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निरंतर बढ़ते रेप केस और 'विरोध' का 'विरोध'

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गरिमा संजय दुबे

क्या विरोध करें,किसका विरोध करें, विरोध करने पर देखा न आपने किसी ने dp विवाद को जन्म दिया,किसी ने उसे मुंह काला करने की संज्ञा दी ,किसी ने भेड़ कहा,किसी ने भीड़ का हिस्सा और प्रचार का तरीका माना, कठुआ गलत साबित होने पर विरोध की खिल्ली उड़ाई गई, मानो कठुआ में न हुआ तो जहां कहीं भी हो रहा है वह झूठ ही है, सब षड्यंत्र ही है,रोज जो पिता,ताऊ, चाचा, पड़ोसी,मामा,या किसी अनजान के हाथों दुष्कर्म की खबरें आ रहीं हैं सब झूठी हैं। 
 
कौन समझाए इन बुद्धिजीवियों को कि कठुआ तो एक मसला था उस बहाने गंभीर विरोध की पृष्ठभूमि तैयार करनी थी लेकिन ऐसे ही किसी सार्थक विमर्श की खिल्ली उड़ाने वाले इन लोगों में मेरे मित्र भी थे अब उनसे पूछे कि अब क्या कहना है उनका। आश्चर्य और दुख इस बात का था कि कई स्त्रियों ने भी उनकी  बात का समर्थन किया,जाने क्या मजबूरी होती है गलत का समर्थन करने की। फेसबुक केवल एक मनोरंजन का साधन भर नहीं है सोच समझ कर प्रतिक्रियाएं दीजिए यहां आपके व्यक्तित्व की परते भी खुल जाती हैं। मन में आक्रोश और दुख है।
 
बलात्कार न भी हुआ हो तो भी बच्चियों/बच्चों पर होने वाले अत्याचार पर आवाज़ नहीं उठनी चाहिए क्या? छोटे-छोटे कदम ही तो बड़ी आवाज़ बनते हैं. ...  

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