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जबान और गले का अनशन

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गरिमा संजय दुबे

लो अब तो हिन्दी दिवस के तुरंत बाद हिन्दी के व्यावहारिक और वैज्ञानिक होने का एक ताजा सबूत हाथ लगा। कभी सोचा भी न था कि एक मुहावरा इस कदर मफलरमैन को एक माध्यम बना अपने अस्तित्व को प्रमाणित करेगा। उसे सनसनी पैदा करने और हल्ला मचाने के लिए इससे बेहतर माध्यम मिल ही नहीं सकता था।

वैसे भी ज्यादा और बकलोली करने वाले के लिए यही तो मुहावरा प्रचलित रहा है, कि इसकी या उसकी जबान बड़ी लंबी है। आज तक जो वैज्ञानिक इस बात को मानते रहे हैं, कि जीभ की एक निश्चित लंबाई होती है और वह बढ़ नहीं सकती, उसे हमारे मफलर मैन ने गलत साबित कर दिया। वैसे भी वे सदैव अन्वेषक की मुद्रा में ही रहते हैं। अब वे कहेंगे कि "देश में इतनी बुराइयां है कि सामान्य जीभ से उनकी आलोचना संभव ही नहीं थी। उनकी इस लंबी जीभ के लिए पूरा देश जिम्मेदार है। प्रधानमंत्री तो बाय डिफाल्ट हैं ही, जो रात दिन उन्हें नए नए मुद्दे दे देता है" और उनकी नन्ही सी बेचारी जीभ अपनी सीमित क्षमताओं के साथ संघर्ष कर लपलपाने लगती है।  
 
एक तो गला बार-बार बिगड़े इंजन की तरह घर्र-घर्र कर रहा था। मन भी बुझा-बुझा सा था। बोलना और कुछ भी बोलना ही तो उनकी संजीवनी है। वे अनमने हो गए, क्या होगा इस देश का जो वे न बोले? ईमानदारी की रक्षा का जो संकल्प वे लिए हुए थे, उस अभियान का क्या होगा ? अगले चुनाव आसन्न है, नहीं-नहीं इस देश को वे गर्त में नहीं जाने दे सकते। वैसे भी वे समय के आगे की सोच के व्यक्ति हैं, तो जैसे तकनीक में 4 जी 5 जी से अनंत जी की संभावना का आविष्कार हो रहा है तो उनके अंदर के पल-पल पलटने वाली व्यवस्था और विचारों से बेचारी जीभ का यह संघर्ष देखा नहीं गया और आतंरिक प्रणाली ने अपने आप ही जीभ को लंबा कर उसकी क्षमता को बढ़ा दिया। लेकिन यह लंबी जीभ तो मुसीबत हो गई। उनके गले से जीभ की लंबाई देखी नहीं गई, और जैसे वे किसी के बढ़ते कद को छोटा करने के लिए घड़ी-घड़ी अनशन पर बैठ जाते हैं, वह भी बैठ गया, खांसी का लबादा डाल कर।
 
अब क्या करें, दौड़े डॉक्टर के पास, हर डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा। मरता क्या न करता, जब गले के ऑपरेशन को बारी आई तो डॉक्टर हैरान कि जीभ अपनी सामान्य लंबाई से बढ़ चुकी थी और गले पर दबाव बना रही थी। गला चिल्लाया "यह जीभ मेरा काम बिगाड़ रही है"। गले और जीभ की लड़ाई में मुझे एल जी और उनकी लड़ाई की महक आई। अब जीभ भी तो उनकी ही थी, उनके जैसी ही होगी न, अपने उलटे सीधे तर्कों से दूसरे को दोषी ठहराना उसने उनसे ही सीखा था। जीभ भी उनकी पार्टी की तरह अपने ही दूसरे हिस्से को नीचे गिराने पर तुली थी। इन दोनों की लड़ाई में मुंह बेचारे का जायका बिगड़ रहा था, जीभ ने भी अनशन का जाना पहचाना रास्ता चुना और अनियंत्रित हो जहां तहां फिसलने लगी। 
 
डॉक्टर ने कहा आपके जीभ और गला दोनों ही काम के बोझ के मारे हैं, उन्हें आराम की सख्त जरूरत है। वे दहाड़ना चाह रहे थे "सब बेईमान है, काम चोर हैं "लेकिन गले ने साथ नहीं दिया, धीरे से बोले "जरूर प्रधान सेवक ने मेरे सिस्टम में वायरस छोड़ दिए है "। अब उन्हें कौन समझाए कि अपने दिमाग के वायरस को नियंत्रित करें कहीं वो भी जबान और गले की तरह अपने अत्यधिक शोषण के विरोध में अनशन न कर दे। फिलहाल मफलर मैन और अनशन करने वाली जीभ और गले के बीच आपसी सहमति बन गई है और वे उन्हें कुछ दिन विश्राम देने की बात मान चुके है। यह तूफान के पहले की शांति होगी।

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