बात यहां से शुरू करते हैं : ई-टेंडर घोटाले की जांच मध्यप्रदेश की राजनीति में अपना असर दिखाने लगी है। नेता और नौकरशाही में ई-टेंडर मामले के अपने-अपने प्लस-माइनस हैं। राज्य में आर्थिक अपराध ब्यूरो और केंद्र में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों सक्रिय हुए हैं। ईडी ने इस मामले में एक गिरफ्तारी भी की है। इस जांच की दिशा देखना, आने वाले समय में दिलचस्प होने वाला है।
असल में ई-टेंडर में मामले में जब भाजपा, शिवराज सरकार और ईडी सक्रिय हुए तो लगा कि तैयारी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को घेरने की तैयारी है। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि मामला इतना सीधा नहीं है। बीजेपी और नौकरशाही की अंदरूनी राजनीति भी इसमें अपना खेल, खेल रही है, क्योंकि ई-टेंडर घोटाले में पुरानी शिवराज सरकार के बड़े मंत्री और नौकरशाह भी गहरे में धंसे हैं...। जांच की जिग-जैग पगडंडी को देखते रहिए।
क्यों परेशान हैं कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर? : कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर खासे परेशान हैं। 26 जनवरी की हिंसा के बाद कमजोर होता दिख रहा किसान आंदोलन फिर पटरी पर लौट आया है। लेकिन तोमर की चिंता की वजह दूसरी है। असल में आंदोलन के बीच-बीच में कुछ किसान संगठनों को कृषि कानूनों का समर्थक बताकर खड़ा करने की उनकी रणनीति उतनी असरकारक नहीं रही जितना सोचा गया था। बताते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस विफलता से नाराज है बल्कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी आंदोलन बड़ा होने की खुफिया सूचना ने पीएमओ को नाराजगी को बढ़ा दिया है। हालांकि इस मैनेजमेंट के फेल होने में नरेन्द्र तोमर के साथ पीयूष गोयल भी बराबर के जिम्मेदार माने जा रहे हैं।
बड़ी भूमिका में केके मिश्रा : केके मिश्रा की गिनती उन नेताओं में होती है, जो लाभ-शुभ का गणित देखे बिना काम करते हैं। जब महेश जोशी कांग्रेस में बहुत ताकतवर थे तब मिश्रा की उनसे नहीं पटी। प्रवीण कक्कड़ जब कांतिलाल भूरिया के साथ थे तब मिश्रा और कक्कड़ की अदावत रही। कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने मिश्रा को मंत्रालय की 5वीं मंजिल पर बैठाने की तैयारी कर ली थी, कमरा तक मुकर्रर हो गया था। इस सबसे मिश्रा को कोई फर्क नहीं पड़ा। उनके तीखे तेवर हमेशा बरकरार रहे। अब वे कमलनाथ की अध्यक्षता वाली प्रदेश कांग्रेस में महासचिव मीडिया की भूमिका निभाते हुए प्रदेश कांग्रेस और जिला इकाइयों के बीच समन्वय का काम देखेंगे।
शिवराज का मास्टर स्ट्रोक : इसे तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मास्टरस्ट्रोक ही कहा जाएगा। किसी ने सोचा भी नहीं था कि आईजी पद पर पदोन्नत हुए हरिनारायण चारी मिश्रा को इंदौर जोन की कमान ही मिल जाएगी। माना यह जा रहा था कि उन्हें उज्जैन या जबलपुर में से कहीं मौका मिलेगा। लेकिन मुख्यमंत्री ने संघ की पसंद से वाकिफ होने के बाद अपने इस ब्लू आइड अफसर को इंदौर का ही आईजी बना एक तरह से तुरुप का इक्का ही चल दिया। मुख्यमंत्री का इशारा भी साफ है कि जो अक्सर मेहनत करेंगे और सबसे तालमेल जमाकर काम करेंगे, उनका सम्मान हमेशा बरकरार रहेगा।
इसलिए लोकप्रिय हैं कपूरिया : ना तनाव लेना ना तनाव देना, पर काम में कोई कोताही नहीं बरतना। यह फॉर्मूला है इंदौर के नए पुलिस कप्तान डीआईजी मनीष कपूरिया का और इसी ने उनका शुमार बेहद लोकप्रिय और कर्मठ पुलिस अफसर की श्रेणी में करवा रखा है। वरिष्ठ और मातहत अफसर इसी कारण उनका सम्मान करते हैं। एक बात और जान लीजिए कि नए डीआईजी मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और डीजीपी तीनों के बहुत भरोसेमंद माने जाते हैं। बालाघाट में एसपी रहते हुए उन्होंने कई बड़े नक्सलवादियों के निपटारे में अहम भूमिका निभाई और सीहोर में एसपी रहते हुए अपनी कार्यशैली से मुख्यमंत्री के प्रिय पात्र बने। मुख्यालय में वे डीजीपी के स्टाफ ऑफिसर की भूमिका भी निभा चुके हैं।
स्टेट बार काउंसिल में उठा-पटक : स्टेट बार काउंसिल में जिस तरह की उठा-पटक चल रही है, उससे तो यही लग रहा है कि इस बार 5 साल का कार्यकाल पूरा होने तक काउंसिल में कई अध्यक्ष देखने को मिल जाएंगे। काउंसिल के सदस्य 2-3 गुटों में बैठे हुए हैं। वर्तमान अध्यक्ष विजय चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। पूर्व अध्यक्ष और अध्यक्ष पद के एक दावेदार शिवेन्द्र उपाध्याय को बार काउंसिल ऑफ इंडिया नोटिस जारी कर चुकी है। सालों तक काउंसिल के अध्यक्ष रहे रामेश्वर नीखरा फिलहाल खामोश हैं, पर उन्हें भी वक्त का इंतजार है। देखते जाइए आगे-आगे होता है क्या?
संघ को पसंद नहीं विवाद : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक खासियत है। संघ अपने किसी भी दिग्गज को चाहे वह कितनी भी बड़ी भूमिका में क्यों न हो, कभी विवादों में देखना पसंद नहीं करता, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे संघ पर भी उंगली उठने लगती है। पिछले दिनों आयकर और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर आए संघ के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को, जो गुरुजी सेवा न्यास में भी अहम भूमिका में हैं, यदि कुछ दिनों बाद आप पार्श्व में जाता देखें तो चौंकिए मत। संघ में इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई है और पुराना अनुभव यह कहता है कि अब इसमें ज्यादा देरी नहीं होना है।
हाई जजों की नियुक्ति का मामला : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए जो नाम 6 महीने पहले आगे बढ़ाए गए थे, उन पर भले ही अभी तक फैसला नहीं हो पाया हो लेकिन जल्दी ही हाईकोर्ट की फुल बेंच मीटिंग होने वाली है जिसमें हाई कोर्ट जज के लिए दिल्ली भेजे जाने वाले वकील कोटे के नामों पर स्वीकृति की मोहर लगाई जाएगी। यह माना जा रहा है कि इस बार 5 और वकीलों के नाम दिल्ली पहुंचाए जाएंगे।
चलते चलते... : पहले कांग्रेस और अब भाजपा सरकार में मंत्री के बेटे एक केंद्रीय एजेंसी के रडार पर हैं। कमलनाथ के मुख्यमंत्री काल में कुछ लोगों के साथ लगातार फोन पर हुए संवाद मंत्री-पुत्र के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।
एक बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर कारोबारी ब्रज गोयल के बेटे और कांग्रेस नेता अरविंद बागड़ी की बेटी की आलीशान डेस्टिनेशन मैरिज इन दिनों शहर में चर्चा में हैं। कोरोना कॉल के बाद की इस भव्य शादी को लेकर पड़ताल भी हो रही है।
पुछल्ला : इस बात में कितनी सत्यता है कि इंदौर से उज्जैन स्थानांतरित किए गए एडीजी योगेश देशमुख ने उज्जैन के बजाय पुलिस मुख्यालय जाना बेहतर समझा है। ऐसा कहा जा रहा है कि वे अपनी भावना से प्रदेश पुलिस के मुखिया को भी अवगत करा चुके हैं।