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राहुल गांधी : भीड़ में भी तन्हा...

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फ़िरदौस ख़ान

राहुल गांधी देश और राज्यों में सबसे लंबे अरसे तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। वे एक ऐसे ख़ानदान के वारिस हैं जिसने देश के लिए अपनी जानें क़ुर्बान की हैं। राहुल गांधी के लाखों-करोड़ों चाहने वाले हैं। देश-दुनिया में उनके प्रशंसकों की कोई कमी नहीं है। लेकिन इस सबके बावजूद वे अकेले खड़े नज़र आते हैं। उनके चारों तरफ़ एक ऐसा अनदेखा दायरा है जिससे वे चाहकर भी बाहर नहीं आ पाते। एक ऐसी दीवार है जिसे वे तोड़ नहीं पा रहे हैं। वे अपने आसपास बने ख़ोल में घुटन तो महसूस करते हैं, लेकिन उससे निकलने की कोई राह, कोई तरकीब उन्हें नज़र नहीं आती।
 
बचपन से ही उन्हें ऐसा माहौल मिला, जहां अपने-पराये और दोस्त-दुश्मन की पहचान करना बड़ा मुश्किल हो गया था। उनकी दादी इंदिरा गांधी और उनके पिता राजीव गांधी का बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया। इन हादसों ने उन्हें वह दर्द दिया जिसकी ज़रा सी भी याद उनकी आंखें भिगो देती है। उन्होंने कहा था, 'उनकी दादी को उन सुरक्षा गार्डों ने मारा जिनके साथ वे बैडमिंटन खेला करते थे।'
 
वैसे राहुल गांधी के दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं है। कभी उन्हें जान से मार देने की धमकियां मिलती हैं, तो कभी उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके जाते हैं। गुज़शता अप्रैल में उनका जहाज़ क्रैश होते-होते बचा। कर्नाटक के हुबली में उड़ान के दौरान 41 हज़ार फुट की ऊंचाई पर जहाज़ में तकनीकी ख़राबी आ गई और वह 8 हज़ार फ़ुट तक नीचे आ गया। उस वक़्त उन्हें लगा कि जहाज़ गिर जाएगा और उनकी जान नहीं बचेगी। लेकिन न जाने किनकी दुआएं ढाल बनकर खड़ी हो गईं और हादसा टल गया। कांग्रेस ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ साज़िश रचने का इल्ज़ाम लगाया।
 
किसी अनहोनी की आशंका की वजह से ही राहुल गांधी हमेशा सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहे हैं, इसलिए उन्हें वह ज़िंदगी नहीं मिल पाई जिसे कोई आम इंसान जीता है। बचपन में भी उन्हें गार्डन के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने की इजाज़त नहीं थी। खेलते वक़्त भी सुरक्षाकर्मी किसी साये की तरह उनके साथ ही रहा करते थे। वे अपनी ज़िंदगी जीना चाहते थे, एक आम इंसान की ज़िंदगी। राहुल गांधी ने एक बार कहा था, 'अमेरिका में पढ़ाई के बाद मैंने जोखिम उठाया और अपने सुरक्षा गार्डों से निजात पा ली ताकि इंग्लैंड में आम ज़िंदगी जी सकूं।' लेकिन ऐसा ज़्यादा वक़्त नहीं हो पाया और वे फिर से सुरक्षाकर्मियों के घेरे में क़ैद होकर रह गए। हर वक़्त कड़ी सुरक्षा में रहना किसी भी इंसान को असहज कर देगा, लेकिन उन्होंने इसी माहौल में जीने की आदत डाल ली।
 
ख़ौफ़ के साये में रहने के बावजूद उनका दिल मुहब्बत से सराबोर है। वे एक ऐसे शख़्स हैं, जो अपने दुश्मनों के लिए भी दिल में नफ़रत नहीं रखते। वे कहते हैं, 'मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि नफ़रत पालने वालों के लिए यह जेल होती है। मैं उनका आभार जताता हूं कि उन्होंने मुझे सभी को प्यार और सम्मान करना सिखाया।' अपने पिता की सीख को उन्होंने अपनी ज़िंदगी में ढाला। इसीलिए उन्होंने अपने पिता के क़ातिलों तक को माफ़ कर दिया। उनका कहना है, 'वजह जो भी हो, मुझे किसी भी तरह की हिंसा पसंद नहीं है। मुझे पता है कि दूसरी तरफ़ होने का मतलब क्या होता है। ऐसे में जब मैं जब हिंसा देखता हूं चाहे वो किसी के भी साथ हो रही हो, मुझे पता होता है कि इसके पीछे एक इंसान, उसका परिवार और रोते हुए बच्चे हैं। मैं ये समझने के लिए काफ़ी दर्द से होकर गुजरा हूं। मुझे सच में किसी से नफ़रत करना बेहद मुश्किल लगता है।'
 
उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण का ज़िक्र करते हुए कहा था, 'मुझे याद है जब मैंने टीवी पर प्रभाकरण के मुर्दा जिस्म को ज़मीन पर पड़ा देखा। ये देखकर मेरे मन में दो जज़्बे पैदा हुए। पहला ये कि ये लोग इनकी लाश का इस तरह अपमान क्यों कर रहे हैं और दूसरा मुझे प्रभाकरण और उनके परिवार के लिए बुरा महसूस हुआ।'
 
राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत के मालिक हैं जिनसे कोई भी मुतासिर हुए बिना नहीं रह सकता। देश के प्रभावशाली राजघराने से होने के बावजूद उनमें ज़र्रा भर भी ग़ुरूर नहीं है। उनकी भाषा में मिठास और मोहकता है, जो सभी को अपनी तरफ़ आकर्षित करती है। वे विनम्र इतने हैं कि अपने विरोधियों के साथ भी सम्मान से पेश आते हैं, भले ही उनके विरोधी उनके लिए कितनी ही तल्ख़ भाषा का इस्तेमाल क्यों न करते रहें। किसी भी हाल में वे अपनी तहज़ीब से पीछे नहीं हटते। उनके कट्टर विरोधी भी कहते हैं कि राहुल गांधी का विरोध करना उनकी पार्टी की नीति का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ज़ाती तौर पर वे राहुल गांधी को बहुत पसंद करते हैं। वे ख़ुशमिज़ाज, ईमानदार, मेहनती और सकारात्मक सोच वाले हैं। बुज़ुर्ग उन्हें स्नेह करते हैं, उनके सर पर शफ़क़त का हाथ रखते हैं, उन्हें दुआएं देते हैं। वे युवाओं के चहेते हैं।
 
राहुल गांधी अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ 'जी' लगाते हैं। बड़ों के लिए उनके दिल में सम्मान है। उन्होंने जब सुना कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में दाख़िल कराए गए हैं, तो वे उनका हालचाल जानने के लिए अस्पताल पहुंच गए। वे इंसानियत को सर्वोपरि मानते हैं। अपने पिता की ही तरह अपने कट्टर विरोधियों की मदद करने में भी पीछे नहीं रहते। विभिन्न समारोहों में वे लाल्कृष्ण आडवाणी का भी ख़्याल रखते नज़र आते हैं।
 
राहुल गांधी छल और फ़रेब की राजनीति नहीं करते। वे कहते हैं, 'मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं। अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोलकर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता। मेरे अंदर ये है ही नहीं। इससे मुझे नुक़सान भी होता है। मैं झूठे वादे नहीं करता।' वे कहते हैं, 'सत्ता और सच्चाई में फ़र्क़ होता है। ज़रूरी नहीं है जिसके पास सत्ता है उसके पास सच्चाई है। वे कहते हैं, 'जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं, तो मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है। मेरे लिए उसकी यही पहचान है। अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है।'
 
कहते हैं कि सच के रास्ते में मुश्किलें ज़्यादा आती हैं और राहुल गांधी को भी बेहिसाब मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बचपन से ही उनके विरोधियों ने उनके ख़िलाफ़ साज़िशें रचनी शुरू कर दी थीं। उन पर लगातार ज़ाती हमले किए जाते हैं। इस बात को राहुल गांधी भी बख़ूबी समझते हैं, तभी तो उन्होंने विदेश जाने से पहले ट्वीट करके अपने विरोधियों से कहा था, 'कुछ दिन के लिए देश से बाहर रहूंगा। भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया ट्रोल आर्मी के दोस्तों, ज़्यादा परेशान मत होना। मैं जल्द ही वापस लौटूंगा।'
 
राहुल गांधी एक नेता हैं, जो पार्टी संगठन को मज़बूत करने के लिए, पार्टी को हुकूमत में लाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उनकी ही पार्टी के लोग ऐन चुनावों के मौक़ों पर ऐसे बयान दे जाते हैं, ऐसे काम कर जाते हैं जिससे विरोधियों को उनके ख़िलाफ़ बोलने का मौक़ा मिल जाता है। इन लोगों में वे लोग भी शामिल हैं, जो उनकी दादी, उनके पिता के क़रीबी रहे हैं। ताज़ा मिसाल पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की है जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में शिरकत करके सियासी बवाल पैदा कर दिया।
 
बहरहाल, राहुल गांधी तमाम अफ़वाहों और अपने ख़िलाफ़ रची जाने वाली तमाम साज़िशों से अकेले ही जूझ रहे हैं, मुस्कराकर उनका सामना कर रहे हैं।
 
(लेखिका 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' में संपादक हैं।)
 

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