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कैसी दिखेगी पृथ्वी जब हम चंद्रमा पर होंगे

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शरद सिंगी

, शनिवार, 10 दिसंबर 2016 (20:14 IST)
चंद्रमा को देखकर कौन रामांचित नहीं होता? उसके रोज़ बदलते आकार को देखकर किसे कौतुक नहीं होता? यद्यपि विज्ञान के पास उसकी कलाओं के सारे गणितीय सिद्धांत उपलब्ध हैं, किंतु उनको जानने और समझने के बाद भी मनुष्य विस्मित हुए बिना नहीं रहता। अब सोचिए कि क्या होता यदि चंद्रमा पर इंसानी बस्ती होती? क्या चंद्रमा पर रहने वालों को भी पृथ्वी का उदय और अस्त होना वैसा ही दिखता जैसे हमें पृथ्वी से चन्द्रमा का दिखता है?
अनेक लोग शायद विश्वास नहीं करें किंतु चन्द्रमा से पृथ्वी कहीं अधिक सुंदर दिखाई देती है। आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व जब अपोलो मिशन के अंतरिक्ष यात्री ने चन्द्रमा की कक्षा से उदित होती पृथ्वी का चित्र भेजा था तो विश्व उस चित्र को देखकर पागल हो गया था। ध्यान रहे यह चित्र चंद्रमा की कक्षा से लिया गया था न कि चन्द्रमा की सतह से। चंद्रमा की सतह से पृथ्वी कैसी दिखती है इसको जानने से पहले हम चंद्रमा की चाल एवं गति को समझते हैं। चंद्रमा की सतह से पृथ्वी का लिया हुआ चित्र यहां प्रकाशित है। 
 
सर्वप्रथम तो जैसा हम जानते हैं कि आकाश में लटका प्रत्येक ग्रह या उपग्रह लगभग गेंद की तरह है जो निरंतर  अपनी धुरी पर घूमता रहता है। चन्द्रमा भी अपनी धुरी पर घूमता है साथ ही पृथ्वी की परिक्रमा करता है, किंतु इसके साथ विशेष बात यह है कि वह अपनी धुरी पर घूमने के बावजूद पृथ्वी की ओर सदैव अपना एक ही अर्धभाग रखता है। उसका पिछ्ला हिस्सा पृथ्वीवासी कभी नहीं देख पाते। ऐसा कैसे होता है इसको समझने के लिए एक  उदाहरण लेते हैं। यदि आप किसी गोलाकार मंदिर में रखी प्रतिमा की परिक्रमा, प्रतिमा की ओर ही अपना मुख रखते हुए करते हैं तो जब आप अपनी आधी परिक्रमा पूरी करेंगे तो मूल स्थिति की तुलना में आपका मुंह विपरीत दिशा में होगा और जब परिक्रमा पूरी कर लेंगे तब प्रतिमा को बिना पीठ दिखाए आप पुनः अपनी मूल स्थिति में आ जाएंगे।
 
 यानी आप अपनी धुरी पर पूरा घूम भी गए और प्रतिमा को अपनी पीठ भी नहीं दिखाई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपको अपनी धुरी पर घूमने और परिक्रमा को पूरा करने में एक ही वक्त लगा। ठीक इसी तरह चंद्रमा भी अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा इस परिक्रमा और धुरी पर घूमने का समय एक ही है जो लगभग 27 दिन से थोड़ा अधिक है। अर्थात उसका दिन है लगभग पृथ्वी के 27 से 28 दिन के बराबर और रात भी उतनी ही बड़ी।
 
इस तरह चंद्रमा के पीठ वाले भाग से पृथ्वी कभी दिखती नहीं तथा सामने वाले भाग से पृथ्वी कभी ओझल होती  नहीं। यानी पृथ्वी को देखकर यहां करवा चौथ करना संभव नहीं। केवल चंद्रमा के उत्तरी या दक्षिण ध्रुव पर किनारे वाली कुछ जगह ऐसी है जहां से पृथ्वी का उदय और अस्त देखा जा सकता है। ऐसा इसलिए कि चंद्रमा द्वारा  लगाया जाने वाला पृथ्वी की परिक्रमा का पथ वृत्ताकार नहीं किंतु अंडाकार है। जब चंद्रमा अंडाकार मार्ग के मध्य में रहता है तब वह पृथ्वी के सबसे नज़दीक रहता है अतः पृथ्वीवासियों को वह बड़ा दिखाई देता है जिसे हम सुपर मून भी कहते हैं और अंडाकार मार्ग के सिरे पर वह सबसे दूर हो जाता है। जब वह पृथ्वी के नज़दीक होता है तो ध्रुव के कुछ इलाकों से पृथ्वी दिखना बंद हो जाती है वहीं दूर जाने पर वह दिखाई देने लगती है। 
 
इसी जगह से पृथ्वी के उदय और अस्त को देखा जा सकता है। चंद्रमा की  सामान्य सतह से देखने पर पृथ्वी चंद्रमा की तरह सोलह कलाओं में आकृति बदलती रहती है किन्तु पृथ्वी से किसी भी दिन दिखने वाले चंद्रमा से ठीक विपरीत उसका आकार होता है जब हमारे यहां अमावस होती है तब चंद्रमा पर पृथ्वी पूरी खिली होती है और पूर्णिमा की दिन चांद पर अमावस। चंद्रमा से पृथ्वी एक ही स्थान पर लटकी दिखती है और चांद से चार गुना बड़ी दिखती है। जितना प्रकाश चांद हमें देता है उससे 45 से 100 गुना पृथ्वी चांद को देती है। ऐसे अनेक रोचक तथ्य समझने को मिलते हैं जब आप चाँद पर खड़े होकर पृथ्वी को निहार रहे हों। 

 हां, यदि आप चांद पर प्लाट खरीदने का सोच रहे हैं तो ध्यान रखे आपका प्लाट पृथ्वी की दिशा में हो, विपरीत दिशा में नहीं।  अरे रुकिए, चांद पर खरीदने से पहले बृहस्पति पर नजर डालना मत भूलिए जिस ग्रह के पास साठ से अधिक चंद्रमा हैं। पिछली शताब्दी तक माना जाता था कि बृहस्पति के पास मात्र 16 चन्द्रमा हैं लेकिन खोजों से इनकी संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। हां, यह भी ध्यान रखिए यदि आप बृहस्पति पर बसना चाहते हैं तो करवा चौथ किस चांद के साथ करनी है इसका निर्णय पहले ही ले लीजिए।

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