दो मांओं से बनते सुखद स्त्री जीवन की यह सबसे बड़ी विडंबना है कि उसका जन्म व परवरिश किसी और घर में हुई होती है व उसे जिंदगी किसी और घर में पूर्णतया नए माहौल में बितानी होती है। स्त्री का सहनशील होना ही उसे इसमें ढलने की ताकत देता है।
विवाह तय होते ही उससे कर्तव्यपूर्ति की अपेक्षा की जाती है जबकि अधिकार उसे बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। ऐसे में बेटी घबरा जाती है व एक अनजाने डर से ग्रसित होने लगती है। ऐसे में दोनों मांओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है।
बेटी की मां को किशोरावस्था से ही उसे ऐसे संस्कार देने चाहिए कि हर बेटी अपना आत्मसम्मान व आत्मविश्वास बनाए रखते हुए नए परिवार के साथ खुद को आत्मसात कर अपनत्व व स्नेह के बंधन में पति ही नहीं, पूर्ण परिवार को बांध ले व उनमें यूं घुल जाए जैसे दूध में शकर घुलकर नई मिठास को जन्म देती है। संस्कारवान बेटियां ही ससुराल में लाड़-प्यार पाती हैं।
सास के रूप में नई मां का भी कर्तव्य है कि दूसरे घर की नाज-नखरों में पली-बढ़ी बेटी को अपने घर में वही सम्मान व प्रेम देकर अपना बनाने का प्रयास करें व उसे नए परिवेश में जुड़ने, नए रिश्तों को समझने में मदद करें।
दोनों मांओं की समझदारी, संस्कार व सामंजस्य से ही इस घर की प्यारी बिटिया उस घर की लाड़ली बहू बन दोनों परिवारों में सुख व प्रसन्नता बनाए रख पाएंगी। कुछ प्रयास मां को करने हैं व कुछ सास को।
प्यारी बिटिया को लाड़ली बहू बनाने के लिए मां से अपेक्षाएं-
1. हमेशा बेटी का विवाह बराबरी या थोड़ी-सी अधिक हैसियत वालों से ही तय करें।
2. पढ़ा-लिखा व सुसंस्कृत, शालीन तथा निर्व्यसनी लड़का ढूंढें।
3. ससुराल के प्रति पूर्वाग्रह विकसित न होने दें।
4. हर हाल में ससुराल व उसके रिश्तों, कर्तव्यों को सर्वोपरि समझ उन्हें प्राथमिकता से निभाना सिखाएं।
5. बेटी को केवल पति से नहीं, परिवार से जुड़ना सिखाएं।
6. ससुराल में बुलाए जाने पर शालीन वस्त्र पहनाकर ही भेजें।
7. सभी से सभ्यता व शालीनता का व्यवहार करना सिखाएं। बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लेना व छोटों से स्नेहपूर्ण व्यवहार उचित होगा।
8. नए परिवेश में ढलने के लिए स्वयं में स्नेह व प्रेम का भाव जागृत करने का प्रयास करने की सीख दें।
9. रिश्तों का मोल करना सिखाते हुए उनकी गरिमा बनाए रखने का प्रयास करने की शिक्षा दें।
10. नए वातावरण में ढलने के लिए आवश्यक समझौता करने की मानसिकता विकसित करें।
11. पूर्ण समर्पण से नए परिवार व परिवेश को आत्मसात करने की सीख मिली हो तो हर परिस्थिति सहज हो जाती है।
12. हर बात में मेरा, तुम्हारा का भाव न रखते हुए अपना या हमारा होने की भावना से ही जीवन में सुख मिलता है।
13. हर रिश्ते को पूर्ण सच्चाई व ईमानदारी से निभाना सिखाएं। झूठ व आडंबर से बचकर रहने के संस्कार दें।
14. मायके या ससुराल की गोपनीयता को बनाए रखें।
15. छोटी-छोटी बातों की शिकायतों को बड़ा तूल न देकर एडजस्ट करने की सीख दें।
16. पैसे या काम को लेकर घर में तनाव न उपजे, इसका ध्यान रखें।
17. बेटी व जमाई के आपसी विवादों को उन्हीं को सुलझाने दें।
18. अपनी गलती होने पर उसे तुरंत मान लेने, माफी मांगने व फिर न दोहराने का बड़प्पन दिखाना सिखाएं।
19. स्वयं उसकी गृहस्थी की समस्याओं को कुरेद-कुरेदकर न पूछे।
20. पूर्ण विश्वास व सम्मान के साथ उसे ससुराल में अपना स्थान बनाने दें।
बहू को प्यारी बिटिया में बदलने के लिए सास से अपेक्षाएं-
1. सास के रूप में दूसरी मां का कर्तव्य है कि बहू को उचित स्नेह व सम्मान दें। अपना बनाने का प्रयास करें।
2. बहू के मायके की हैसियत को महत्व न दें।
3. अपने बेटे को उसके गुणों की कद्र करना, उसका उचित सम्मान करना सिखाएं।
4. बहू के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित न रहते हुए प्रेम देने का प्रयास करें।
5. बहू आपके बेटे की जीवनसंगिनी है, यह न भूलते हुए उसे पराया न समझ अपने घर का हिस्सा यथाशीघ्र मान लें।
6. अपने घर के रीति-रिवाज व रस्में धीरे-धीरे उसे समझाए व सिखाएं।
7. उससे स्नेह व प्रेम का व्यवहार करें व घर के सदस्यों को उसका सम्मान करने की सीख दें।
8. जीवन के 20 या 25 वर्षों तक वह जिस परिवेश में पली है, उसे तुरंत छोड़ने की उम्मीद न रखें।
9. नए परिवेश में ढलने के लिए उसे समय दें व हर बार आगे रहकर मदद करें।
10. थोड़ा समझौता वह करे तो घर के सदस्य भी उसकी आदतों व इच्छाओं के साथ समझौता करें।
11. घर की अच्छी-बुरी हालत से उसका पूर्ण सच्चाई व ईमानदारी से परिचय कराएं।
12. उसके मायके का सम्मान करते हुए अपनी परंपराओं व रिवाजों को उसे सिखाएं।
13. बेटा व बहू के आपसी विवादों को उन्हीं को सुलझाने दें। निष्पक्ष भाव से सही का पक्ष लें व मांगने पर ही सलाह दें।
14. बेटे को जन्म भले ही आपने दिया है, परवरिश व संस्कार दिए हैं, पर जीवनसंगिनी के साथ जिंदगी बितानी है। अत: उन्हें आपस में पूर्ण घुलने-मिलने की स्वतंत्रता दें व निर्णय लेने दें।
15. छोटी-छोटी बातों में टोका-टोकी न करें।
16. खाने-पीने व पहनने-ओढ़ने की पूर्ण स्वतंत्रता व शालीनता के दायरे में हो तो अवश्य दें।
17. बार-बार अपनी बेटी से तुलना न करें।
18. घर में जैसे उससे कर्तव्यों की अपेक्षा करें, वैसे ही उदारता से सारे अधिकार, निर्णयों में भागीदारी भी दें।
19. गलती होने पर सौम्य शब्दों में उसे इसका एहसास कराएं। अकेले में समझाएं, पर अपमानित न करें। गलती मान लेने पर मुद्दों को हमेशा के लिए खत्म करें।
20. किन्हीं भी परिस्थितियों में उसकी शिकायतों का पिटारा उसकी अनुपस्थिति में बेटे या घर के अन्य सदस्यों के सामने न खोलें।
21. मायके पर उसका अधिकार भी है व उससे जुड़े कर्तव्य भी। ससुराल को प्राथमिकता देने की मानसिकता बनाने की सलाह दें, पर मायके के कर्तव्यों का भी सम्मान करें।
22. उसे अपने विचार, इच्छाएं पूर्ण करने की पूर्ण स्वतंत्रता दें।
23. पूर्ण समर्पण व प्रेम से बहू को दिल से अपनाएं व पहले दिन से ही उसमें अपनी बेटी की छवि देखें तो हर गलती नजरअंदाज करने का बड़प्पन अपने आप आ जाएगा।
इस तरह दोनों मांओं के प्रेम व संस्कार से प्यारी बेटियां बड़े आराम व सहजता से लाड़ली बहुएं बन जाएंगी। प्रेम व सम्मान के साथ परस्पर सामंजस्य रिश्तों में मधुरता घोल देगा व बेटा-बहू के साथ जीवन का संध्याकाल सुखद होगा। पहल हर मां को ही करनी है, चाहे वह बेटी को बिदा करने वाली हो या बहू को बेटी बनाने जा रही हो।
'दो मांओं के सान्निध्य से
सफल है हर बेटी का जीवन सफर'।