पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया सहित आठ संगठनों पर प्रतिबंध पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पिछले 22 सितंबर और 27 सितंबर के 2 चक्रों के देशव्यापी अभूतपूर्व छापे एवं 278 पीएफआई सदस्यों की गिरफ्तारियों के बाद साफ हो गया था कि सरकार ने इस खतरनाक मजहबी कट्टरवादी सोच और हिंसक गतिविधियों में संलिप्त संगठन को हर दृष्टि से कमर तोड़ने का मन बना लिया है। जिन अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, पीएफआई पर नजर रखने वाले उनके नाम और कृत्यों से परिचित हैं। हालांकि एसडीपीआई यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को भी पीएफआई का राजनीतिक मंच माना जाता है, लेकिन सरकार ने अभी उसे प्रतिबंधित नहीं किया है।
23 राज्यों में संगठन का विस्तार बताता है कि यह कितना शक्तिशाली हो चुका था। इसके पहले कभी भी किसी एक संगठन के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई भारत में नहीं हुई थी। इतनी व्यापक कार्रवाई का अर्थ यह भी है कि केंद्र सरकार ने एनआईए सहित अन्य सुरक्षा एजेंसियां जिनमें खुफिया इकाइयां शामिल हैं उन सबका गहराई से विश्लेषण किया था। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने छिटपुट कार्रवाई की बजाय एक ही साथ इस संगठन की कमर पूरी तरह तोड़ने तथा हर संभव सबूत इकट्ठा कर सारे संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार करने के बाद संगठन को प्रतिबंधित करने की योजना बनाई थी। यह एक साथ पूरे संगठन और इनको सहायता सहयोग देने वाले व्यक्ति या समूह को नेस्तनाबूद करने की रणनीति है।
जैसी आशंका थी पीएफआई और दूसरे ऐसे कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन इस कार्रवाई को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। पहली छापेमारी और गिरफ्तारियां के बाद केरल से लेकर तमिलनाडु, तेलांगना, आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि पीएफआई और उसके समर्थकों द्वारा प्रदर्शनों में की जा रही हिंसा साथ आपत्तिजनक नारों ने पूरे देश को भयभीत किया है। केरल में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि उच्च न्यायालय को स्वयं इन विरोध प्रदर्शनों के विरुद्ध संज्ञान लेना पड़ा।
एसडीपीआई यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया दावा करती है कि उसका पीएफआई से कोई संबंध नहीं है, लेकिन कई जगह उसके कार्यकर्ताओं ने पीएफआई के साथ मिलकर न केवल छापे का विरोध किया बल्कि हिंसक विरोध प्रदर्शनों और भारत विरोधी नारों तक में वे लगातार दिखाई दे रहे थे। भाजपा कार्यालयों और नेताओं पर हमले हुए। तो इस सबको किस रूप में देखा जाए?
कुछ भाजपा व आरएसएस के विरोधियों के लिए पीएफआई पर प्रतिबंध सहित अन्य कार्रवाई भी मुस्लिम विरोधी एवं हिंदू वर्चस्व की कार्यवाही है। महाराष्ट्र के पुणे से वायरल एक वीडियो में साफ दिख रहा है कि पीएफआई कार्यकर्ता बार-बार पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगा रहे हैं। इससे पता चलता है कि पीएफआई ने अपने सदस्यों और समर्थकों के अंदर किस ढंग से भारत विरोधी घृणा पैदा की हुई है।
दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया में धारा 144 लागू कर सुरक्षा की कठोर व्यवस्था करनी पड़ी। शाहीनबाग आंदोलन के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया हिंसा और उग्र विरोध का केंद्र बना था। वहां बसों से लेकर सरकारी संपत्ति जलाए गए थे तथा पुलिस तक पर हमला हुआ था। इसे देखते हुए यह उचित कदम था क्योंकि शाहिनबाग के छापे में लगभग 3 दर्जन लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था।
22 सितंबर के छापे के बाद हुई हिंसा, तोड़फोड़ उग्र प्रदर्शनों के कारण एनआईए सतर्क थी और उसने केंद्र से लेकर राज्यों तक से संपर्क किया तथा उस सुरक्षा के सारे उपाय किए गए। इसी कारण दूसरे दौर की छापेमारी और गिरफ्तारियां बिना बाधा के संपन्न हुई। प्रतिबंध लगाने के बाद भी कहीं से हिंसक विरोध की खबर नहीं है।
पीएफआई को समझने के लिए एक उदाहरण देखिए। केरल के कोच्चि में एनआईए ने पकड़े गए पीएफआई चरमपंथियों को रिमांड लेने के लिए जो रिपोर्ट सौंपी उसमें बताया गया कि इनके संगठन ने युवाओं को लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी समूहों में शामिल होने के लिए बरगलाया था। पीएफआई ने हिंसक जिहाद के तहत आतंकवादी कृत्यों को अंजाम दिया और भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लक्ष्य से काम किया।
जांच में सामने आया है कि सारे आरोपी संगठित अपराध और अवैध गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। वे समाज के अन्य धार्मिक वर्गों और आमजन के बीच आतंक पैदा करने का काम कर रहे थे। यह एक उदाहरण है, जिससे पीएफआई की देशव्यापी गतिविधियों को आसानी से समझा जा सकता है। यह तर्क दिया जा सकता है कि एनआईए और ईडी ने केवल आरोप लगाया है अभी प्रमाणित नहीं हुआ है। बेशक न्यायालय में प्रमाणित नहीं हुआ है लेकिन देश के सामने पीएफआई क्या है यह बिल्कुल स्पष्ट है।
यह भारत की अकेली संस्था है जिसके विरूद्ध राज्यों में एक सौ से ज्यादा मामले आतंकवादी विरोधी कानून यानी गैरकानूनी गतिविधियां निवारक कानून के तहत मुकदमे दर्ज हैं। आतंकवादी घटनाओं में इनकी सीधी संलिप्तता के मुकदमे चल रहे हैं। छापे से बरामद दस्तावेज एवं गिरफ्तार पीएफआई सदस्यों से पूछताछ के बाद एनआईए एवं इडी ने बताया है कि इनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। कोझीकोड से गिरफ्तार पीएफआई कार्यकर्ता शफीक पायथे के रिमांड वाले नोट में ईडी ने लिखा कि पटना में 12 जुलाई को प्रधानमंत्री की रैली में हमले का षडयंत्र रचा गया था जिसकी फंडिंग में शफीक पायथे भी शामिल था। संगठन ने रैली पर हमला करने के लिए एक प्रशिक्षण शिविर भी लगाया था, जिससे 2013 जैसी स्थिति पैदा की जा सके।
अक्टूबर 2013 में पटना के गांधी मैदान में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में श्रृंखलाबद्ध धमाके हुए थे। यह भी पता चला है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ नेता भी इनके निशाने पर थे। पीएफआई की एक शाखा थहलील है, जिसे उसकी जासूसी इकाई मानी जाती है। थहलील को संघ के नेताओं के बारे में जानकारी एकत्र करने की विशेष जिम्मेवारी दी गई थी, जिसमें उनके आंदोलन का विवरण भी शामिल था। बताया गया है कि उन्हें नेताओं के कार्यालयों, परिवारों, कारों और उनकी सुरक्षा करने वाले गार्डों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए कहा गया था।
इसके खाड़ी देशों में भी तीन संगठनों का पता चला था। ये हैं, इंडिया फ्रेटरनिटी फोरम या आईएफएफ, इंडियन सोशल फोरम या आईएसएफ, रिहैब इंडियन फाउंडेशन या आरआईएफ। एनआईए और ईडी के अनुसार पश्चिम एशिया में आईएफएफ पीएफआई के लिए धन जुटाने का सबसे बड़ा माध्यम बना हुआ है। खाड़ी देशों को पीएफआई से संबंधित कई मैन पावर आपूर्ति करने वाली कंपनियों के बारे में भी पता चला है। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से इन कंपनियों के जरिए खाड़ी देशों में काम करने गए हजारों लोग पीएफआई को हर महीने फंडिंग करते हैं। दूसरे मुस्लिम संगठन ही बताते रहे हैं कि मुस्लिम व्यापारी पीएफआई की मदद कर रहे हैं। जो लोग पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे थे उनकी इच्छा की पूर्ति हो गई है।
किसी संगठन को प्रतिबंधित करने के पूर्व इस तरह के पुख्ता प्रमाण होने चाहिए कि न्यायालय में खारिज नहीं हो। दूसरे, अभी तक का अनुभव है कि प्रतिबंधित किए गए कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का ज्यादा लाभ नहीं हुआ है क्योंकि वे दूसरे नाम और मंच के रूप में सक्रिय हो जाते हैं। सिमी पर प्रतिबंध के बाद एक वर्ग ने इंडियन मुजाहिद्दीन बनाया तो बड़े समूह ने पीएफआई की छतरी ले ली। इसलिए प्रतिबंधित करने के पहले ही उन सारे लोगों की गिरफ्तारियां तथा इनके संसाधनों को खत्म करना बेहतर रणनीति थी। यही भारत की सुरक्षा एजेंसियां कर रही है।
जुलाई महीने में पटना के फुलवारी शरीफ में खतरनाक पीएफआई मॉड्यूल के सामने आने के बाद इस संगठन के खतरनाक इरादे बिल्कुल स्पष्ट हो गए थे। इसने अपने दस्तावेज में 2047 तक भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा था जहां सब कुछ शरीयत के अनुसार होगा और दूसरे धर्मों के लिए कोई स्थान नहीं। इसमें संविधान के प्रावधानों, अंबेडकर का नाम आदि का उपयोग करते हुए लोगों में गलतफहमियां फैलाकर लाभ उठाने की पूरी योजना सामने आ गई। पीएफआई की कार्रवाई का विरोध करने वाले इस बात का जवाब अवश्य दें कि क्या वे इसके उद्देश्य एवं गतिविधियों से सहमत हैं? प्रतिबंध, छापों और गिरफ्तारियां को कटघरे में खड़ा करते हुए सरकार को ही खलनायक बनाने की कोशिश की जा रही है।
जाहिर है संघ भाजपा और मोदी के अंध विरोध या नासमझी, बगैर जानकारी के कारण देश की सुरक्षा, एकता, अखंडता को खत्म करने के लक्ष्य काम करने वाले ऐसे संगठन और उनके समर्थकों को बल मिल जाता है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी विरोधियों के वक्तव्य सामने आने के कारण विश्व भर के मुसलमानों में भी यह गलतफहमी पैदा होती है कि भारत सरकार इस समय मुस्लिम विरोधी नीति अख्तियार कर रही है तथा उनका उत्पीड़न हो रहा है। इससे भारत के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है। लेकिन विरोधी चाहे राजनीतिक रूप से जो भी वक्तव्य दें विश्व में भारत की छवि को बदनाम करने की भूमिका निभाएं, देश की सुरक्षा तथा सामाजिक एकता को विखंडित करने वाली पीएफआई जैसी इस्लामी कट्टरवादी हिंसक शक्तियों को समाप्त करना केवल भारत ही नहीं संपूर्ण मानवता के हित में है। इसलिए पीएफआई पर प्रतिबंध हर दृष्टि से उचित है।
Edited: By Navin Rangiyal/ PR
नोट : आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्यक्त विचारों से सरोकार नहीं है।