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कश्मीरी अलगाववादियों पर खर्च होते सालाना करोड़ रुपए

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डॉ. शिबन कृष्ण रैणा

सुना है कश्मीर में अलगाववादियों को सरकार सुरक्षा प्रदान करती है। यानी जो देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्त हैं, उन्हें सरकार की तरफ से प्रश्रय मिला हुआ है। क्या यह कोई चाणक्य या विदुर नीति है या फिर कोई मजबूरी? विडंबना देखिए, एक तरफ हम इन अलगाववादियों की बदज़ुबानी भी सह रहे हैं और दूसरी तरफ सरकारी खर्चे से इन देश-दुश्मनों को सुरक्षा भी मुहैया करा रहे हैं। विश्व में शायद ही किसी देश में ऐसा होता हो!
एक सूक्ति है: 'दुर्जन की वंदना पहले और सज्ज्न की तदनंतर।' कश्मीर में जो हो रहा है उसको यदि इस सूक्ति के निहितार्थ के संदर्भ में देखें तो सहसा इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि अलगाववादियों को सुरक्षा देने के पीछे मन्तव्य यह है कि 'आप अपना काम करते रहो और हमें अपना काम करने दो। मतलब यह कि हमें सरकार चलाने दो और बदले में हम आपके हितों की रक्षा करेंगे।' यह मौन-स्वीकृति आज से नहीं पिछले अनेक वर्षों से प्रदेश-सरकार में दोनों पक्षों के बीच रही है। अब इस ‘स्वीकृति’ को भेदना संभवतः प्रदेश और केंद्र की नई सरकारों के लिए असंभव तो नहीं, मुश्किल ज़रूर पड़ रहा है।
 
एक सूचना के मुताबिक कश्मीर में अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर सालाना औसतन 112 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। इस खर्च में उनकी दिल्ली यात्राएं भी शामिल रहती हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर सरकार ने इन अलगाववादियों के रखरखाव, सुरक्षा, यात्रा तथा स्वास्थ्य आदि पर पिछले सालों के दौरान 560 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। 
 
एक अन्य आंकड़े के अनुसार इन अलगाववादियों के पोषण में सरकार प्रतिमाह लगभग 10 करोड़ रुपए खर्च करती है। सुनने में यह भी आया है कि अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में निजी अंगरक्षकों के रूप में लगभग 500 और उनके आवासों पर सुरक्षा गार्ड के रूप में लगभग 1000 जवान तैनात किए गए हैं। पूरे प्रदेश में के 22 जिलों में लगभग 670 व्यक्तियों को विशेष सुरक्षा दी गई है। इनमें से 294 गैर सूचीकृत लोग हैं। इन गैर सूचीकृत व्यक्तियों में अलगावादियों को भी शामिल किया गया है।
 
सुरक्षा प्राप्त लगभग 480 लोगों को पांच साल में 708 वाहन उपलब्ध कराए गए। सूचना यह भी है कि 500 पीएसओ और 950 राज्य पुलिस के जवान इनकी सुरक्षा में लगे रहते हैं जिससे इन्हें आतंकवादियों से बचाया जा सके और ये अलगाववादी सुरक्षित रहकर मज़े से कश्मीर के लोगों को भारत सरकार और सुरक्षा बलों के विरुद्ध भड़काते रहें!
 
समय आ गया है जब सरकारी खर्च से किसी को सुरक्षा देने के मानक तय हों। कश्मीर में शायद ये मानक अलगाववादियों ने तय कर लिए हैं। टैक्स देने वालों की गाढ़ी कमाई का पैसा इस तरह से बर्बाद न हो, इस पर विचार करने की सख्त ज़रूरत है।
 

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