Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

रामचन्द्र सिंहदेव : विचारों की दृढ़ता और अभिव्यक्ति में बेबाक

हमें फॉलो करें रामचन्द्र सिंहदेव : विचारों की दृढ़ता और अभिव्यक्ति में बेबाक
-रघुराज सिंह
 
चिंतक, राजनीतिज्ञ, लेखक और एक आला दर्जे के इंसान रामचन्द्र सिंहदेव का निधन पिछले दिनों रायपुर में हो गया। वे 18 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ जाकर वहां सक्रिय हो गए। सिंहदेव 1967 से 2000 तक मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य, मंत्री और राज्य योजना मंडल के उपाध्यक्ष रहे। मध्यप्रदेश के योजनागत विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विकास के क्षेत्र में काम करने वालों के बीच उनकी बात ध्यान से सुनी जाती थी। वे विधानसभा में वैकुंठपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे, जहां उनका जन्म हुआ था।


 
मध्यप्रदेश के विभाजन के पश्चात उनका कार्यक्षेत्र छत्तीसगढ़ हो गया, जहां वे राज्य के पहले वित्तमंत्री बने। छत्तीसगढ़ में उनके 18 साल के दौर में मध्यप्रदेश में उन्हें लगभग भुला ही दिया। शायद यही कारण रहा कि मध्यप्रदेश के किसी समाचार पत्र में उनके निधन का समाचार नहीं छपा। सन्‌ 1930 में जन्मे वे कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह के छोटे बेटे थे। उनकी स्कूली शिक्षा राजकुमार कॉलेज रायपुर और उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई, जहां से उन्होंने एमएससी और पीएचडी की उपाधियां प्राप्त कीं। वीपी सिंह, चन्द्रशेखर और अर्जुन सिंह विश्वविद्यालय में उनके समकालीन थे।

 
सन्‌ 1980 के आसपास उनके लिखे एक लंबे अंग्रेजी निबंध 'सिविलाइजेशन इन ए हरी' का हिन्दी अनुवाद 'सभ्यता' हड़बड़ी में 'अक्षरा' पत्रिका में पढ़ा था। बाद में यह निबंध एक पुस्तिका के आकार में छपकर विकास के क्षेत्र में सक्रिय नीति-निर्धारकों और देश के बुद्धिजीवियों के बीच लंबे समय तक चर्चा का केंद्र बना रहा। यह निबंध एक चेतावनी के रूप में विकास की उस अवधारणा से असहमति का दस्तावेज था जिसके क्रियान्वयन की शुरुआत 80 के पहले के दशकों में बड़े पैमाने पर हुई थी और जिसके दुष्प्रभाव सामने आने लगे थे।

 
उसमें इस आशय का एक वाक्य था कि 'प्राकृतिक संसाधन हमें विरासत में नहीं मिले, यह तो आने वाली पीढ़ियों की अमानत है।' यह निबंध आज भी प्रासंगिक है लेकिन आसानी से उपलब्ध नहीं है। बड़े बांधों को लेकर राहत और पुनर्वास के मुद्दे पर उनके विचार सरकारों के पारंपरिक विचारों से अलग थे और कई बार वे नर्मदा आंदोलन के नेतृत्व से सहमत दिखते थे जिनके निरंतर संपर्क उनसे थे। विचारों की दृढ़ता और अभिव्यक्ति में बेबाकी उनका एक विरल गुण था। उनके सरल और सज्जन राजनीतिज्ञ व्यक्तित्व से विद्वता और गरिमा अत्यंत विनम्रता से व्यक्त होती थी। उनकी विद्वता का आतंक सामने वाले पर कभी नहीं हुआ।

 
मुझे याद पड़ता है कि मैं उनसे 1985 में उनके योजना आयोग के कार्यालय में मिला था, तब उन्होंने मुझे 'सिविलाइजेशन इन ए हरी' की छोटी-सी पुस्तिका के आकार में छपी एक प्रति के साथ 2 पृष्ठों में अंग्रेजी में टाइप एक और लेख दिया था, जो मालवा में खेती विशेषकर गेहूं की खेती में हुए बदलाव के विषय में था। यह छोटा-सा लेख एक विशेषज्ञ डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन जैसा था जिसमें बीमारी का इतिहास, कारण, दवाएं और परहेज सब कुछ लिखा गया था।

 
उन्होंने लिखा कि मालवी प्रजाति का गेहूं संकर प्रजाति के गेहूं में बदल गया जिसके कारण कुओं की जगह नलकूपों ने ले ली, क्योंकि संकर नस्ल के गेहूं को 5 बार सिंचाई की जरूरत होती है, जो कुओं से संभव नहीं थी। इसके लिए हजारों नलकूप खोदे गए जिनका सिलसिला कभी रुका नहीं। नतीजतन भू-जल का स्तर नीचे जाने लगा, रही-सही कमी जंगलों की कटाई ने पूरी कर दी और भू-जल रिचार्ज होना थम गया। हजारों सालों में जो पानी जमीन में नीचे जमा हुआ था, वह नीचे और नीचे चला गया। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर समय रहते मालवा का खेतिहर समाज नहीं चेता तो मालवा की भूमि बंजर हो जाएगी। उन्होंने सूत्रों में इस बीमारी का इलाज भी लिखा था। यह सब अत्यंत सरल अंग्रेजी में उनकी एक और पुस्तिका 'थॉट फॉर फूड' में संग्रहीत है। उनकी लिखी 2 और पुस्तकें हैं 'सुनी सबकी करी मन की', 'वॉटर- ए रियलिटी चैक'।

 
सिंहदेव की सक्रियता और रुचियों के दायरे बहुत विस्तृत थे। वे एक श्रेष्ठ फोटोग्राफर, लेखक, विकास केंद्रित चिंतक और सलाहकार, अच्छा खाना बनाने और खिलाने के शौकीन, पढ़ाकू, प्रशासन और राजनीति में नवाचारी और विरासतों के संरक्षण के संरक्षक की भूमिकाओं में हमेशा बने रहे।
 
ड्राइंग रूम की एक दीवार पर उनके द्वारा कैमरे में कैद अदाकारा नरगिस का एक भव्य फोटोग्राफ बरबस ही बैठने वालों का ध्यान आकर्षित करता था। वे अच्छे खाने और अच्छी चाय के शौकीन थे। वे खुद अपने हाथों से चाय बनाकर लाते और आगंतुकों को पिलाते थे। जीवनभर वे छोटे मकानों में पूरी सादगी के साथ रहे। उनके जाने के साथ एक स्पंदनशील व्यक्तित्व हमारे बीच से चला गया। उनके जानने वालों को उनकी कमी बहुत दिनों तक महसूस होती रहेगी। (सप्रेस)

 
(वरिष्ठ पत्रकार रघुराज सिंह लंबे समय तक मध्यप्रदेश के जनसंपर्क विभाग में वरिष्ठ पद पर रहे।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

इन पारंपरिक व्यंजनों से मनाएं रक्षाबंधन का त्योहार, पढ़ें 5 सरल व्यंजन विधियां