपैया' की नौबत आने पर गृहस्थी की नाव प्यार के बावजूद डूबना स्वाभाविक है।
बजट के आलावा पड़ोसियों से संबंध, रिश्तेदारों से रिश्ते, सामाजिक सरोकारों का निर्वहन, नैसर्गिक एवं नागरिक कर्तव्यों का पालन इन सबका अपनी गृहस्थी में संतुलित समावेश सुखी जीवन की कुंजी बन जाती है। समन्वित हितों को प्राथमिकता, दूसरे की रुचियों को अपने जीवन में जगह देना, व्यक्तिगत स्वार्थ को परिवार के हितों में बदलना कठिन क्षणों में एक-दूसरे को जोड़े रखता है।
बच्चों की शिक्षा एवं संस्कार सर्वोपरि हैं। बच्चों की शिक्षा संस्कारित तरीके से हो इसके लिए त्याग और समर्पण जरूरी है, वरना दहन और सम्मान दोनों का कोई मतलब नहीं बचता है। और अंत में एक-दूसरे का विश्वास, प्रोत्साहन ओर छोटे-छोटे त्याग और समर्पण मन में साहस एवं उत्साह भर देते हैं। तो क्यों न इस करवा चौथ को अपनी गृहस्थी संभालने के संकल्प लें।