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एक थी आनंदी .............. !!!

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स्मृति आदित्य

सुंदर बड़ी-बड़ी गोल-गोल चमकती हुई आंखें। दमकता चेहरा। खिलखिलाती हंसी.... अच्छी लगी थी वह आनंदी जब उसने अविका गौर के स्थान पर अपनी दस्तक दी थी... हालांकि कुछ लोगों के लिए एकदम से यूं उसे स्वीकार करना आसान न था क्योंकि आनंदी के रूप में अविका दिल में जगह बना चुकी थी। लेकिन नई आनंदी यानी प्रत्यूषा के भावप्रवण अभिनय ने बहुत जल्द ही दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया। सबसे अच्छी लगी थी उसकी मीठी सी आवाज और मासूम सा चेहरा...


बहरहाल, वह आज हमारे बीच नहीं है अभिनय की तमाम खूबसूरत संभावनाओं को समेट कर वह चली गई है इस क्रूर दुनिया से दूर....लेकिन हवा में तैर रहे हैं कुछ गहरे और गंभीर सवाल.... अगर मित्र राहुल से उनके संबंध ठीक नहीं थे तो क्या आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था? भावनात्मक संबंध इंसान को इतना कमजोर और कायर  क्यों बना देते हैं कि लगता है कि इस इंसान के बिना जिंदगी नहीं बचेगी। अगर किसी इंसान को आपकी जरूरत नहीं है तो कोई यह समझाने वाला क्यों नहीं है कि फिर आपको भी उसकी जरूरत इस हद तक नहीं होना चाहिए कि मौत के सिवा कोई विकल्प ही ना बचे। हम इतने कच्चे कैसे होते जा रहे हैं कि परिस्थितियों के दंश से बाहर नहीं आ सकते?  जब भी कोई इस तरह से रूखसत होता है तब बॉलीवुड का यह काला सच गंभीर रूप से विचारणीय हो जाता है। 

चमक-दमक चकाचौंध और उजालों से भरी इस दुनिया में दिल इतने छल-कपट और बेवफाइयों से भरे हैं कि आप कभी भी किसी पर विश्वास नहीं कर सकते लेकिन छोटे शहरों से इस 'दुनिया' में आए लोग इन मूल्यों पर अब भी कायम है कि रिश्तों में इमानदारी और पारदर्शिता जरूरी है। शायद यही सोच और भावनात्मक निर्भरता प्रत्युषा के लिए जानलेवा सिद्ध हुई। सवाल यह है कि इतनी बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में तमाम अधिकारों के लिए संगठन है पर मनोवैज्ञानिक समस्याओं के लिए कोई समूह नहीं, कोई संगठन नहीं....

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तभी मीना कुमारी से लेकर परवीन बॉबी तक और दिव्या भारती से लेकर जिया खान तक खामोश रहती है मौत, चीखती है जिंदगियां....अकेलापन अगर खतरनाक है तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है किसी बेवफा का साथ....पर मौत के बाद के सारे विश्लेषण बेमानी हैं, सारी अटकलें बेकार हैं। एक जिंदगी हंसती हुई दिखाई देती थी लेकिन उसके आंसुओं का हिसाब किसी के पास नहीं.....बहुत कुछ कर सकती थी प्रत्युषा अगर तुमने अपने किरदार 'आनंदी' को ही सही मायनों में जी लिया होता.... आनंदी को उसके पति ने कई बार धोखा दिया पर वह अपने व्यक्तित्व के दम पर कायम रही सच के लिए संघर्ष करती रही पर तुम हार गई क्योंकि तुम सिर्फ प्रत्यूषा रही.... अभिनय करती रही..... खैर...अब कुछ नहीं बचा।  
 
तुम्हारे अभिनय से प्रभावित थी इसलिए प्रशंसक के नाते दुखी होना लाजमी है। 
 
क्या तुम्हारी इस असमय मौत से सुधरेंगी-संभलेगीं अभिनय की दुनिया की वे लड़कियां जो अपने-अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ अपनी हर चीज शेयर कर रही हैं....सवाल यह है कि भावनात्मक मजबूती देना या होना किसकी जिम्मेदारी है माता-पिता की, दोस्तों की या स्वयं की...प्रत्यूषा तुम याद रहोगी पर मन कड़वा हो जाएगा कि तुम क्यों चली गई....    

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