जमैका जैसे छोटे देश से एक ऐसा खिलाड़ी निकला जिसका नाम उसके देश के नाम से भी ज्याद मशहूर है। दुनिया में कहीं भी फर्राटा दौड़ की बात होती है तो उसैैन बोल्ट का नाम सबसे पहले सामने आता है। दुनिया के सबसे तेज धावक उसैैन बोल्ट ने ओलंपिक खेलों को अलविदा कह दिया है और अब वे अगले ओलंपिक में हिस्सा नहीं लेंगे।
जमैका के एथलीट बोल्ट ने ओलंपिक खेलों में कुल नौ स्वर्ण पदक जीते हैं। फेल्प्स की तरह बोल्ट भी अपने देश के लिए सोने के पदकों का ढेर लगाने वाले खिलाड़ी रहे हैं। उसैैन बोल्ट को भी कुदरत के करिश्मे के तौर पर ही लिया जाता है। वो जब मैदान पर होते हैं तो लोगों को उनकी जीत पर कोई संदेह नहीं होता। कई मौकों पर वो अपने विरोधी खिलाड़ियों के साथ खिलवाड़ करते ही दिखते हैं। वो कभी पीछे भी होते हैं तो अचानक से आगे आ जाते हैं। यह उनकी तैयारी है या फिर सचमुच कुदरत का करिश्मा, ये अलग विषय है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वे दुनिया में एक अनोखे धावक हैं जिनका ट्रैक पर उतरना ही जीत की गांरटी होता है। इसलिए दुनिया उन्हें कहती है- जादुई चीता।
जमैका के उसेन बोल्ट ने रियो ओलंपिक में भी इतिहास रच दिया है। वह लगातार तीन बार ओलंपिक में 100 मीटर, 200 मीटर और 4 गुणा 100 मीटर का स्वर्ण जीतने वाले दुनिया के पहले एथलीट बन गए हैं। बोल्ट ने ट्रिपल कामयाबी ने उसेन बोल्ट को दुनिया के महामानवों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। कई ऐसे खिलाड़ी दुनिया में आए जिन्होंने अपने खेल में खुद को दुनिया का सबसे बेहतर खिलाड़ी साबित किया और लंबे समय तक उस खेल की दुनिया पर राज करते रहे। ओलंपिक को बोल्ट ने अलविदा कह दिया, लेकिन साथ ही वो अपने पीछे ऐसे रिकॉर्ड छोड़ गए जिन तक पहुंचने के लिए किसी जादूई खिलाड़ी या महामानव की ही जरूरत होगी।
बोल्ट ने बीजिंग (2008), लंदन (2012) और रिओ (2016) ओलंपिक खेलों में 100, 200 और 4 गुणा 100 मीटर का स्वर्ण जीते हैं। बोल्ट की नजर ओलंपिक के पहले से ही 'ट्रिपल-ट्रिपल' पर थी। 100 और 200 मीटर के गोल्ड पर कब्जा करने के बाद जमैका की टीम इस 4 गुणा 100 मीटर की रेस के फाइनल में जैसे ही पहुंची सबसे जानते थे कि बोल्ट इस रिकॉर्ड को हासिल करने के लिए जान लड़ा देंगे। हालांकि उनके खेल को जानने वाले उन्हें बहुत ही सहजता से अपने विरोधियों को पछाड़ देने वाले खिलाड़ी के तौर पर जानते हैं।
उसैैन बोल्ट को रेसिंग ट्रैक का महामानव भी कहा जाता है।। ट्रैक पर चीते की रफ्तार से दौड़ता हुआ एक ऐसा इंसान जिसकी रफ्तार का अंदाजा सिर्फ हाई डेफिनेेशन कैमरे पर ही लगाया जा सकता है। वर्ल्ड चैंपियनशिप हो या ओलंपिक जैसा खेलों का महाकुंभ इस धवाक ने गोल्ड पर गोल्ड जीतकर एक नया इतिहास रच दिया। ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्डेन की हैट्रिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप में ही सबसे ज्यादा गोल्ड का रिकॉर्ड भी उन्हें रेसिंग ट्रैक का महामानव बनाता है।
लंदन ओलंपिक में ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि उसैैन बोल्ट ओलंपिक से संन्यास ले लेंगे। उन्होंने रिओ ओलंपिक में हिस्सा लिया और एक बार फिर साबित किया कि उन्हें रेसिंग ट्रैक का महामानव क्यूं कहा जाता है। एक अविश्वसनीय रिकॉर्ड अपने नाम कर फैंस का शुक्रिया अदा करते हुए उन्होंने ओलंपिक को अलविदा कह दिया। उनके फैंस तो कभी नहीं चाहेंगे कि वे रेसिंग ट्रैक से बाहर रहें, लेकिन ओलंपिक को अलविदा कहने के दो कारण हैं। पहला यह, कि चार साल बाद होने वाले अगले ओलंपिक के लिए भी खुद तैयार रखना एक कठिन चुनौती है। महामानव भी होता मानव ही है, जाहिर तौर पर उम्र उस पर हावी होती है। फुटबॉल, बॉक्सिंग, जिमानास्टिक्स और जाने कितने ही खेलों में ऐसे महामानव सामने आए जिनका एक दौर भी रहा। इस दौर का अंत भी होता है लेकिन यदि दौड़ने की ताकत रहते हुए ट्रैक को अलविदा कहा जाए तो यह एक सुखद और शानदार अंत कहा जाएगा।
बोल्ट ने 21 साल की उम्र में 2008 के बीजिंग ओलंपिक में हिस्सा लिया था और 100 मीटर रेस में वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने ने पूरी दुनिया में अपनी धमक महसूस करा दी थी। इसके बाद लंदन और अब रिओ दोनों ही ओलंपिक खेलों में भी उनका ये गोल्डन गेम जारी रहा। रियो ओलंपिक से विदाई लेते हुए बोल्ट ने कहा कि ‘मैं बहुत राहत महसूस कर रहा हूं, मैंने नौ वर्षों तक जो दबाव सहा है वह अब खत्म हो गया है।’ ओलंपिक को अलविदा कहने के बाद आगे की योजना के सवाल पर बोल्ट ने कहा है कि अब उन्हें अपनी जिंदगी के नए उद्देश्य तय करने होंगे।
जीतते रहने का लालच कई बार आपके फॉर्म के पतन के बावजूद प्रतियोगिता में बने रहने की जद्दोजेहद की तरफ धकेलता है। वहीं जिस दबाव की बात उसेन बोल्ट कर रहे हैं वो फैंस की उम्मीदों पर खरा उतरना है। हाल ही में खिलाड़ियों के दबाव पर बोलते हुए पूर्व ओलंपियन और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा था कि यह दबाव बहुत जरूरी होता है। इससे खिलाड़ी में जीतने की एक ताकत पैदा होती है। हां यह उस खिलाड़ी पर निर्भर करता है कि वो उस दबाव को कैसे लेता है। जाहिर तौर पर राठौड़ इस दबाव को समझते हैं और इसलिए वे जानते हैं कि खिलाड़ी ऐसे समय पर क्या महसूस करता है। उसेन बोल्ट के कामयाबी आपके लिए एक स्वर्णिम इतिहास हो सकता है, लेकिन उनके लिए ये एक दबाव की तरह था। यह बात खुद उन्होंने स्वीकार की है। दबाव उम्मीदों पर खरा उतरने का और दबाव हमेशा जीतते रहने का।
आप यदि अपने स्वर्णिम समय पर संतुष्टि कारक प्रदर्शन के साथ यदि खेल को अलविदा कहते हैं तो यह आपको हमेशा हमेशा के लिए अमर कर देता है। बोल्ट ने यही किया वो जीत के साथ ही अलविदा कहना चाहते थे न कि दौड़ने की क्षमता खत्म होने की वजह से। उसैैन बोल्ट अब इतिहास में दर्ज हो चुके हैं। जमैका के एक बहुत छोटे से कस्बे में पैदा हुए बोल्ट का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। वो आज भी अपन पैतृक गांव की भलाई के लिए अपने पैसों से कई योजनाएं चलाते रहते हैं। वो एक एनजीओ भी चला रहे हैं जिसका मकसद गरीब बच्चों की मदद करना है।