न मिलने की खुशी, न बिछोह का गम...खत्म ये झगड़े हो जाए
क्षमा बिंदु ने खुद से ही ब्याह रचाया क्षमा कहतीं हैं उन्हें खुद से इतना प्यार है कि किसी दूसरे की जरूरत ही महसूस नहीं होतीं वरना प्यार करने और करवाने के लिए एक अदद दूसरा शख्स तो चाहिए ही..
सही है ये भी, खुद ही से इश्क़, न इंतज़ार की इन्तहां, न बिछड़ने का ग़म, न बेफालतू की उम्मीदें, न बदल जाने का सितम...वैसे खुद से प्यार करने वाले ऐसे बिरले ही होते हैं ज़्यादातर लोग तो खुद से खफ़ा ही रहते हैं, खुद से निराश, कभी अपना रंग या नाक नक्श बदलने की चाहत, कभी अपनी परिस्थितियां बदलने की ख्वाहिश..
खुद से ही लड़ते भिड़ते खीजते खुद से हैरान परेशान...और खुद से इस तरह का तनाव सिर्फ उनको ही दुखी नहीं करता बल्कि उनके इर्दगिर्द रहने वालों को भी इसका भुगतान करना पड़ता है..स्वयं से उनकी ये नाराज़गी
उनके आपको के मन को निवाले बना बना कर खाती रहती है..
और जब अनगिनत प्रयासों के बाद भी खुद से सुलह न हो पाए तो तलाक ही तो अंतिम विकल्प है..खुद से तलाक याने गहरी उदासीनता की काली लंबी गर्त या अंततः खुद की हत्या..परन्तु अभी तो बातें मुहब्बत की हों
मुझे यकीन है क्षमा अपने साथ बढ़िया संबंध बना कर रहेगीं अपनी उम्मीदों पर खरी उतरेंगी स्वयं से इश्क़ करती रहेंगी...उनका जीवन सुख की खुशबू में भीगा रहेगा..