मप्र सरकार शिक्षा के ढोल पीट रही है... और केग की रिपोर्ट ने सारी पोल खोलकर रख दी है। कैग की अखबारों में शाया रिपोर्ट के मुताबिक, 42.86 लाख बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके हैं, वहीं शिक्षा का अधिकार कानून होने के बावजूद सभी को शिक्षा देने की योजना 6 साल बाद भी सफल नहीं हो पाई है। सबसे बड़ी शर्मनाक बात तो यह है कि हिन्दी भाषी प्रदेश होने के बावजूद रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 75 प्रतिशत विद्यार्थी हिन्दी की वर्णमाला ही नहीं जानते।
रिपोर्ट से हटकर बात की जाए तो मप्र में शिक्षा के व्यवसायीकरण में काफी इजाफा हुआ है, जहां मप्र में सरकारी तौर पर लगभग 15 प्रतिशत प्राथमिक, 21 प्रतिशत हाई और हायर सेकंडरी स्कूल खुले हैं वहीं निजी मान्यता प्राप्त स्कूल और कॉलेजों की संख्या लगभग 44 प्रतिशत से भी ज्यादा है। निजी मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों में गरीब, अजा, अजजा आदि कैटेगरी के बच्चों के लिए आरक्षित सीटों में कितनी भर्ती निजी मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों में हुई होगी, विचारणीय है। लाखों रुपए डोनेशन पाने वाले इन निजी मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों में जो केवल प्राफिट के बूते ही चल रहे हैं कैसे अपने लाखों रुपए साल का नुकसान करेंगे।
कहने का मतलब यह है कि सरकारी कागजों पर गरीब बच्चे भी निजी मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं(?) सरकारी स्कूलों का हाल मप्र के राज्य परिवहन निगम जैसे इसलिए हो गया है, क्योंकि सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों में मौजूद नेतागणों के अपने निजी मान्यता प्राप्त स्कूल चल रहे हैं, खुद के, रिश्तेदारों के आदि-इत्यादि। ऐसे में कोई दिहाड़ी करने वाले गरीब की औलाद कैसे शिक्षा पाने का ख्वाब देख सकती है। मप्र सरकार ने गरीब विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए अनेक योजनाएं चला रखी हैं मगर उन्हें धरातल दिखाने वालों ने सही और वास्तविक रूप में काम किया है या नहीं यह विचारणीय है, क्योंकि आज वर्तमान हालात यह हैं कि मप्र में ही अकेले प्राथमिक शिक्षा से लगभग 75 प्रतिशत बच्चे वंचित हैं।
रहा सवाल स्कूल छोड़ने वालों का तो अचानक अपनी पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या से ज्यादा निजी मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेज वालों द्वारा पढ़ाई में कमजोर, अनुशासनहीन आदि मनमाफिक आरोप लगाकर (सही बात तो यह कि फीस आदि का नुकसान) पढ़ाई से वंचित कर दिया गया होगा। केवल सक्षम घरों के विद्यार्थियों द्वारा ही शिक्षा पाई जा रही है। इन सक्षम घरों में भी हजारों ऐसे परिवार हैं जिनके चार-चार मंजिला बिल्डिंग होने के बावजूद बीपीएल कार्ड का मजा ले रहे हैं। (भाजपा की जीत का एक राज यह भी है।)
मप्र सरकार की शिक्षा को लेकर योजनाओं की कोई कमी नहीं है, मगर इनका वास्तविक लाभ उन लोगों को नहीं मिल रहा है जो वाकई साधनहीन और अभावग्रस्त हैं। इनमें भी सामान्य वर्ग और अजा-अजजा, अल्पसंख्यक आदि के लोगों की संख्या लगभग 78 प्रतिशत है। मप्र में शिक्षा से वंचित बच्चों की आबादी का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा अपने परिवार के पालन-पोषण हेतु दिनभर 50-100 रुपए की मजदूरी करेगा या दिनभर स्कूल में बैठेगा, क्योंकि बीपीएल कार्ड तो भाजपा सरकार के नुमाइंदों ने उन लोगों के बना दिए हैं, जो काफी सक्षम हैं।