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मैं बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना : मुक्तिबोध

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स्वरांगी साने

जब दस्तक संवाद का पुणे में आयोजन किया गया तो सबके जेहन में मुक्तिबोध की ये पंक्तियां घूम रही थीं कि- 'मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से/ बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना...' आभासी दुनिया के मित्र जब वास्तविक जीवन में मिल जाएं तो यह हिलोर उठना स्वाभाविक ही है। 
यह तब और स्वाभाविक हो जाता है, जब मिलने वाले साहित्यिक समूह से जुड़े हों। वॉट्सएप के साहित्यिक समूह 'दस्तक' के दूसरे संवाद का आयोजन पुणे में किया गया। अहिन्दीभाषी क्षेत्र में हिन्दी साहित्यकारों के समूह ने 2 दिवसीय आवासीय आयोजन किया था जिसमें कथा-कविता और भाषा के कई बिंदुओं पर गंभीर चर्चा हुई। 
 
पुणे से कुछ दूरी पर स्थित हिडन ओयासिस रिसोर्ट में पुणे के साथ मुंबई, गुना, इंदौर, भोपाल, देवास, फलटण से साहित्यकारों ने दस्तक दी। बड़ी संख्या में उपस्थित युवा रचनाकार और उनमें से अधिकांश आईटी क्षेत्र से जुड़े होने से जाहिरन भाषा को लेकर चिंता और भाषा से जुड़े रहने की जद्दोजहद साफ दिखाई दे रही थी। 
 
जब 'बदलती भाषा' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया तो युवाओं ने न केवल बढ़-चढ़कर उसमें हिस्सा लिया बल्कि मार्ग खोजने की उम्मीद भी जगाई। 'क्या पढ़ा जा रहा है' से लेकर 'क्या पढ़ा जाना चाहिए' तक यह परिचर्चा परवान चढ़ी।
 
वरिष्ठ साहित्यकार अलकनंदा साने (इंदौर) ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हमने पूरी पीढ़ी को अंग्रेजी में झोंक दिया और अब हम ही शिकायत कर रहे हैं कि इस पीढ़ी की भाषा अच्छी नहीं। बोलचाल की भाषा अलग होगी, परंतु साहित्य की भाषा के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता। भाषा को लेकर आग्रही और दुराग्रही होने पर उन्होंने जोर दिया। 
 
मुख्य वक्ता मीडिया विशेषज्ञ यूनुस खान (मुंबई) ने मीडिया में रोमन लिपि के बढ़ते चलन, हिन्दी न समझने वालों की पूरी जमात आदि महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित कराया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमें अपने बच्चों को उनकी समझ आने से पहले हिन्दी की किताबें लाकर देनी होगी तभी उन तक भाषा जीवित अवस्था में पहुंच सकेगी। नए तरीके से बाल साहित्य लिखे जाने पर भी उन्होंने जोर दिया। 
 
युवा वक्ता अनुभव गंगवाल ने कहा कि इंटरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। युवा रचनाकार शिवदत्त श्रोत्रिय ने बताया कि उन्हें अपनी यात्रा को मजबूरन हिन्दी माध्यम से अंग्रेजी माध्यम की ओर करना पड़ा। 
 
मीडिया से जुड़ी वसुंधरा काशीकर भागवत ने हिन्दी-मराठी भाषा में नुक्तों के प्रयोग पर जोर दिया। सत्र का संचालन करते हुए यशदा शेकदार ने इस बात से विराम दिया कि हिन्दी की ब्रांडिंग करने की आवश्यकता है। 
 
इस कार्यक्रम का आगाज कुमार गंधर्व परंपरा के कबीर वाणी के युवा गायक दंपति दाक्षायणी और मंदार के 'सुनो कबीरा' से हुआ...' और मानो श्रोताओं के भीतर से आवाज गूंजी... 'उड़ जाएगा हंस अकेला'।
 
मुक्तिबोध जन्म शताब्दी वर्ष होने से पहले दिन दस्तक समूह (दस्तक कविता, कहानी, टाइमलाइन, स्त्री दस्तक, भोपाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हिमाचल) के संस्थापक अनिल करमेले (भोपाल) ने मुक्तिबोध की एक रचना के साथ कथा सत्र का सूत्रपात किया।
 
संभावनाओं से लबरेज युवा साहित्यकारों को 'समावर्तन' पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ कवि-कथाकार निरंजन श्रोत्रिय (गुना) ने मार्गदर्शन देते हुए कहा कि पठन और कथन की कविता और कथा अलग होती है। जब भी कथा या कविता को पढ़ा जाए तो इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि वह संप्रेषित हो। यह बहुत सुखद है कि इतने युवा रचनाकार हिन्दी से जुड़ रहे हैं, उनकी कथा-कविताओं में नए विषयों की ताजगी है।
 
कथा सत्र में आकाशवाणी की जानी-मानी उद्घोषिका ममता सिंग (मुंबई) ने कथा 'राग मारवा', प्रतिमा त्रिपाठी (पुणे) ने 'गुमशुदा औरत' और रेखा सिंग (पुणे) ने व्यंग्य 'टांय-टांय फिस्स' का पाठ किया। सत्र की सूत्रधार लतिका जाधव ने मराठी के दिग्गज कथाकार व.पु. काले और पु.ल. देशपांडे की शैली पर प्रकाश डाला। स्वागत मीनाक्षी भालेराव ने किया। 
 
दूसरे दिन का प्रारंभ काव्य गोष्ठी से हुआ। अपने समय के सशक्त हस्ताक्षर और दस्तक समूह के मुख्य एडमिन के साथ कई युवा और उदीयमान कवियों ने अपनी कविताओं से चौंकाया। अंकेश प्रताप की कविता रेखांकित करने जैसी थी। महज 9 साल की साराक्षी पुराणिक ने भी कविता पाठ किया। इसी के साथ विशाखा मुलमुले, विवेक कुमार, प्रतिभा श्रीवास्तव (सभी पुणे), रुचि भल्ला (फलटण), पूर्णिमा पांडेय (मुंबई) की आदि की कविताओं ने सबका मन मोह लिया।
 
सत्र का संचालन ममता जैन और ऋषभ गोयल ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए निरंजन श्रोत्रिय ने युवा कवियों का मार्गदर्शन किया। दस्तक महाराष्ट्र समूह की जानकारी एडमिन स्वरांगी साने ने दी। आगंतुकों का स्वागत समूह के लोगो वाले कप को देकर किया गया। आभार अनिता दुबे ने व्यक्त किया।

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