Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अगर तुम्‍हें नदी का बहते हुए देखना आता है तो यह भी सच है कि नर्मदा ‘मां’ है

हमें फॉलो करें अगर तुम्‍हें नदी का बहते हुए देखना आता है तो यह भी सच है कि नर्मदा ‘मां’ है
webdunia

नवीन रांगियाल

जमीन में गढ़े हुए पत्‍थर वो ईश्‍वर हैं जो रुककर तुम्‍हारी प्रार्थनाएं सुनते हैं और नदी का बहता हुआ पानी वो ईश्‍वर है जो तुम्‍हारी प्रार्थनाओं को ऊपर कहीं किसी दूसरे अज्ञात ईश्‍वर के पास ले जाता है, अगर तुम्‍हें देखना आता है और अगर तुम्‍हें यकीन है, तो यह सब सच है।

संस्‍कृत में जल। हिन्‍दी में पानी और साइंटिफिक नाम एच2ओ। ये पानी के नाम हैं। जो हम पीते हैं वो पानी, जो हमारे लिए पवित्र है वो जल और जिसे हम लैब में इस्‍तेमाल कर कोई शोध करें तो वो एच2ओ। लेकिन इसके आगे जाकर हिंदू धर्म और संस्‍कृति में पानी एक आस्‍था भी है। अगर वो नदी का हो तो पवित्रतम। और नर्मदा हो तो मुक्‍ति और मोक्ष का मार्ग।

इस बात को लेखक और चित्रकार अमृत लाल वेगड़ के मन से और बेहतर समझा जा सकता है, उन्‍होंने लिखा था-
नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो, तुमको देखने वाला हर कोई मोहित हो जाता है, क्‍या बात है तुममें ये तो मैं कई बार पूछ चुका हूं, पर तुम हमेशा मुस्‍कुराकर बात को टाल जाती हो। तुमने तो पूरी धरती पर अमृत पान कराने की ठानी है। सो उल्‍टी दिशा ही सही निकल पड़ी हो। ये जो नर्मदा भक्‍त तुम्‍हारे घाट पर आते हैं न, देखकर तुम्‍हें बड़े इतराते हैं, क्‍यों न इतराए आखिर तुम इनकी मां हो, ऐसी मां जो केवल देना जानती है। बस ऐसे ही एक दिन मुझे बैठा लेना अपनी गोद में चिर निद्रा में जब मैं सोने आऊं’।

अमृत लाल वेगड़ की इन बातों का महत्‍व इसलिए है, क्‍योंकि नर्मदा किनारे जाने वाला हर हिंदू नर्मदा से यही चाह रखता है। चाहे वो खुद अमृत लाल वेगड़ हो या कोई बेहद ही आम और मामूली सा हिंदू आदमी।

ऐसा कहा जाता हैं शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान शिव के पसीने से एक बारह साल की कन्या ने जन्म लिया था। वही कन्या आगे चलकर मां नर्मदा कहलाई। इसी के चलते हिंदू धर्म में नर्मदा जयंती मनाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसे में इसके धार्मिक महत्‍व की शुरुआत शिव की इसी कथा से हो जाती है, लेकिन जिन्‍हें इस कथा के बारे में पता नहीं होगा, वे आज भी नर्मदा के पावन जल में अपनी आस्‍था खोजते हैं और यह इच्‍छा रखते हैं कि अंतत: यही जल उनकी मुक्‍ति का बहाव हो। नर्मदा का बहाव उन्‍हें अंत की यात्रा का सबसे अच्‍छी विदाई प्रतीत होता है।

शुक्‍ल पक्ष की इस तिथि के बारे में ज्‍यादातर पढ़े-लिखे या आधुनिक लोगों को पता नहीं होता है, लेकिन वे नर्मदा के पानी में उसी तरह से पवित्र महसूस करते हैं और उसे उसी तरह मां मानते हैं, जिस तरह से कोई भी औसत आस्‍था रखने वाला नर्मदा को मां मानता है। या फिर जैसे वो मानता है कि ऊपर आसमान में कोई ईश्‍वर है। ओर धरती भी एक मां है।

लेखक निर्मल वर्मा इस आस्‍था को और भी बेहद करीब से देखते हैं। एक समय में वे नास्‍तिक हैं, ईश्‍वर के अस्‍तित्‍व के लिए अभी उनकी खोज जारी है, लेकिन जब वे इलाहाबाद के कुंभ में लाखों लोगों को नदी में स्‍नान करते हुए देखते हैं, महिलाओं को अंजुरी से आचमन करते हुए देखते हैं तो वे आस्‍था और अ-आस्‍था के बीच के सवाल और तर्क से बाहर निकल जाते हैं। वे नदी में डुबकी न लगाने के बावजूद आस्‍था की खिली हुई धूप में ठिठुरने लगते हैं।

वो देखते हैं कि हजारों पुरुष नदी में डुबकी लगाकर इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वे पवित्र हो चुके हैं। हजारों हजार स्‍त्रियां हथेली में पानी भरकर उसे धीमे-धीमे नदी में छोड़कर प्रवाहित करती हैं, उनकी आंखें बंद हैं और होंठ बुदबुदा रहे हैं। वे क्‍या मांग रही हैं, क्‍या चाह रही हैं उस पानी से जिसे एच2ओ कहा जाता है, और वो सिर्फ देह की सफाई के लिए काम आता है। तो फिर नर्मदा का पानी करोड़ों-करोड़ों लोगों के लिए आस्‍था की डुबकी या आस्‍था का प्रतीक कैसे हो गया। कैसे कोई पानी एक धर्म के लाखों लोगों के लिए मुक्‍ति और मोक्ष प्रदान करने का साधन हो सकता है। क्‍यों इस धर्म का हर दूसरा मनुष्‍य नर्मदा किनारे जाकर अपने प्राण त्‍यागना चाहता है। और यहां तक कि अपनी देह के अंतिम हिस्‍से को भी वो नर्मदा के बहाव में ही प्रवाहित करना चाहता है।

दरअसल, इन सारे सवालों के जवाब अमृत लाल की मां नर्मदा के प्रति आस्‍था और निर्मल वर्मा के संदेह के ईर्द गिर्द ही मौजूद हैं। अमृत लाल नर्मदा को अपनी मां मानते हैं, वे उसके प्रति इतना आस्‍थावान हैं कि शेष सबकुछ नैपथ्‍य में हैं। उनका नर्मदा के प्रति उतना ही भरोसा है, जितना किसी दूसरे व्‍यक्‍ति का किसी पत्‍थर की प्रतिमा के प्रति है। वहीं निर्मल को उनके संदेह और सवालों में से ही यह आस्‍था प्रकट होती है, क्‍योंकि वे अपनी नंगी आंखों से आस्‍था के एक सैलाब, एक दृश्‍य को देखते हैं, जहां पहुंचकर उनका नतीजा संदेह और तर्क से कहीं परे ऊपर उठ जाता है, और वहां उन्‍हें अब किसी सवाल के जवाब की प्रतीक्षा नहीं है, वो सिर्फ उस आस्‍था को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं, महसूस करना चाहते हैं।

जैसे कहीं जमीन के किसी हिस्‍से में गढ़ा हुआ पत्‍थर ईश्‍वर है, ठीक वैसे ही बहता हुआ जल भी ईश्‍वर है। पत्‍थर रुका हुआ ईश्‍वर है, जल बहता हुआ ईश्‍वर है। जमीन में गढ़े हुए पत्‍थर रुककर तुम्‍हारी प्रार्थनाएं सुनते हैं और नदी का बहता हुआ पानी तुम्‍हारी प्रार्थनाओं की अर्जियां लेकर ऊपर किसी अज्ञात ईश्‍वर के पास जाता है। अगर तुम्‍हें पत्‍थर और पानी को देखना आता है, अगर तुम यकीन करते हो तो। यह सब सच है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दूध पीने से पहले भूलकर भी न खाएं ये 5 चीजें