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चर्चा में है भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का आक्रामक अंदाज

राजबाडा 2 रेसीडेंसी

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अरविन्द तिवारी

, सोमवार, 19 अक्टूबर 2020 (19:28 IST)
बात यहां से शुरू करते हैं : मौके का फायदा उठाकर अपना प्रोफाइल कैसे बड़ा किया जाए यह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से बेहतर और कोई नहीं समझता। पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके उपचुनाव के इस दौर में भाजपा  के 2 स्टार प्रचारक शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया तो अपने काम में लगे ही हैं लेकिन शर्मा ने बूथ सम्मेलनों के नाम पर जिस तरह से सघन दौरे शुरू किए हैं और जिस अंदाज में वे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से रूबरू हो रहे हैं वह भाजपा में एक नए युग के आगाज का स्पष्ट संकेत है। मत चूको चौहान के अंदाज में वीडी  इन दिनों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के खिलाफ जिस तरह आक्रामक तेवर अख्तियार किए हुए हैं उसकी भी बड़ी चर्चा है। यह आक्रामक और आत्मविश्वास भरा अंदाज कार्यकर्ताओं और मीडिया को भी पसंद आ रहा है।
 
सिंधिया का 'महाराज' वाला ग्लैमर :  क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया अब फिर अपने 'महाराज' वाले ग्लैमर में लौट जाना चाहते हैं? बीजेपी और कांग्रेस दोनों जगह इसकी बड़ी चर्चा है। एक समय था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे और मध्यप्रदेश कांग्रेस पर कब्जा करने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे तब उनके उस समय के रणनीतिकारों ने तय किया था कि 'महाराज' वाली छवि से बाहर निकला जाए लेकिन अभी उपचुनाव में ये बदलाव देखने को मिला है कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में सिंधिया ने खुद ही खुद को 'महाराजा ग्वालियर' कह रहे हैं। उनके दो ऐसे वीडियो वायरल भी हुए हैं, जिनमें एक जगह उन्होंने भांडेर में कार्यकर्ताओं से कहा कि- 'सभी गांवों में खबर पहुंचा दो कि ये चुनाव प्रत्याशी रक्षा सिरोनिया का नहीं बल्कि महाराजा सिंधिया का है।' दूसरी जगह बीजेपी के बूथ कार्यकर्ताओं से सिंधिया ने कहा; 'देखो तुम्हारा फॉर्म खुद महाराजा ग्वालियर भर रहा है।'
 
कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता हैं कमलनाथ : कुछ भी हो कमलनाथ मध्यप्रदेश के नेता के रूप में स्थापित हो गए। 2018 की जून में जब कमलनाथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मध्यप्रदेश की 'फुल-टाइम पॉलिटिक्स' करने आए थे तब तमाम शंका-कुशंकाएं थीं। क्योंकि उससे पहले कमलनाथ मध्यप्रदेश से सांसद और केंद्रीय मंत्री जरूर थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर समय दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति में बिताया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बग़ावत से 15 महीने के छोटे कार्यकाल में कमलनाथ की सरकार भले गिर गई हो लेकिन कमलनाथ आज मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। 2 साल पहले तक जिसे 'दिल्ली का नेता' माना जाता था वह कांग्रेस पार्टी में मजबूत क्षत्रप के रूप में स्थापित हो गया। प्रदेश में आज भी इस बात की चर्चा तो है कि यदि सरकार नहीं गिरती तो ऐसा हाई प्रोफाइल मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश का भाग्य बदल सकता था।
 
गजब का तालमेल दिखा रहे हैं बाबू-गोविंद : इंदौर की भाजपा राजनीति में बाबू सिंह रघुवंशी और गोविंद मालू को विपरीत ध्रुव माना जाता है। दोनों की मत भिन्नता पार्टी में अलग-अलग स्तरों पर चर्चा का विषय रही है और बड़े नेताओं के लिए परेशानी का कारण भी। लेकिन इस बार यह मिथक टूट गए। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने इंदौर में मालवा निमाड़ क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों के लिए जो वार रूम बनाया उसमें प्रभारी की भूमिका रघुवंशी और मीडिया प्रभारी की भूमिका मालू को दी गई, साथ में उमेश शर्मा भी थे। दोनों नेता वार रूम में न केवल पूरे समन्वय के साथ काम कर रहे हैं बल्कि माध्यमिक तरीके से मुद्दों को आगे लाते हैं। एक दूसरे के मददगार की भूमिका में भी है। 
 
एक और पूर्व मुख्‍य सचिव सरकार के निशाने पर : आर परशुराम और एंटोनी डिसा के बाद मध्य प्रदेश के एक और पूर्व मुख्य सचिव बीपी सिंह सरकार के निशाने पर आ सकते हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त के संवैधानिक पद पर आसीन सिंह काफी समय से सरकार के निशाने पर हैं। यह भी माना जा रहा है कि सरकार का रुख अपने अनुकूल ना देखते हुए सिंह खुद पद छोड़ने की पेशकश कर सकते हैं। कोई कुछ भी कहे लेकिन इंदौर के खासगी ट्रस्ट मामले में उनकी भूमिका पर सवाल तो उठ रहे हैं। जो फैसले ट्रस्ट ने उनके इंदौर  संभागायुक्त रहते लिए और उन्हीं के अनुमोदन से सरकार तक पहुंचे उसमें गड़बड़ियां तो हैं। हालांकि खुद सिंह इस सबसे पल्ला झाड़ चुके हैं।
 
द ट्रेसेबलेटी ऑफ बुलेट : पुलिस और नवाचार कुछ अटपटा सा लगता है सुनने में लेकिन भिंड के एसपी मनोज कुमार सिंह पर इसकी धुन सवार है। नीमच, मंदसौर के एसपी रहते हुए डोडा चूरा तस्करी के झंझट से मुक्ति का जो प्रस्ताव उन्होंने आगे बढ़ाया था वह जिस दिन मूर्त रूप ले लेगा लोग डोडा चूरा तस्करी की हिम्मत भी नहीं कर पाएंगे। अब जब सबकी निगाहें चुनाव के कारण भिंड और मुरैना पर हैं, सिंह ने यह सुनिश्चित करवा दिया है कि चुनावी हिंसा में जिस बंदूक से गोली चलेगी उसका खाली कारतूस यह बता देगा कि गोली किसने चलाई। दरअसल सिंह के ड्रीम प्रोजेक्ट 'द ट्रेसेबलेटी ऑफ बुलेट' के तहत हर लाइसेंसी बंदूक के लिए खरीदे गए कारतूस पर अब क्यूआर कोड अंकित करवाया जा रहा है, जिसमें हथियार धारी का पूरा लेखा जोखा रहेगा और हिंसा की स्थिति में हथियार धारी को बेनकाब करेगा।
 
चट्टान और भैया : यह दो शब्द हमें असमय छोड़ कर चले गए आईपीएस अफसर संजीव सिंह के लिए उनके बैचमेट उपयोग करते थे। सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय में विशेषज्ञ की भूमिका का निर्वहन कर रहे संजीव सिंह के बारे में बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि वह हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर जितने आईपीएस अधिकारी पदस्थ हैं उनमें से आधे यानी करीब 1500 को व्यक्तिगत तौर पर जानते थे और हमेशा संपर्क में रहते थे। एनआईए में कार्यरत रहते हुए उन्हें चाहे श्रीनगर जाना पड़ा हो या गंगटोक; यदि उस राज्य में उनका कोई बैचमेट पदस्थ रहता था तो वह उससे मिलने के लिए 500-700 किलोमीटर अतिरिक्त ट्रैवल करने से भी परहेज नहीं करते थे।  
 
तिवारी की नई पुस्तक : राज्य सूचना आयुक्त के रूप में नवाचार के साथ ही बहुत ईमानदारी के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे पत्रकार विजय मनोहर तिवारी अपना लिखने पढ़ने का शौक भी बखूबी पूरा कर रहे हैं। सात पुस्तकें लिख चुके तिवारी की एक और पुस्तक 10 नवंबर तक बाजार में आने की संभावना है। 'उफ ये मौलाना' शीर्षक से प्रकाशित होने वाली इस पुस्तक को लेकर काफी जिज्ञासा है। 420 पेज के इस दस्तावेज में कोरोना काल में मुस्लिम समुदाय खासकर मरकज की भूमिका पर विस्तार से कटाक्ष किया गया है।
 
चलते चलते : विधानसभा उपचुनाव ने अजय सिंह राहुल और अरुण यादव की ग्रह दशा बदली है। अभी तक प्रदेश की कांग्रेस  राजनीति में उपेक्षित चल रहे दोनों नेता अब कमलनाथ के इर्द-गिर्द नजर आने के साथ ही दौरे में भी साथ रह रहे हैं।
 
पुछल्ला : परिवहन आयुक्त पद से हटने के सदमे से वी मधुकुमार अभी तक उबर नहीं पाए हैं। ऐसी चर्चा है कि जल्दी ही वे मध्यप्रदेश को अलविदा कह सकते हैं। 
 

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