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इसीलिए 'एमपी अजब है, सबसे गजब है!'

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अनिल जैन

, बुधवार, 29 नवंबर 2017 (17:16 IST)
मध्यप्रदेश में पिछले कुछ समय से शासन और प्रशासन के स्तर पर मूर्खता के नित-नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। मूर्खतापूर्ण कारनामों को सरकार के मुखिया और उनके सहयोगी वजीर ही नहीं, बल्कि पुलिस और प्रशासन के उच्च पदों पर काबिज तथा पढ़े-लिखे समझे जाने वाले मुसाहिब भी बड़े मनोयोग से अंजाम दे रहे हैं। इस सिलसिले में मध्यप्रदेश की पुलिस ने अपने राजनीतिक आकाओं की खुशामद करने के मकसद से नीमच शहर के वरिष्ठ पत्रकार जिनेन्द्र सुराना के साथ जो बेहूदगी की है, वह अभूतपूर्व है। 
 
किस्सा यह है कि फिल्म 'पद्मावती' को लेकर जारी 'प्रायोजित' विवाद के सिलसिले में पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद को राजपूतों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करने के लिए पद्मावती को 'राष्ट्रमाता' का दर्जा देते हुए ऐलान किया था कि मध्यप्रदेश में पद्मावती का स्मारक बनवाया जाएगा तथा पद्मावती से संबंधित कहानी को अगले वर्ष से मध्यप्रदेश में स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
 
उनकी इस घोषणा से प्रेरित होकर उनकी सरकार के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह उनसे कई कदम आगे निकल गए। उन्होंने घोषणा कर दी कि मध्यप्रदेश में गैंगरेप पीड़िता को राज्य सरकार 'पद्मावती पुरस्कार' से सम्मानित करेगी। उनकी इस घोषणा को मध्यप्रदेश के तमाम अखबारों ने छापा और कई टीवी चैनलों ने भी इसकी खबर दी।
 
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री की यह घोषणा अत्यंत हास्यास्पद और किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए क्षोभ पैदा करने वाली थी, क्योंकि इस तरह के पुरस्कार से बलात्कार पीड़ित महिला को न तो इंसाफ मिलना है और न ही सामाजिक सम्मान, बल्कि उलटे उसका नाम और पहचान ही सार्वजनिक होनी है जिससे उसके हिस्से में सिर्फ मानसिक पीड़ा और शर्मिंदगी ही आना है।
 
जाहिर है कि कोई न्यूनतम विवेक रखने वाला व्यक्ति भी सूबे के गृहमंत्री की इस घोषणा से सहमत या प्रसन्न नहीं हो सकता। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस घोषणा का अलग-अलग तरीके से विरोध दर्ज कराया। इसी क्रम में नीमच के वरिष्ठ पत्रकार जिनेन्द्र सुराना ने भी अखबारों में छपी गृहमंत्री की इस घोषणा से उद्वेलित होकर संबंधित खबर की एक कतरन के साथ अपने फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट लिखी कि 'मध्यप्रदेश में रेप करवाओ और पद्मावती अवॉर्ड पाओ, सरकार की नई घोषणा।' 
 
सुराना की पोस्ट में कुछ भी गलत नहीं था, बल्कि मध्यप्रदेश के गृहमंत्री की संवेदनाहीन, विवेकरहित, महिलाओं के प्रति अपमानजनक और आपराधिक घोषणा की ओर तंजभरा इशारा था। एक जागरूक, जिम्मेदार और संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते सुराना का तंज करना स्वाभाविक था। उनकी इस फेसबुक पोस्ट पर कई लोगों ने लाइक किया और कई ने अपनी-अपनी तरह से प्रतिक्रिया जाहिर की। कई लोगों ने उस पोस्ट को साझा भी किया। 
 
मध्यप्रदेश सरकार या उसके किसी भी कारिंदे में यदि रंचमात्र भी विवेक होता तो गृहमंत्री की मूर्खताभरी घोषणा को तत्काल वापस ले लिया जाता। लेकिन इसके विपरीत मध्यप्रदेश के ही खरगोन जिले की पुलिस ने सुराना की पोस्ट का संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ बलात्कार की धारा सहित कई अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज कर लिया। इस मूर्खतापूर्ण कार्रवाई की जानकारी जिले के पुलिस अधीक्षक ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी। उन्होंने मीडिया को बताया कि जिनेन्द्र सुराना के कृत्य को महिलाओं का मानभंग करने की दुष्प्रेरणा मानते हुए प्रकरण दर्ज किया गया है और उनकी गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम को नीमच भेजा गया है।
 
वैसे पुलिस की यह कार्रवाई ज्यादा हैरान नहीं करती, क्योंकि आपराधिक तत्वों से यारी निभाने वाली पुलिस इसके अलावा और कर भी क्या सकती है? इसी बीच पता चला है कि नीमच में सुराना के निवास पर कुछ स्थानीय असामाजिक तत्वों ने नारेबाजी करते हुए तोड़फोड़ भी की है।
 
मध्यप्रदेश के मुंहबली मुख्यमंत्री में थोड़ी भी मानवीय संवेदना होती या स्त्री की गरिमा के प्रति उनके मन में जरा भी सम्मान होता तो वे बलात्कार पीड़ित महिला को पुरस्कृत करने की घोषणा करने वाले अपने असभ्य गृहमंत्री को तत्काल अपनी कैबिनेट से बाहर रास्ता दिखा देते। लेकिन ऐसा न करके उन्होंने बता दिया कि अपने गृहमंत्री की घोषणा को उनकी भी सहमति हासिल है। 
 
पुलिस ने जिनेन्द्र सुराना पर जिन धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया है, उन धाराओं में कायदे से तो सबसे पहले मध्यप्रदेश के गृहमंत्री पर प्रकरण दर्ज होना चाहिए जिन्होंने महिलाओं के प्रति निहायत अपमानजनक और संवेदनहीन घोषणा की। इसी के साथ जिन अखबारों ने उनकी घोषणा को जस का तस छापा, उन अखबारों के मुद्रक, प्रकाशक और संपादक पर भी उन्हीं धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न होगा, क्योंकि जंगल राज में ऐसा नहीं होता। ऐसा सिर्फ वहीं हो सकता है, जहां कानून का शासन हो और सरकार के मुखिया का विवेक और संवेदना जैसे शब्दों से थोड़ा भी नाता हो। 
 
'एमपी अजब है, सबसे गजब है!', यह दावा मध्यप्रदेश सरकार के विज्ञापनों में यूं ही थोड़े ही किया जाता है!

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