बात यहां से शुरू करते हैं : 27 सफदरजंग, फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया का निवास बन जाए तो चौंकिए मत। लुटियंस जोन की इस कोठी से सिंधिया परिवार का नाता बहुत पुराना है। माधवराव सिंधिया सालों इसी कोठी में रहे और सांसद बनने के बाद से 2019 का लोकसभा चुनाव हारने तक यही कोठी ज्योतिरादित्य सिंधिया का आशियाना भी थी। बाद में सिंधिया ने इसे खाली कर दिया और केंद्रीय मंत्री के नाते रमेश पोखरियाल निशंक इसमें रहने आ गए थे। अब निशंक मंत्री रहे नहीं और सिंधिया फिर मंत्री बन गए। हालांकि वरिष्ठता के नाते सांसद रहते हुए भी निशंक इस कोठी में ही बरकरार रह सकते हैं, पर संकेत ये मिल रहे हैं कि आगे-पीछे यही कोठी फिर सिंधिया का आशियाना होगी।
राहुल भैया को काम की तलाश : अजय सिंह यानी राहुल भैया को काम की तलाश है। 2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही वे कहीं ठौर-ठिकाना नहीं पा सके है। जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तब थोड़ी बहुत पूछ-परख थी लेकिन कांग्रेस के फिर विपक्ष में आने के बाद यह भी खत्म हो गई। 4-6 महीने से कमलनाथ से भी पटरी नहीं बैठ रही है और राकेश चौधरी को रीवा का प्रभारी बनाए जाने के बाद से तो मामला और बिगड़ गया। पिछले दिनों फिर दोनों की मुलाकात हुई थी और इसी के बाद यह खबर छनकर सामने आई कि राकेश चौधरी से रीवा का प्रभार वापस लिया जा रहा है, पर अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं है। इधर खंडवा उपचुनाव में खाली बैठे अरुण यादव को जरूर काम दिलवा दिया है।
इसलिए अटकी है कलेक्टरों की तबादला सूची : सुनने में कुछ अटपटा लगेगा लेकिन यह 100 टका सही है कि कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित तबादला सूची पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के कारण जारी नहीं हो पा रही है। दरअसल, सत्ता और नौकरशाही के शीर्ष यानी मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव दोनों छतरपुर कलेक्टर शैलेंद्र सिंह को अब वहां नहीं रखना चाहते हैं। लेकिन जातिगत समीकरणों के चलते उमा भारती उन्हें वही बरकरार रखना चाहती हैं। अपनी इस इच्छा का इजहार वे मुख्यमंत्री से भी कर चुकी हैं और सरल-सौम्य मुख्यमंत्री उमाजी की इच्छा के विपरीत फैसला लेना नहीं चाह रहे हैं। अब यह तो सूची जारी होने पर ही पता चलेगा कि आखिर चली किसकी?
जयस के तीखे तेवर अभी भी बरकरार : एक समय जयस की अगुवाई करने वाले हीरालाल अलावा भले ही कांग्रेस से विधायक बन गए हो लेकिन जयस के तीखे तेवर अभी भी बरकरार हैं। ठीक वैसे ही जैसे 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले थे। नेमावर में 5 लोगों की नृशंस हत्या, मानपुर में अजनार नदी में जहरीले केमिकल मिलाए जाने की घटना सामने आने के बाद जो तेवर जयस ने दिखाए हैं। उसने भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंता को बढ़ा रखा है। जयस में सक्रियता के चलते पटवारी नितेश अलावा को आलीराजपुर कलेक्टर द्वारा निलंबित किए जाने के बाद जयस का जोबट जमावड़ा भी जबर्दस्त चर्चा में रहा। आने वाले समय में जोबट में उपचुनाव होना है और जयस की इस सक्रियता ने वहां भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंता को बढ़ा दिया है।
अग्रवाल को अहम जिम्मेदारी : केंद्र में सहकारिता महकमे को कृषि से अलग का एक तंत्र विभाग का स्वरूप देने के कारण भले ही मध्यप्रदेश के नुमाइंदे नरेंद्र सिंह तोमर का नुकसान हुआ हो लेकिन नए मंत्रालय में मध्यप्रदेश काडर के आईएएस अधिकारी विवेक अग्रवाल जरूर अहम भूमिका में रहेंगे। गृहमंत्री अमित शाह के सहकारिता विभाग का प्रभार संभालने के बाद नौकरशाहों की जो पहली टीम उनसे कामकाज के बारे में संवाद करने गई, उसमें अग्रवाल भी शामिल थे। कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव रहते हुए भी वे प्रधानमंत्री किसान योजना को देखते थे। शिवराज सिंह चौहान के चौथी बार प्रदेश की कमान संभालने के बाद अग्रवाल को वापस मध्यप्रदेश लाने की कोशिश भी हुई थी, पर वह मूर्तरूप नहीं ले पाई।
नई भूमिका में विवेक तन्खा : राजनेता और विधिवेत्ता के रूप में तो विवेक तन्खा की अच्छी-खासी पहचान है। लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने जिस शिद्दत के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया, उसने उन्हें प्रदेश में एक नई पहचान दी है। यह भूमिका खुद तन्खा को भी ज्यादा पसंद आ रही है और इस काम में उनकी मदद के लिए देश के कई बड़े घराने निजी संबंधों के चलते मदद के लिए आगे भी आ रहे हैं। महाकौशल के बाद तन्खा अब मालवा-निमाड़ क्षेत्र में लोगों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। एक बात और है तन्खा कांग्रेस के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं, जो बहुत बेबाकी के साथ सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सामने अपनी बात रखते हैं और यह बताने से भी नहीं चूकते हैं कि नेतृत्व कहां गलती कर रहा है?
क्या डॉ. सिकरवार बनेंगे एमपीपीएससी के अध्यक्ष : मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग अभी कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. राजेश लाल मेहरा के भरोसे चल रहा है। वैसे इस संवैधानिक संस्था में ज्यादा समय ऐसी व्यवस्था चल नहीं सकती है। लेकिन नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए कमेटी का गठन होने के बावजूद अभी तक फैसला नहीं हो पा रहा है। वैसे आयोग के कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए भाजपा और संघ का एक बड़ा धड़ा अभी सदस्य की भूमिका का निर्वहन कर रहे पूर्व आईपीएस डॉ. रमन सिंह सिकरवार को अध्यक्ष पद देने के पक्ष में हैं। अपनी निष्पक्ष कार्यशैली और सख्त प्रशासक की छवि के चलते ही अध्यक्ष पद के लिए डॉक्टर सिकरवार का चयन आयोग के लिए भी फायदे का सौदा रहेगा।
पद 4, दावेदार दर्जनभर : चंबल के आईजी मनोज शर्मा रिटायर हो चुके हैं, योगेश देशमुख उज्जैन में एडीजी के रूप में काम करने के इच्छुक नहीं है और शहडोल जोन के एडीजी जी. जनार्दन को सरकार की रुचि वहां रखने में नहीं। सितंबर में जबलपुर जोन के आईजी भगवत सिंह चौहान भी सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इन 4 महत्वपूर्ण पदों पर अब किसे मौका मिलेगा, इस पर सबकी नजर है। वैसे इन 4 पदों के लिए दावा एक दर्जन से ज्यादा अफसरों का है और इनमें से कुछ तो यह मानकर चल रहे हैं कि अब तो उन्हें मौका मिल ही जाएगा।
चलते-चलते... : यह लगभग तय सा है कि यदि कमलनाथ को दिल्ली में कांग्रेस में कोई अहम भूमिका मिलती है तो भी मध्यप्रदेश कांग्रेस में तो वही होगा, जैसा वे चाहेंगे। यहां 2023 का चुनाव उन्हीं की अगुवाई में लड़ा जाएगा।