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काल के कपाल पर नया गीत गाने वाले अटलजी का चले जाना

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सिद्धार्थ झा

आज काल के कपाल पर नया गीत गाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहे। काल के क्रूर हाथों ने भारत मां के एक महान सपूत को हमसे छीन लिया और एक ऐसा शून्य बना दिया, जो शायद अब कभी नहीं भरा जा सकता। अटलजी को भारतीय राजनीति में अभूतपूर्व योगदान के लिए याद किया जाता रहेगा।
 
उनकी भाषण शैली के हजारों-करोड़ों लोग दीवाने हैं। यही कारण है कि दूसरी पार्टियों में भी उनके वैसे ही समर्थक हैं, जैसे उनकी पार्टी में हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि वे लोकप्रियता के मामले में पार्टी की हदों से बहुत दूर हैं। भारतीय राजनीति में वे एक ऐसे शख्स के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने गठजोड़ की राजनीति को तमाम विरोधाभासों के बावजूद धरातल पर कामयाब बना दिया।
 
उनकी छवि एक ऐसे सर्वमान्य नेता की रही है, जो हरदिल-अजीज थे। उन्होंने पं. नेहरू से लेकर वर्तमान में अनेक नेताओं के साथ संसद में काम किया है। उनको किडनी में संक्रमण, छाती में जकड़न, मूत्र नली में संक्रमण के बाद 11 जून को एम्स में भर्ती कराया गया था। वे मधुमेह के साथ डिमेंशिया से भी पीड़ित थे। 15 अगस्त की शाम तबीयत अचानक से बिगड़ने के बाद उन्हें एम्स अस्पताल में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था।

 
पूर्व प्रधानमंत्री की तबीयत नाजुक होने की खबर के बाद से यहां शीर्ष नेताओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। ये सिलसिला लगातार जारी रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू व अमित शाह समेत अनेक गणमान्य लोग उनका हालचाल जानने लगातार आते रहे और उनकी सलामती की दुआएं मांगते रहे। इस दौरान लाखों लोगों का हुजूम दिल्ली के एम्स के बाहर बेचैन खड़ा रहा और ईश्वर से उनके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करता रहा।

 
मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनकी मृत्यु की खबर सुनकर पूरे देश में शोक की एक लहर फैल गई। हर कोई स्तब्ध था। किसी को भी अपने कानों पर इस खबर का विश्वास नहीं हो रहा था। उनके समर्थक किसी एक पार्टी, धर्म या राज्य के नहीं बल्कि इन सब सीमाओं से परे हैं। सोशल मीडिया पर बस आज हर कोई इन्हें श्रद्धांजलि देता नजर आया।
 
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयीजी के लिए शुरुआती सफर जरा भी आसान न था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने 'राष्ट्रधर्म', 'पाञ्चजन्य' और 'वीर अर्जुन' का संपादन किया।

 
1951 में वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उपचुनाव में वे हार गए थे। 1957 में जनसंघ ने उन्हें 3 लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंचे। अगले 5 दशकों के उनके संसदीय करियर की यह शुरुआत थी। 1968 से 1973 तक वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। आपातकाल के काले अध्याय में विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी जेल भेजा गया।

 
अटलजी अब तक 9 बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं, हालांकि दूसरी लोकसभा से 13वीं लोकसभा तक। बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही। खासतौर से 1984 में जब वे ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे। 1962 से 1967 और 1986 में वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिन्दी में भाषण दिया जिसने विश्व पटल पर हिन्दी को स्थापित किया।

 
1980 में वे बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे। 1980 से 1986 तक वे बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वे बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। 16 मई 1996 को वे पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वे लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। 1998 के आम चुनावों में एनडीए गठबंधन में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर वे प्रधानमंत्री बने, लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।

 
उनके संसदीय योगदान को देखते हुए 1994 में उन्हें भारत का 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' भी चुना गया। उन्हें भारत के प्रति उनके नि:स्वार्थ समर्पण और 50 से अधिक वर्षों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण दिया गया।
 
1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। पं. जवाहरलाल नेहरू के बाद वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो लगातार 2 बार प्रधानमंत्री बने।

 
वाजपेयी के नेतृत्व में देश ने काफी तरक्की की। ऐसे मान-सम्मान के अनेक पल भारत को देखने को मिले जिसका वह हकदार था। अटलजी हमेशा ही एक ऐसे नेता रहे जिन्हें न सिर्फ अपनी पार्टी में बल्कि विपक्षी पार्टियों में भी मान-सम्मान मिला। इसका एक उदाहरण साल 1994 में देखने को मिला, जब विपक्ष में होने के बावजूद अटलजी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के भेजे गए प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया। उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हराव की सरकार थी।

 
इसी तरह उनके प्रधानमंत्रित्वकाल को इसलिए भी याद किया जाएगा, क्योंकि उन्होंने देश को परमाणु शक्ति संपन्न देशों की कतार में खड़ा किया, जो कोई मामूली बात नहीं है। 1998 में अटलजी की सरकार बने सिर्फ 3 महीने ही हुए थे और उन्होंने परमाणु परीक्षण करने का फैसला किया। इससे पहले भी राजस्थान के पोखरण में इंदिरा सरकार में 1974 में परमाणु परीक्षण किया गया था, लेकिन भारत इसमें सफल नहीं हो पाया था। 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में दोबारा से सफल परमाणु परीक्षण किया गया।
 
उस वक्त अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारत पर नजर रखने के लिए पोखरण के ऊपर सैटेलाइट लगा दिए थे, लेकिन भारत ने इन अमेरिकी सैटेलाइट को चकमा देते हुए सफल परमाणु परीक्षण किया। मिसाइलमैन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आजाद भी इस टीम में शामिल थे और उन्होंने ही परीक्षण सफल होने की घोषणा की थी। अटलजी हमेशा से पाकिस्तान से संबंध सुधारना चाहते थे और इसकी शुरुआत उन्होंने पहली गैरकांग्रेसी मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए कर दी थी।

 
इस करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रूप में प्रख्यात वाजपेयीजी को साहसिक पहल के लिए भी जाना जाता है जिसमें प्रधानमंत्री के रूप में उनकी 1999 की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा शामिल है, जब पाकिस्तान जाकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने दिल्ली से लाहौर तक बस सर्विस की शुरुआत की जिसे 'सदा-ए-सरहद' नाम दिया गया। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए खुद अटलजी बस में बैठकर दिल्ली से लाहौर गए थे।

 
चन्द्रयान मिशन उनके महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। 15 अगस्त 2003 को लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए अटलजी ने 'चन्द्रयान 1' की घोषणा की थी। 'चन्द्रयान 1' भारत का पहला चन्द्र मिशन था। इसे 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था जिसका काम चांद की सतह से 100 किलोमीटर ऊंचाई से चांद की परिक्रमा करना था और उसके बारे में जानकारियां जुटाना था।
 
कारगिल युद्ध में मिली विजय को भला कौन भूल सकता है, जब पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारत-पाकिस्तान के बीच बनी एलओसी को पार किया और भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था तथा जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस लड़ाई में पाकिस्तान को काफी नुकसान हुआ और भारत के भी 527 जवान शहीद हुए, लेकिन आखिर में 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराकर कारगिल युद्ध जीत लिया।

 
वाजपेयीजी का मानना था कि भारत गांवों में बसता है इसलिए उन्होंने देश के मेट्रो शहरों को ही नहीं, बल्क‍ि दूरदराज के गांवों को भी सड़कों से जोड़ने के लिए योजनाएं शुरू कीं। इसमें 'स्वर्ण‍िम चतुर्भुज योजना' और 'प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना' अहम है। इससे इन गांवों के लिए शहरों से जुड़ना आसान हुआ। गांवों की तरक्की का रास्ता खोलने में राष्ट्र उनका योगदान भूल नहीं सकता।
 
 
उन्हें भारत में संचार क्रांति का जनक भी कहा जाता है। उनकी सरकार में ही टेलीकॉम फर्म्स के लिए फिस्क्ड लाइसेंस फीस को हटाकर रैवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था लाई गई थी। इस दौरान भारत संचार निगम लिमिटेड का गठन भी किया गया। इसके साथ ही टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट अपीलेट ट्रिब्यूनल का गठन भी वाजपेयी सरकार ने किया जिससे भारत संचार के क्षेत्र में बड़ा नाम बनकर उभरा।
 
अटलजी ने अपने कार्यकाल के दौरान कारोबार में सरकार का दखल कम करने के लिए निजीकरण को अहमियत दी। इसी का परिणाम था कि उनकी सरकार ने एक अलग विनिवेश मंत्रालय का गठन किया। इस दौरान भारत एल्युमीनियमम कंपनी (BALCO), हिन्दुस्तान जिंक, इंडिया पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और वीएसएनएल प्रसिद्ध विनिवेश थे।
 
वाजपेयी 2004 में अपना आखिरी लोकसभा चुनाव अपनी परंपरागत लखनऊ सीट से जीते थे लेकिन यहां से स्वास्थ्य कारणों की वजह से राजनीति में उनकी सक्रियता कम होती चली गई और वे सार्वजनिक जीवन से दूर होते गए। वे आजीवन अविवाहित रहे। लेखन उनका प्रिय शौक था। उनकी कविताओं का आज भी हर कोई दीवाना है।

 
वाजपेयीजी को मार्च, 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके घर पर 'भारतरत्न' से सम्मानित किया। 'भारतरत्न' का सम्मान राष्ट्रपति भवन में ही दिए जाने की परंपरा है, लेकिन उनकी बीमारी के चलते मुखर्जी ने प्रोटोकॉल से हटकर उन्हें घर जाकर यह सम्मान दिया। पिछले काफी समय से वे बीमार चल रहे थे।
 
वाजपेयीजी सिर्फ जननायक ही नहीं, मननायक भी हैं। एक ऐसे युगदृष्टा हैं जिन्होंने भारत का गौरव बढ़ाया है। इनको किसी दल, राज्य व विचारधारा की बंदिशों में रहकर नहीं समझा जा सकता है। वाजपेयीजी इन सबसे बहुत ऊपर थे।

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