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बुद्धिजीवियों की खाप और विचारों की ऑनर किलिंग

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गरिमा संजय दुबे

आज सारे विचार विचारमग्न थे, कराह रहे थे आपस में लड़ रहे बुद्धिजीवियों के तर्कों की तलवारों से घायल थे। वैसे ही वे अष्टावक्र बना दिए गए थे और अब उन्हें एक दूजे से श्रेष्ठ बताए जाने की लड़ाई लड़ी जा रही थी। अंतिम सांसे गिन रहा बूढ़ा विचार बोला "खाप पंचायतों का नाम सुना है"।



सब विचार एक साथ बोले " हां-हां सुना है, वही न जो अपनी गोत्र से बाहर शादी करने पर लड़के-लड़की को मार डालते हैं, उलटे सीधे नियम बनाते हैं"। दूसरा विचार बोला "ऑनर किलिंग के लिए जाने जाते हैं"। तीसरे ने सर हिलाया बोला-  "हमारे मानने वाले भी वैसे ही लड़ रहे हैं, जैसे मुर्ख लोग लड़ते हैं। जाति के लिए, धर्म के लिए, गोत्र के लिए।
 
"लेकिन यह तो बुद्धिजीवी हैं फिर ?" चौथा बोला। लाल लबादा ओढ़े बूढ़ा बोला "यही तो दिक्कत है, बुद्धिजीवी भी निष्पक्ष नहीं रहे। हम सब मानवता के कल्याण के लिए पैदा किए गए थे, अलग-अलग समय पर अलग-अलग देश काल में अलग अलग परिस्थिति में, कहते हैं हम विकृत हो गए हैं"। "हां मैंने भी कुछ ऐसा सुना है कि एक विचार के समर्थकों को दूसरे विचार से बूं आती है, और एक दूजे पर वे कीचड़ उछालकर उसे और बदबूदार बनाने पर तुले हुए हैं।" अब तक चुप बैठा विचार बोला। 
 
तीसरे विचार ने कहां बूं आती है ? नए विचार, नई अवधारणा से तो खुशबू आनी चाहिए नई संभावना की"। चौथा बोला "बदबू विचारों की नहीं उनके पूर्वाग्रह की होती होगी, संकीर्णता की होती होगी, जो किसी अन्य के अस्तित्व को पचा ही नहीं पाते"। कुछ विचार बोले "लेकिन वे तो कहते हैं कि हम (विचार) विकृत हैं , घातक हैं"। "विचार और व्यवस्था स्वयं तो विकृत नहीं होते, यह चालाक मनुष्य हर बार अपनी सुविधा से हमें विकृत करते है और अपने किए से हाथ झटक कर हमें ही दोषी ठहराते हैं" ताल ठोंकते हुए एक विचार बोला। "हां कहां गलत थे हम? पर इन लालची स्वार्थी मनुष्यों ने अपने-अपने स्वार्थ के लिए परिभाषाएं गढ़ ली , हममें जो कमियां थी उसे उन्होंने अपने सुनहरे राजनीतिक भविष्य की सीढ़ी बना लिया। क्यों नहीं सोचा आदर्श नियम के दुरूपयोग के बारे में" सब बोल पड़े । 
 
समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, आरक्षण, वामपंथ, दक्षिण पंथ, पूंजीवाद, नारीवाद सब विचार एक साथ खड़े हो गए बोले, "क्या पता नहीं था कि हमारा दुरूपयोग हो सकता है, तो उपयोग के पहले दुरूपयोग को रोकने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई ? नेपथ्य से आवाज़ आई "आप सबके दुरूपयोग को रोकने का काम बुद्धिजीवियों को दिया गया था "। "लेकिन बुद्धिजीवी तो खुद बंट गए हैं, निजी स्वार्थों के लिए, इस कदर कि एक दूजे के अस्तित्व को खत्म कर देंगे, अपनी लपलपाती तलवारों से, तो हमें दोष मुक्त कौन करेगा, कौन बचाएगा इन खापों से, आपकी खापें तो इंसान की हत्या करती हैं, इन बुद्धिजीवियों की खाप तो विचारों की ऑनर किलिंग करने पर आमादा हैं" विचार चींख रहे थे। नेपथ्य से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।

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