भारतीय संस्कृति में एक परंपरा है। शादी-ब्याह में जब जमाई या बेहनोई ब्याह वाले घर आते हैं तो घर की बहन-बेटियां उनके माथे पर टीका काढ़ कर आरती उतारती हैं। इस टीके का उदेश्य होता है घर पर आए अतिथियों का सत्कार करना और साथ ही अपने घर-बार की लाज को बनाए रखना।
देश की लोक-संस्कृति में तिलक या टीका लंबे समय से इसी तरह के आदर-सत्कार और गौरव का प्रतीक रहा है। इसके धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक तर्क और मान्यताएं भी हैं। इसे लगाने वाले का ललाट दीप्तिमान होता है। इस टीके का जितना बखान करो, उतना कम है।
अभी देशभर में ठीक वैसा ही तो नहीं, लेकिन कुछ ऐसी ही एक टीकाकरण संस्कृति चल रही है, जिससे सुफल होने पर देश की मान-मर्यादा तो बढ़ेगी ही, इसके साथ ही संक्रमण काल की जद में आए जीवन को श्वास भी मिलेगी। लाखों-करोड़ों जीवन को आधार भी मिल सकेगा।
जाहिर है, यह टीकाकरण शादी-ब्याह वाले टीके से कहीं ज्यादा अहम और जरूरी प्रतीत होता है, लेकिन कुछ राजनीतिक अतिथि ऐसे भी होते हैं, जो ऐसे सत्कार बढ़ाने वाले टीके से भी चमत्कारिक ढंग से अपना मान घटा लेते हैं।
टीका लगवाने से किसका मान घटता है भला? उलटा बढ़ता ही है। लेकिन नाम शंकर लालवानी हो और लंबी प्रतीक्षा के बाद सांसद की कुर्सी पर स्थापित हुए हों तो अक्सर माथे पर लगा टीका बांका हो ही जाता है।
हाल ही में भाजपा सांसद शंकर लालवानी ने इंदौरवासियों को प्रोत्साहित करने के लिए कोरोना वायरस का टीका लगवाते हुए एक तस्वीर खिंचवाई। इस तस्वीर में उन्होंने अपने भगवा कुर्ते को बांह से थोड़ा नीचे सरकाया। कुर्ता हटा तो उनकी सैंडो बनियान भी नजर आई। लेकिन जब इस दृश्य का वीडियो वायरल हुआ तो भोली-भाली जनता जान पाई कि यह सब तो भोलेनाथ की माया थी।
उन्होंने सिर्फ टीका लगवाने की एक्टिंग की थी, एक्टिंग अच्छी थी मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह, लेकिन शायद स्क्रिप्ट और एडिटिंग में कहीं खामी रह गई, ठीक से रिहर्सल भी नहीं की गई, नतीज़तन कहानी सब के सामने आ गई।
दिलचस्प है कि इंदौर के लोग खुद ही टीकाकरण के लिए आगे आ रहे हैं। वे खुद ही टीकाकरण के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं, ऐसे में उन्हें इस मायावी प्रोत्साहन की जरूरत ही नहीं थी। वैसे भी शंकर के अभी 59 सावन पूरे हुए हैं, तकनीकी तौर पर टीकाकरण की पात्रता के लिए अभी उन्हें एक साल कम ही पड़ रहा था। ऐसे में पात्रता दिखाने के चक्कर में खुद ही अपात्र साबित हो गए।
क्रिकेट की टर्मिनॉलॉजी में इसे यूं समझ सकते हैं कि जिस गेंद पर शंकर लालवानी को एक भी रन नहीं मिल रहा था, उस पर उन्होंने बल्ला घूमा दिया और स्टम्प्ड हो गए।
भारतीय संस्कृति में यह अनिवार्य तत्व है कि टीका चाहे किसी भी तरह का हो, उसे लगाते हुए अतिथियों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे अपने सिर पर रुमाल रखकर उसे थोड़ा ढांपे, माथे को थोड़ा सा नवाकर पूरी मर्यादा के साथ टीका लगवाएं और जितना सत्कार टीका लगाने पर मिलता है, उतनी ही गरिमा और इमानदारी के साथ इस टीका संस्कार में अपना बर्ताव रखें।
लेकिन ऐसे संवेदनशील संक्रमण काल में शंकर के माथे पर टीका भी न लगे और उनका सत्कार भी अधूरा रह जाए या अपना मान भी घट जाए तो यह कैसा टीकाकरण! माननीय सांसद महोदय जी?
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अनुभति और राय है, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)