Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कहानी : मस्ती टाइम

हमें फॉलो करें कहानी : मस्ती टाइम
webdunia

ब्रजेश कानूनगो

लिली में काफी फूल आ गए थे। पानी देने के बाद नींबू के पौधे को सींचने लगा तो मेरे सामने वही सूखा गमला आ गया। यह वही गमला था जिसमें केवल मिट्टी भरी थी। मैं उसमें पानी नहीं डालता था। सोचता था कोई अच्छे फूल का बीज या कलम लगा दूंगा। यही गमला हमारे ‘मस्ती-टाइम’ का कारण बन गया था। अमोल मेरे साथ छत पर आता तो मेरे हाथ से बाल्टी-मग झपट लेता। खुद ही नल के नीचे रखकर पानी भरता। यहीं से हमारी थोड़ी झड़प शुरू हो जाती थी।

वह बाल्टी को पानी से लबालब तब तक भरता रहता जब तक कि वह बाहर निकलने नहीं लगे। मैं रोकता, नल बंद कर देता, वह हंसता और फिर से नल खोल देता। मुझे चिढाता। उसे पानी से खेलने में बहुत मजा आता। फिर मग से गमलों में पानी देता, तब भी इतना पानी देता जब तक कि वह गमले से ओवर फ्लो न होने लगे। मैं उसे समझाता कि गमले में इतना पानी मत डालो मगर वह नहीं रुकता। यहां तक कि जो गमले खाली पड़े थे उनमें भी पानी भर देता। मुझे चिढ भी होती और उस पर प्यार भी उमड़ आता। रोज यही होता। खाली गमलों को वह पूरा पानी से भर देता और शरारत से मेरी और देखता, हंसता..खिलखिलाता. सब गमलों में पानी डालने के बाद थोड़ा पानी बाल्टी में बचा लेता और मेरी ओर उछालते हुए कहता-‘दादा! मस्ती-टाइम’..!! मैं उसे डपटता तो और नजदीक आकर पानी उडाता..’ पूरी छत और मुझे भिगोने के बाद उसका मस्ती टाइम आखिर ख़त्म होता। 
webdunia
जब तक वह रहा घर में टीवी नहीं देखा गया था और अखबार बिना तह खुले रैक पर जमा होते गए थे।सुबह-सुबह अमोल बहुत उत्साह से मेरे हाथ से चाबी छीनकर गेट का ताला खोल देता और चेन घुमाते हुए सीधे बाहर सड़क पर दौड़ पड़ता था..वह आगे-आगे मैं उसके पीछे-पीछे। सुबह की सैर को निकले कॉलोनीवासी हमारी इस भाग-दौड़ को बहुत कुतूहल से देखने लगते थे। 
 
‘पोता आया है शायद शर्माजी का..’ जैसे शब्द मुझे बहुत अद्भुत अनुभूति से भर देते थे।  
 
कनाडा जाने के बाद इस बार बेटे का परिवार लगभग तीन साल बाद ही घर आ पाया था। इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। परिस्थितियां ही कुछ ऐसी बनती रही कि वे लोग चाहकर भी न आ पाए। नौकरी की भी अपनी मजबूरियां होती हैं। ये भी सच है कि इस बीच हमारा वहां जाना भी संभव नहीं हो सका। हालांकि ‘स्काइप’ या ‘जी-टॉक’ के जरिये रोज ही लेपटॉप पर मिलना हो जाता था। लेकिन अमोल स्क्रीन पर बहुत कम आता.. कुछ झिझक रहती थी .. बहुत कहने पर बस ‘हाय-बाय’ करके अदृश्य हो जाता था। 
webdunia
यह तो उसके यहां आने पर ही स्पष्ट हुआ कि हमारे सामने हिन्दी बोलने में होने वाली दिक्कत के कारण वह सामने नहीं आता था। हिन्दी आसानी से समझ लेता था लेकिन टोरंटो के स्कूल में अपने दोस्तों के साथ अंगरेजी में दिन भर बातचीत की आदत के कारण हिन्दी में बोलना उसके लिए कठिन हो गया था। यह दिक्कत शायद वैसी ही रही होगी जैसे अंगरेजी में सारी पढ़ाई करने के बावजूद गैर हिन्दी भाषी व्यक्ति से सामना होने पर मुझे होती है।   कनाडा जाने से पहले जब वह यहां था तब उसकी भाषा सुनकर हमें बड़ा सुखद आश्चर्य होता था. ‘डोरेमान’ और अन्य कार्टून चरित्रों के हिन्दी में डब संवादों की वजह से हिन्दुस्तानी के इतने बढ़िया शब्द बोलता था कि हम हत-प्रभ रह जाते थे।
 
अभी दस दिनों में उसने हमसे हिन्दी में बात करने में खूब मेहनत की थी। बात करने में उसकी कोशिश साफ़ दिखाई देती थी। धूल खा रही शतरंज और कैरम के दिन फिर गए थे। मोहरों के अंगरेजी नामकरण से हमारा पहला परिचय हुआ। वरना हमारे लिए तो वजीर, राजा, हाथी, घोड़ा, ऊंट, प्यादे ही हुआ करते थे। 
webdunia
कॉलोनी के हमउम्र बच्चों के बीच भी वह बहुत पसंद किया जाने लगा।  आमतौर पर हिन्दी में बात करते बच्चों को भी स्कूल के अलावा अंगरेजी में बतियाने में खूब मजा आ रहा था। शुरू-शुरू में जब अमोल कुछ नहीं बोल पा रहा था तो अटपटा लगा लेकिन जब पता चला कि वह कनाडा से आया है तो खुलकर अंगरेजी में बातचीत करने लगे। इधर अमोल की झिझक भी टूटने लगी, वह भी हिन्दी ही बोलने की कोशिश करने लगा। हिन्दी दिवस के दिन जब मैं एक कार्यक्रम के मुख्य आतिथ्य के बाद घर लौटा तो गेंदे की अपनी माला मैंने सहज अमोल के गले में डाल दी।
 
उनके वापिस लौटते ही हमारा ‘मस्ती-टाइम’ ख़त्म हो गया। रोज की तरह छत पर गमलों में लगे पौधों में पानी दे रहा था। सब कुछ पहले जैसा हो गया। वही नियमित दिनचर्या हो गयी जो उनके आने के पहले हुआ करती थी।  सुबह उठते ही मेन गेट पर लगी चेन और ताला खोलना, दूध के पैकेटों की थैली और अखबारों को भीतर लाकर घूमने निकल जाना। फिर पत्नी और खुद के लिए चाय बनाकर टीवी पर रात को देखे समाचारों को अखबारों में पुनः पढ़ना। छत पर रखे गमलों में पानी डालना, पौधों की देखभाल करना। हुआ तो शाम को किसी साहित्यिक-सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेना और देर रात तक टीवी पर समाचार-बहसें आदि देखते हुए सो जाना। 
 
न जाने क्या सोचकर मैंने भी अमोल की तरह मिट्टी भरे गमले में पानी डालने को सहज ही मग आगे बढ़ा दिया। अचंभित था सूखे गमले में गेंदे के कुछ पौधों का अंकुरण हो आया था। 

webdunia






 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अमिताभ आखिर अमिताभ क्यों हैं?