Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अभिव्यक्ति की आड़ में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कब तक

हमें फॉलो करें अभिव्यक्ति की आड़ में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कब तक
webdunia

डॉ. नीलम महेंद्र

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एनडीटीवी को पठानकोट हमले की कवरेज के आधार पर देश की सुरक्षा के मद्देनजर 9 नवंबर को एक दिन के लिए अपना प्रसारण बंद रखने का आदेश दिया है। देश में हर तरफ से विरोध के स्वर उठने लगे हैं।
 
'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' ने भी प्रेस की आजादी के नाम पर सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी की दुहाई देने वाले संदेशों की सोशल मीडिया पर बाढ़ सी आ गई है।
 
अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बहुत ही अच्छी बात है, होना भी चाहिए, लेकिन अपने अधिकारों के प्रति संवेदनशील ये बुद्धिजीवी इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि अधिकार कुछ कर्तव्यों को भी जन्म देते हैं, ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं? बिना कर्तव्यों के निर्वाह के अधिकारों की बात करना शोभा नहीं देता।
 
हमारा देश आज वाकई एक कठिन दौर से गुजर रहा है। 1975 में जब कांग्रेस के शासनकाल में देश में आपातकाल लगा था तो वह दौर इतना बुरा नहीं था, क्योंकि आपातकाल स्पष्ट था लेकिन आज जिस दौर से देश गुजर रहा है, उसमें सब कुछ छद्म है। वो कहते हैं न कि सामने से वार का जवाब देना आसान होता है लेकिन आज वार पीठ पर हो रहा है। दुश्‍मन की पहचान हो जाए तो युद्ध आसान हो जाता है लेकिन जयचंदों को तो पहचाना भी मुश्किल होता है।
 
आज देश में एक अलग ही तरह के बौद्धिक वर्ग का निर्माण हुआ है, जो शब्दों के मायाजाल को माध्यम बनाकर अपने स्वार्थों और देश विरोधी गतिविधियों को बहुत ही चतुराई से अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के नाम देकर देश को गुमराह करने में लगे हैं। 
 
कैसी आज़ादी! कैसी स्वतंत्रता! आज आप सरकार के फैसले का विरोध कर पा रहे हैं, क्या ये आज़ादी नहीं है? आज आप सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं, क्या ये स्वतंत्रता नहीं है?
 
जो लोग आज आपातकाल की बात कर रहे हैं, क्या वे भूल गए हैं कि इंदिरा गांधी के शासनकाल में जो आपातकाल था उसमें प्रेस के साथ क्या सुलूक हुआ था? जो लोग आज केंद्र सरकार को तानाशाह का दर्जा दे रहे हैं, क्या वे कभी सऊदी अरब या फिर नार्थ  कोरिया गए हैं? जो लोग असहिष्णुता की दुहाई दे रहे हैं, क्या वे स्वयं अपने विचारों के अतिरिक्त दूसरे के विचारों को सहन कर पा रहे हैं।
 
पठानकोट हमले का कवरेज केवल एनडीटीवी ने नहीं किया था, सभी चैनलों ने इसे कवर किया था लेकिन प्रतिबंध केवल इसी चैनल पर लगा। एक चैनल पूरा मीडिया कैसे हो सकता है? एक चैनल के सिर्फ एक दिन के प्रतिबंधित होने से पूरे देश की मीडिया संकट में कैसे आ सकती है? जो कांग्रेस आज इसका विरोध कर रही है, उसके पास अपने द्वारा लगाए गए आपातकाल का क्या जवाब है? 
 
कारगिल युद्ध और 26/11 के मुंबई हमले में मीडिया की लाइव रिपोर्टिंग से देश और हमारे सैनिकों को होने वाले नुकसान के बाद 21 मार्च 2015 को सरकार ने 1995 के केबल प्रसारण अधिनियम में संशोधन करते हुए ये नियम बनाया था कि किसी भी आतंकवादी घटना का सीधा प्रसारण करते समय केवल सरकार द्वारा तय अधिकारी से प्राप्त सूचना को ही प्रसारित किया जाना चाहिए जब तक कि कार्यवाही पूरी न हो।
 
हम सभी जानते हैं कि 26/11 के हमले में जो टीवी के चैनलों ने लाइव टेलीकास्ट करके हमारे सुरक्षाबलों और उनकी कार्यवाही की सूचना और जानकारी का प्रसारण किया था, उससे हमारे देश का तो कोई भला नहीं हुआ अलबत्ता आतंकवादियों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को जरूर सूचनाएं प्राप्त होती गईं जिसकी कीमत हमें हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अशोक कामटे जैसे 11 जांबाज पुलिस अफसरों की शहादत से चुकानी पड़ी।
 
हमारी सरकार ने इस भूल का सुधार करके देश की सुरक्षा का संज्ञान लेते हुए कानून में संशोधन किया लेकिन काश कि यह टीवी चैनल भी अपनी भूल से सबक लेकर ऐसे संवेदनशील एवं देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अपनी भूमिका की गंभीरता को समझते!
 
एनडीटीवी की पठानकोट हमले की लाइव रिपोर्टिंग से एक बार फिर देश की सुरक्षा से जुड़ी खुफिया एवं संवेदनशील जानकारी उन लोगों तक पहुंच रही थी जो कि हमारे देश के लिए खतरा हैं। वह भी तब जब इस प्रकार की जानकारी की कीमत हम 26/11 को चुका चुके थे, इसे क्या समझा जाए नादानी या फिर भूल? क्या यह चैनल चलाने वाले लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ कहे जाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी इतने भोले हैं? इन्हें अपने अधिकारों का बोध तो है लेकिन देश के प्रति अपने कर्तव्यों का नहीं? कब तक अपनी देश विरोधी गतिविधियों को अपने मौलिक अधिकारों का जामा पहनाते रहेंगे?
 
जिस चैनल को देश विरोधी नारे लगाने वाला कन्हैया एक मासूम विद्यार्थी लगता है, पैलेट गन से घायल होने वाले पत्थरबाजों के मानव अधिकारों की चिंता होती है, हमारे जवानों की नहीं, सिमी आतंकवादियों के एनकाउंटर पर अफसोस है, पर शहीद जवान रमाशंकर की शहादत पर नहीं, उस चैनल की जवाबदेही किसके प्रति है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
 
यहां गौर करने लायक विषय यह भी है कि एनडीटीवी पर एक दिन का प्रतिबंध ऐसी खबरों के प्रसारण नहीं अपितु पठानकोट हमले के दौरान अति संवेदनशील जानकारियां प्रसारित करने के कारण लगाया गया है क्योंकि यह खुले तौर पर 2015 में संशोधित केबल एक्ट का उल्लंघन था।
 
बात सरकार के विरोध या सरकार की अंधभक्ति का नहीं है। सवाल सही और गलत का है। सवाल देश का है, उसकी सुरक्षा का है, हमारे सैनिकों हमारे जवानों का है, इस देश के हर नागरिक के अधिकारों का है। बात यह है कि देश पहले है। आचार्य चाणक्य ने भी कहा है कि राज धर्म और राष्ट्र धर्म में अंतर करना सीखो। राष्ट्र के प्रति अपने धर्म का पालन हर नागरिक का कर्तव्य भी है और अधिकार भी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मीडिया पर सेंसरशिप