जिस शुभ घड़ी का इंतजार देश ही नहीं दुनिया को था, आखिर वह आ ही गई। राम मंदिर के लिए देश ने जो सपना देखा था, वह पूरा हो रहा है। देखने वाले राम मंदिर को भले ही धार्मिक नजरिए से देखें लेकिन वह इससे कहीं अलग भारत की सद्भावना और शान का मुद्दा बनता गया और अंततः एक पहचान भी।
राम अपने जन्म स्थान में रहेंगे यही तो सब चाहते थे यहां तक कि वो पक्षकार भी जिनका इससे सीधा सरोकार था। राम मंदिर को लेकर देश भर में चाहे जैसे मुद्दे बनते रहे हों और राजनीति वक्त की चाशनी के साथ अलग-अलग पर्तों में जमती रही, पर सच यह है कि जन्म भूमि के मूल निवासी यही चाहते थे कि मंदिर अयोध्या में ही बने और रामलला जहां थे वहीं विराजें।
अब तो राम मंदिर देश की आस्था और अस्मिता से भी जुड़ गया। तभी तो 130 करोड़ की आबादी में 150 लोगों को भेजा गया निमंत्रण पूरे देश को भेजे निमंत्रण जैसा लग रहा है। इसमें सबसे खास निमंत्रण जो पूरे देश को सच में अच्छा लगा वह है बाबरी मंदिर के पक्षकार हाजी महबूब इकबाल अंसारी को बुलाया जाना। उनकी खुशी और भावना को इसी से समझी जा सकती है कि वह प्रधानमंत्री को रामचरित मानस और रामनामी गमछा भेंट करेंगे। सैकड़ों वर्षों के विवाद के घटनाक्रम में इससे सुन्दर दूसरा पल शायद और कभी हो भी नहीं हो सकता। यही तो भारत की खासियत है।
यूं तो इस पूरे विवाद में हाजी इकबाल से पहले उनके पिता हाशिम अंसारी राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सबसे पुराने पक्षकार थे जिनके 2016 में निधन के बाद इकबाल अंसारी बने। लेकिन इस पूरे मामले में देश में जहां-तहां भले ही कई बार तनाव की स्थितियां बनीं परन्तु बाबरी मस्जिद के दोनों पक्षकारों की मित्रता हमेशा चर्चाओं में रही। सभी ने देखा कि कई मौकों पर इस विवाद के दोनों पक्षकारों की करीबी मित्रता हैरान करती रही। लेकिन यह सच है कि परस्पर विरोधी पक्षकार होकर भी अभिन्न मित्र अंत तक बने रहे।
मंदिर हर भारतीय का है यह बात इससे भी साबित होती है कि डेढ़ सौ आमंत्रितों में एक दूसरे मुस्लिम भी हैं जिन्हें लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार के लिए पद्म श्री भी मिल चुका है। वह हैं पद्मश्री मोहम्मद शरीफ। यही तो भारत की रवायत है। वाकई मंदिर सबका है।
कुछ भी हो जो सर्वमान्य हल सर्वोच्च न्यायालय ने दिया निश्चित रूप से एक नजीर भी है और समाधान भी। 5 अगस्त बुधवार को उसी नजीर पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राम मंदिर की आधार शिला रख लंबे समय से विवादित मुद्दे के समाधान की बुनियाद पर नई इमारत की आधारशिला रख, स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक नई इबारत लिखेंगे। राम सबके हैं, देश राम का है। यही भावना इस कार्यक्रम में भी साफ झलक रही है।
महज 150 आमंत्रितों को इतने बड़े देश से चुनना बेहद मुश्किल भरा काम था जिसे आयोजकों ने बखूबी निभाया। इन चुनिंदा लोगों को भेजे गए आमंत्रण भी अपने आप में देश का एक ऐतिहासिक दस्तावेज होने जा रहा है। जो भारत का एक यादगार व हमेशा संजोकर रखा जाने वाला आमंत्रण होगा जिसको देखने के लिए भी लोग उमडेंगे।
यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या, सरयू के तट पर स्थित देश के सुन्दर नगरों में शुमार है। जिसकी भव्यता पहले भी कम न थी और अब देखते ही बनेगी। वैसे भी अयोध्या का इतिहास बेहद संपन्न रहा है। यह देश के धर्म निरपेक्ष ढ़ांचे के लिए भी एक मिशाल जैसे है क्योंकि जहां बौध्द धर्मावलंबी इस जगह को साकेत कहते हैं वहीं सिख और जैन भी अपने-अपने रिश्ते बताते हैं। जबकि साढ़े 400 सालों से ज्यादा वक्त तक बाबरी मस्जिद भी यहीं रही। कुल मिलाकर अयोध्या भारत की सर्वधर्म समभाव की पावन स्थली बन चुकी है और कहा जा सकता है कि भगवान राम की ही महिमा थी जो सभी धर्मों की आस्था यहां जुड़ती चली गई और अंत में वापस भगवान अपने धाम में भव्यता से खुली हवा में विराजमान होकर अलग संदेश देकर देश के लिए एक नए युग का सूत्रपात करेंगे।
समय के चक्र के साथ अयोध्या में रामलला विराजमान ने भी कई दौर देखे। जहां 1990 में करीब सवा महीने तक अडवाणी जी की रथयात्रा के चलते एकाएक हुए सांप्रदायिक तनाव से 300 लोगों की मृत्यु तक हो गई तो बिहार के समस्तीपुर में रथ को रोक कर जबरदस्त तनाव उत्पन्न कर दिया गया। इसके बाद 1992 में 6 दिसंबर को बाबरी विध्वंस से भी तनाव व इससे हुई मौतों ने दुनिया भर में भारत के खिलाफ इस घटना पर एक नयी बहस को जन्म दिया। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदलता चला गया और अंततः 9 नवंबर 2019 को देश के इतिहास में आए पहले बहुप्रतीक्षित महा ऐतिहासिक फैसले ने जैसे बड़ी सहजता से सब कुछ हल कर दिया और रामजन्म भूमि विवाद का पटाक्षेप कुछ यूं हुआ कि कई दिनों तक लगा कि जैसे कोई सपना तो नहीं?
कोरोना के चलते आयोजन की भव्यता में तो कोई कमीं नहीं आई लेकिन साक्षात उपस्थिति पर जरूर विराम लग गया। बावजूद लाखों लोगों की उपस्थिति के कोशिश यह दिखी कि वे लोग जरूर शामिल हों जो सीधे तौर पर पूरे मामले से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं। तभी तो अयोध्या में रहने वाले उन परिवार के सदस्यों को भी बुलाया गया जिनके परिवार के लोग उस दौरान गोलियों से मार दिए गए थे। सिख, बौद्ध, आर्यसमाजी, जैन, वैष्णव सभी परंपरा के लोग भूमि पूजन में आ रहे हैं। उम्रदराज लोगों को जरूर स्वास्थ्य कारणों के चलते उन्हें बताकर दूर रखा गया है। इस कार्यक्रम में देश के लगभग 2000 पावन तीर्थ स्थलों की पवित्र मिट्टी और लगभग 100 पवित्र नदियों का जल पहले ही भूमिपूजन के लिए जन्म स्थल पर पहुंच चुका है।
शिलान्यास के लिए 5 अगस्त की तारीख के संयोग को जरूर देखना चाहिए। लेकिन इस पर हल्की राजनीति या नुक्ताचीनी की जरूरत नहीं। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के प्रतिबंधों को 5 अगस्त 2019 को हटाया गया था। जिससे कश्मीर को जो स्वायत्तता मिलती थी, जो अलग अधिकार मिलते थे, वे सब खत्म हो गए और पूरे देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान, का कानून भी प्रभावहीन हो गया।
हां अनुच्छेद 370 का खंड एक लागू है जो कहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। लगातार दो बरस और एक सी तारीख, महीना? यह इतिहास के विद्यार्थियों के साथ ही प्रशासनिक चयन के प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लोगों के साथ देश के लिए सुनहरे अक्षरों में लिखी जाने वाली तारीख जरूर होगी। इसको लेकर बेफिजूल की बातों का यह वक्त नहीं है।
निश्चित रूप से राम मंदिर का भूमिपूजन देश की आस्था, विश्वास और पहचान का प्रतीक चुका है। तभी तो पक्ष तो ठीक, पक्षकार और विपक्ष का भी खुला समर्थन मिलने लगा है। मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाए जाने की शुरुआत का स्वागत करते हुए खुद को रामभक्त बताया और अपने घर पर राम दरबार सजाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने की बात कह कर एक अच्छा संदेश दिया है। भारत में 5 अगस्त 2020 की नई सुबह उस कसम या संकल्प को पूरा होते देखने वाला ऐतिहासिक दिन होगा जो देश ही नहीं दुनिया के इतिहास का अजर, अमिट व रत्न जड़ित पन्नों पर स्थाई रूप से दर्ज दिन होगा और जिस पर कुछ यूं लिखा होगा कि कसम राम की ऐसी खाई जो मंदिर बनाने की शुभ घड़ी आई।
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अनुभूति है, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)