प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन एवं लॉकडाउन को आगामी तीन मई तक विस्तारित किए जाने के बाद सरकार की ओर से मार्गनिर्देश आना निश्चित था। हालांकि लॉकडाउन के प्रथम चरण का मार्गनिर्देश देश के सामने था लेकिन उस दौरान आए अनुभवों के आलोक में इसमें कुछ संशोधन आवश्यक हो गए थे।
प्रथम चरण में आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सब कुछ पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिए गए थे। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था। उस समय प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि जान है तो जहान है। प्रथम चरण की समाप्ति के पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में उन्होंने इस नारे को यह कहते हुए बदला कि जान भी जहान भी।
आप गहराई से देखेंगे तो जैसा प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि इस दौरान सख्ती ज्यादा होगी उसका अनुपालन तो है लेकिन इसके साथ जहान का ध्यान रखते हुए कुछ ऐसी गतिविधियों की अनुमति दी गई है जिसकी समाज के सभी वर्गों की आवश्यकता होती है, या फिर जिसे टालना किसी के हित में नहीं होगा या उनमें सोशल डिस्टेंसिंग के पालन की संभावना है। इस तरह यह संशोधित दिशा निर्देश लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान मिले लाभ और दूसरे चरण में कोरोना के संक्रमण को रोकने का पूरा ध्यान तो रखता है, पर उसके साथ व्यावहारिकता और आम आदमी को राहत के बीच संतुलन भी स्थापित करता है।
लॉकडाउन का मूल तत्व है सोशल डिस्टेंसिंग के द्वारा कोरोना संक्रमण के चक्र को तोड़ना जिससे इसका फैलाव किसी तरह न हो पाए एवं यह महामारी में न बदल सके। इस लक्ष्य को कभी ओझल किया ही नहीं जा सकता। इसलिए नए मार्ग निर्देश में भी पहले की तरह आम परिवहनों पर पूरी तरह रोक को जारी रखना तथा राज्यों की सीमाएं सील रहना बिल्कुल स्वाभाविक है। यानी बस, मेट्रो, हवाई और ट्रेन सफर पूरी तरह बंद ही रहेगा।
थोड़े शब्दों में कहें तो हवाई, रेल और सड़क मार्ग से यात्रा करना, शैक्षणिक और प्रशिक्षण संस्थानों का संचालन, औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियां, सिनेमा हॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स पर रोक को जारी रखा जाएगा। राजनीतिक, धार्मिक-सांस्कृतिक एवं सामाजिक समारोहों पर रोक को भी जारी रहना ही था। कुल मिलाकर सामान्य अवस्था में हमारा-आपका बाहर निकलना प्रतिबंधित ही रहेगा।
वैसे ज्यादातर धार्मिक स्थलों ने पहला लॉकडाउन लागू होने के पहले ही आम श्रद्धालुओं के लिए दरवाजे बंद कर दिए थे, लेकिन इसका उल्लंघन भी होते देखा गया और रोकने गई पुलिस पर पत्थर चले, इसलिए नए मार्ग निर्देश में स्पष्ट करना जरुरी था कि लॉकडाउन लागू रहने तक सभी धार्मिक स्थलों बंद रहेंगे। कार्यालयों को सैनिटाइटर उपलब्ध कराने, मार्गनिर्देश के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए शिफ्ट चलाने तथा थर्मल स्क्रीनिंग के आदेश कायम हैं। इसी तरह मुंह कवर करना यानी किसी तरह का मास्क पहने बिना किसी के बाहर नहीं निकलने का आदेश प्रधानमंत्री की सख्ती के अनुरुप है।
जमातियों द्वारा थूकना एक खतरनाक समस्या के रुप में सामने आ रहा था। इसका ध्यान रखते हुए इधर उधर थूकने वालों पर जुर्माना लगाने का निर्देश बिल्कुल उचित है। लेकिन लॉकडाउन को सफल बनाने की दृष्टि से जारी मार्ग निर्देश की इन सख्तियों के समानांतर कई दूसरे पहलुओं का ध्यान रखना जरुरी था। मसलन, खेती लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार नहीं कर सकती।
खेतों में रबी की फसलें लगी हैं तो उन्हें काटना ही होगा। अगर वो कटेगा तो उससे संबंधित अन्य संसाधन एवं सुविधाएं तथा आने-जाने की अनुमति देनी ही होगी। कुछ प्रदेश सरकारों ने इसका ध्यान रखते हुए निश्चित समय सीमा में एवं सीमित संख्या में कृषि कार्य की अनुमति पहले से ही दे दी थी। नए दिशा निर्देश की विशेषता है कि इसमें इसका विस्तार से विवरण दे दिया गया है।
उदाहरण के लिए किसानों और कृषि मजदूरों को हार्वेस्टिंग से जुड़े काम करने की छूट रहेगी, कृषि उपकरणों की दुकानें, उनके मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स की दुकानें भी खुली रहेंगी, खाद, बीज, कीटनाशकों के निर्माण और वितरण की गतिविधियां चालू रहेंगी, इनकी दुकानें खुली रहेंगी। इसके अलावा खेती से जुड़ी मशीनों को एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाने पर भी कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है। किराने का सामान, स्वच्छता से संबंधित चीजें, फल और सब्जियां, डेयरी और दूध, मुर्गी पालन, मांस और मछली, पशु चारा आदि की दुकानें खुली रहेंगी।
सबसे बढ़कर कृषि पैदावारों की खरीद के लिए न्यूनतम मूल्य वाले बाजारों के खुले रहने से किसानों को काफी राहत मिलेगी। इस तरह का स्पष्ट दिशानिर्देश बहुत आवश्यक था। इससे लॉकडाउन लागू करने में लगे पुलिस एवं प्रशासन के सामने पूरी तस्वीर स्पष्ट हो गई है। अब ट्रैक्टर, थ्रेसर, कंबाइन, पम्पिंग सेट ही नहीं मंडियों की ओर जाते पैदावारों को नहीं रोका जाएगा। किसानों एवं कृषि गतिविधियों से जुड़े लोग एवं कारोबारियों के अंदर का भय भी दूर हुआ होगा। बस, उन्हें केवल इतना ध्यान रखना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं।
इसके साथ कुछ आम रोजगार, स्वरोजगार एवं लोगों की अन्य आवश्यकताओं का स्थान आता है। मनरेगा बंद करने से ग्रामीण गरीबों के लिए रोजगार पर बुरा असर हो रहा था। तो इसको शुरु करना जरुरी था। इसी तरह इलेक्ट्रिशियंस, आईटी संबंधी मरम्मत का काम करने वाले लोगों, प्लंबर, मोटर मैकेनिक, बढ़ईगिरी आदि स्वरोजगार के काम हैं और इनकी आवश्यकता कभी भी किसी को पड़़ सकती है। सबसे बढ़कर इनमें सोशल डिस्टेंसिंग का भी खतरा नहीं। इसलिए इन सबको काम करने की छूट देना बिल्कुल सही फैसला है और इसमें लॉकडाउन टूटने का खतरा भी नहीं है। ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा उपयोग की जाने वाली कूरियर सेवाओं और वाहनों को भी अनुमति मिलनी जरुरी थी, क्योंकि व्यवहार में तो यह आवश्यक सेवा ही है। आवश्यक वस्तुओं की दूकानें तो पहले भी खुलीं थीं।
अब अंतर इतना है इनके बंद और खुलने के लिए समय की पाबंदी नहीं होगी। माल ढुलाई पर पहले भी रोक नहीं थी। लेकिन अगर सड़कों से ट्रकें चलेंगी तो उनकी आवश्यकताएं भी पूरी करनी होंगी। उनके भोजन से लेकर कोई गड़बड़ी होने पर मरम्मत आदि की सुविधा चाहिए। इसलिए हाईवे में ढाबा यानी खाने-पीने की दुकानों को खोलने की अनुमति सही फैसला है। बैंक शाखाएं, एटीएम, पोस्टल सेवा, पोस्ट ऑफिस आदि पहले से खुले थे। अब सेबी और बीमा कंपनियां को भी अनुमति दे दी गई है। हां, बैंकों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने में आई कठिनाइयों का ध्यान रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था जरुरी है। इसमें स्थानीय प्रशासन को सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराने का निर्देश है।
इस तरह लॉकडाउन को पूरी तरह जारी रखते हुए आवश्यक छूट की शुरुआत हो गई है। प्रधानमंत्री ने भी अपने संबोधन में कहा था कि 20 अप्रैल तक मूल्यांकन के आधार पर क्षेत्रों को छूट दी जा सकती है। तो 20 अप्रैल के बाद जिन क्षेत्रों में संक्रमण नहीं हुआ, जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन हुआ उनमें अन्य गतिविधियों की भी सीमित और नियंत्रित छूट मिल सकती है। यह हमारे-आपके व्यवहार पर निर्भर करता है कि हम स्वयं को कितन अनुशासित और संयमित रखते हैं। जिन औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियों की अनुमति है वे सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर मार्ग निर्देश का पूरी तरह पालन करें।
अंतिम संस्कार में यदि 20 लोगों तक की अनुमति है तो इससे ज्यादा लोग नहीं जाएं। सार्वजनिक स्थलों, कार्यस्थलों तथा ट्रांसपोर्ट सेवाओं के प्रभारी सोशल डिस्टेंसिंग का हर हाल में पालन सुनिश्चित करें। शिफ्ट बदलने के दौरान अगर एक घंटे का गैप देना जरूरी है तो उसका पालन हो। आंगनवाड़ी के लाभार्थियों (बच्चों और दुग्धपान कराने वाली मांओं) को 15 दिन में एक बार उनके घर तक खाना और पोषाहार पहुंचाया ही जाए। मनरेगा के तहत सिंचाई और जल संरक्षण के काम ही हों और कामगार मास्क लगाएं एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
अगर सभी अपनी जिम्मेवारी को नहीं समझेंगे तो फिर कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। वैसी स्थिति में छूट तो दूर ज्यादा सख्त लॉकडाउन फिर से लागू करना होगा। सब कुछ सरकार की जिम्मेवारी नहीं है। सरकारों को जो करना है वो करें, लेकिन मार्ग निर्देश का पालन करना सभी देशावासियों की जिम्मेवारी है। उम्मीद करनी चाहिए कि लोग मार्ग निर्देश के पालन से कोरोना को परास्त करते हुए भविष्य में लॉकडाउन खत्म करने का आधार बनाएंगे।