बचपन में गाय पर निबंध लिखा था। दो बिल्ली के झगड़े में बंदर का न्याय देखा था। गुलजार का लिखा गीत ‘काठी का घोड़ा, घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा’ भी मिलजुलकर खूब गाया था, लेकिन ये क्या! घोड़े की दुम पर, हतोड़ा नहीं मारा गया, बल्कि उसकी तांग तोड़ी गई। देखो भाई, दाल में कुछ भी काला नहीं है, पूरी की पूरी दाल सफेद है।
बहुत दिनों से महसूस हो रहा है कि प्राचीन किस्सागोई और प्राचीन प्रतीक अब गुजरे जमाने की बात नहीं है। यह तो भला हो हमारे बुजुर्गों का, जिनकी कही हुई बात समय-समय पर याद आ जाती है- कि बड़ों की कही हुई बात और घर में रखी हुई वस्तु, कभी न कभी काम आ ही जाती है। इसिलए आज फिर से प्राचीन इतिहास से घोड़े को निकाला गया है। देखो भाई जब वर्तमान में कोई हीरो न हो, जो अपने समय का प्रतिनिधित्व कर सके, तभी तो इतिहास से अपने-अपने गिरोह के लिए ऐतिहासिक महापुरुष या प्रतीक तो लाने ही पड़ते हैं।
मुझे ऐसा लगता है कि इतिहास में दबे उन सभी पात्रों और प्रतीकों को निकलने का सही समय आ गया है। जब गाय माता, भारत माता की जय और देशद्रोह जैसे मुद्दे फीके पड़ने लगेंगे, तो घोड़े को बाहर निकालना तो पड़ेगा ही। आप जानते ही हैं कि यह साधारण घोड़ा नहीं है- जिताऊ घोड़ा है, कमाऊ घोड़ा है, राज्य को जीतने वाला घोड़ा है। गाय माता को अपने हाल पर इसलिए छोड़ दिया गया है, ताकि उसको जब चाहे घर लाया जा सके।
घोड़े को तभी छोड़ा जाता है जब दिग्विजय करनी हो, अश्वमेघ करना हो, अपनी पताका को लहराना हो। सब जानते हैं कि जब घोड़ा दौड़ता है तो उसके साथ गधे, जेबरा, टट्टू और खच्चर भी दौड़ते हैं। लेकिन रेस में जीतता घोडा ही है। घोड़े को जिताने के लिए घुड़सवार क्या नहीं करता, सालभर उसकी सेवा करता, समय आने पर रेस में लगा देता है। खूब पैसा लगवाया जाता है। पैसा लगाने वाले चूंकि रेस में दौड़ने वाले सभी घोड़ों पर पैसा लगाते हैं, हारे या जीते, महाजन को सभी से भरपूर पैसा बनाने का मौका मिलता है। समय समय पर रेस में दौड़ने वाले घोड़ों को सेना में भर्ती कर लिया जाता है। लड़ाई लड़ने के लिए भी और जब राजा हार रहा हो तब भी उसी घोड़े का इस्तेमाल होता है।
घोड़ा अश्वमेघ के लिए छोड़ा जा चुका है। अश्वमेघ यज्ञ की पूरी तैयारी हो चुकी है। अश्व नदी के तट पर अश्वमेघ नगर बसाया जा चुका है। बस नगर के राजा का घोषित होना बाकी है। पूरी दुनिया यह अच्छी तरह से जानती है कि अमृत मंथन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक उच्च अश्व घोड़ा भी निकला था। देहरादून में जो घोड़ा अश्वमेघ के लिए छोड़ा गया है, वह भी अमृत के समान है। उसके विजयी होने का मुझे लेश मात्र भी संशय नहीं है।
चूंकि घोड़े कभी-कभी बेलगाम भी हो जाते है। शायद इसलिए घोड़े की टांग तोड़ी गई है ताकि भूल चूक होने पर लंगड़े घोड़े की दुहाई दी जा सके। इसे जानवरों की संवेदना से बिलकुल भी न जोड़ा जाए। कुत्ता, चूहा, हाथी बैल आदि भी अब अपने अच्छे दिन आने की बाट जोह रहे हैं। मुझे यकीन है, अगर सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिन इनके भी अच्छे ही होंगे।