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‘जमात’ की ‘मानसिकता’ बहुत व‍िस्‍तृत है, कानूनी शिकंजे में कसना जरुरी

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अवधेश कुमार

इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय एशिया के सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती मुंबई के धारावी में कोरोना वायरस के कई नए मरीज सामने आए हैं। इनमें से कुछ मरीज ऐसे हैं, जो दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में आयोजित तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर लौटे थे।

हजारों झुग्गी झोपड़ियों की घनी बस्ती वाले धारावी क्षेत्र में कोरोना संक्रमित लोगों की कुल संख्या दो दर्जन से ज्यादा हो गई है। इनमें से 10 अप्रैल तक दो की मौत हो चुकी है। इसमें नौ अप्रैल को 70 साल की एक महिला ने दम तोड़ दिया। उससे पहले एक अप्रैल को 56 वर्षीय व्यक्ति की मौत हुई थी।

यह व्यक्ति तबलीगी जमात के कार्यक्रम से लौटे लोगों के संपर्क में आया था। जमात से लौटे महिलाओं के साथी पुरुष धारावी के शाहू नगर जामा मस्जिद में रुके थे। महिलाएं बलिगा नगर में जिस फ्लैट में रुकी थीं, मृतक व्यक्ति उसी का मालिक था। ऐसी जानकारी है कि जमात से लौटे इन सभी लोगों के साथ 24 मार्च को केरल के कोझिकोड निकलने से पहले मृतक ने समय गुजारा था। वस्तुतः जमात में शामिल होकर 22 मार्च को मुंबई लौटी पांच महिलाएं मृतक के ही एक अन्य फ्लैट में रुकी थीं।

एक अप्रैल को पहली मौत के बाद ही बीएमसी ने उसके संपर्क में आए लोगों की तलाश शुरू कर दी थी। चूंकि मृतक के परिवार की तरफ से इस मामले में पूरा सहयोग नहीं मिला, इसलिए पुलिस उसके कॉल रेकॉर्ड्स के आधार पर पता कर रही है कि वह किस किस के संपर्क में आया था। इस बीच, धारावी में काम करने वाले एक सफाईकर्मी और एक डॉक्टर के कोरोना पॉजिटिव होने का मामला सामने आया है।

धारावी से शुरुआत करने का उद्देश्य यह बताना था कि किस तरह तबलीगी जमात ने पूरे देश की जान को भयावह जोखिम में डाल दिया है। दिल्ली से केरल और महाराष्ट्र तक के सूत्र को जोड़िए तो तस्वीर साफ हो जाएगी। अगर धारावी के जमातियों का संपर्क इतना व्यापक था तो अन्यों का भी ऐसा ही होगा और उन्होंने भी अपने साथ कोरोना की आग को उन सारे जगहों पर फैलाने में भूमिका निभाई जहां-जहां से ये गुजरे और ठहरे। इसके दूसरे पहलू को देखिए। धारावी में लाखों की संख्या में लोग रहते हैं। गलियां काफी संकरी हैं। आते-जाते वक्त भी आपका शरीर एक दूसरे को छूता रहता है। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन संभव ही नहीं। जिस क्षेत्र को सील किया गया है या जो लोग क्वारंटीन किए गए हैं, वे भी नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं।

अगर धारावी में कोरोना फैल गया तो क्या स्थिति होगी इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अगर जमाती न होते तो यहां संक्रमण होता ही नहीं। वास्तव में महाराष्ट्र आज अगर संक्रमण एवं मौत के मामले में सभी राज्यों में सबसे उपर है तो इसका मुख्य कारण जमातियों का गैर जिम्मेवार आपराधिक व्यवहार ही है।

यह केवल महाराष्ट्र की बात नहीं है। 10 अप्रैल को असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जो पहली मौत हुई वह निजामुद्दीन के तबलीगी जमात कार्यक्रम शामिल हुआ था। भारत में कोराना वायरस के बढ़ते मरीजों की केस हिस्ट्री पर नजर डालने से ये दो तथ्य बिल्कुल साफ होते हैं-या तो वह जमाती है, उसके संपर्क में आया है या फिर वह सउदी अरब या वहां मक्का या कुछ खाड़ी देश से लौटा है। बिहार में सीवान कोरोना का सबसे बड़ा केन्द्र बना है तो इसका कारण यही है। वहां ओमान से लौटे एक युवक के गैर जिम्मेवार आचरण ने कोहराम मचा दिया। वहां संक्रमितों की संख्या बढ़ने से बिहार की मीडिया उसे सीवान की जगह प्रदेश का वुहान कहने लगा है।

देशभर में कुल संक्रमितों की संख्या के अनुसार विचार करें तो 35 प्रतिशत सीधे तबलीगी जमात के हैं। शेष में ज्यादातर इनके संपर्क में आए या फिर जिस दूसरी श्रेणी की हमने बात की वे हैं। तमिलनाडु के कुल मरीजों में 90 प्रतिशत से ज्यादा सीधे जमात से जुड़े हैं तो राजधानी दिल्ली के करीब 60 प्रतिशत। सच यह है कि अगर तबलीगी जमात के लोगों ने अपना, परिवार एवं देश के लोगों के जीवन का ध्यान रखते हुए जिम्मेवार रवैया अपनाया होता तो भारत इस समय कोरोना पर लॉकडाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग द्वारा काबू करने वाले देशों की श्रेणी में होता। मजहबी कट्टरता, जाहिलपन में जमाती तथा दूसरी श्रेणी के लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया। इस कारण स्वयं एवं पूरे देश को संकट में डाल दिया है।

किंतु दुर्भाग्य देखिए कि इस सच को सामने रखने को मुसलमान विरोधी या उनको बदनाम करने की साजिश बताया जा रहा है। सबसे चिंता का विषय है कि अभी तक मुसलमानों के बड़े संस्थानों एवं नामी मजहबी नेताओं में से किसी ने जमात के रवैये की आलोचना नहीं की है। इसके उलट सब उनके बचाव में लगे हैं। कुछ लोग उच्चतम न्यायालय तक चले गए इस अपील के साथ कि तबलीगी जमात को बदनाम करने का अभियान बंद कर दिया जाए। कौन बदनाम कर रहा है? पूरे देश में लगातार जमातियों से अपील की जाती रही कि आप बाहर आइए ताकि आपके लक्षणों के अनुसार कोरंटाइन करने या संक्रमित होने पर उपचार किया जाए। ज्यादातर को तलाश कर जबरन निकालना पड़ा है। कई जगह कुछ लोग तब सामने आए जब यह घोषित कर दिया गया कि नहीं आने पर मुकदमा किया जाएगा।

उसके बाद कुछ निकलकर सामने आए। दूसरे, उनकी जान बचाने के लिए तलाशने पहुंचे स्वास्थ्यकर्मियों एवं पुलिस को इनकी हिंसा का शिकार होना पड़ा है। किसी तरह लाया गया तो कोरंटाइन सेंटरों एवं अस्पतालों में वे अनुशासन मानने को तैयार नहीं। उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज करने पड़े हैं। इसके बावजूद काफी लोग निकलकर नहीं आए हैं। केवल महाराष्ट्र में 162 जमातियों पर प्राथमिकी दर्ज हुई है। यह बात सामान्य सोच में नहीं आ सकती कि किसी को यह पता चल गया हो कि कोरोना से उसकी जान खतरे है, जहां वह है वहां लोगों को खतरे में डाल रहा है लेकिन अपील पर अपना चेक कराने या इलाज कराने सामने नहीं आए, जब उसे पकड़ा जाए तो वह हिंसा करे और अस्पताल में भर्ती कराने पर डॉक्टर से लेकर अन्य स्वास्थ्यकर्मियों का जीना मुहाल कर दे।

इससे पता चलता है कि इनको मानसिक रुप से कितना खतरनाक बना दिया गया है। इस तरह कोरोना संकट के तो ये कारण बने ही हैं, भविष्य में देश के लिए खतरे का साफ संकेत दे रहे हैं। इस तरह की मानसिकता वाले अपने साथ समाज के दुश्मन हैं। इनका खुलेआम समर्थन भी कट्टर मानसिकता और व्यवहार का ही पर्याय है।

मानसिक रुप से कट्टर बनाए जा चुके ऐसे लोग अपने आका के अलावा किसी की बात आसानी से नहीं मानते। वे स्वयं भी मरेंगे और दूसरों को भी मारेंगे। आतंकवादी आत्मघाती दस्ता किस मानसिकता में बनते हैं? इतना भयानक अपराध करके देश को संकट में डालने के बाद यदि कुछ अपनी जान बचाने के लिए अच्छा व्यवहार करने भी लगे तो इससे इनके मूल चरित्र को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। काफी संख्या में अभी भी ये छिपे हैं और बाहर नहीं आ रहे। किंतु इसमें आश्चर्य जैसा कुछ नहीं है। जिस संगठन का प्रमुख ही छिप जाए उसके सदस्यों का आचरण इसके उलट नहीं हो सकता।

मौलाना साद को पुलिस ने नोटिस भेजा। उनसे 26 सवाल पूछे गए। उन्होंने इनका जवाब देने की बजाय अपने को कोरंटाइन में होने का एक संदेश जारी कर दिया। कोरंटाइन में होने से पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी के सामने आने में क्या बाधा हो सकती है? यह केवल मानसिकता का प्रश्न है। एक मानसिकता तो यह रही है कि कानून और सरकारों की एडवायजरी हमारे ठेंगे पर। भले मृत्यु हो जाए लेकिन पुलिस-प्रशासन की बात मानकर समर्पण करने की सोच ही नहीं है। इसका निष्कर्ष तो यही निकलता है कि जैसे ये मान चुके हैं कि अल्लाह के अलावा उन पर किसी का कानून और एडवायजरी लागू नहीं होता। मौलाना साद ने भले अपनी तकरीरों में सीधे यह पंक्ति नहीं बोला लेकिन उनके कहने का सीधा अर्थ यही था। इसके आधार पर पैदा हुई लाखों जमातियों की मानसिकता कोरोना संकट के भयावह प्रसार का कारण बन रहा है।

इस समय कोरोना है तो इसमें इनका दोष दिख रहा है लेकिन इनकी खतरनाक मानसिकता एवं व्यवहार का मामला काफी विस्तृत है। इस संगठन की गहराई से जांच कर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि इस वृक्ष से निकलते विष को रोका जा सके। ऐसा नहीं करने का परिणाम देश को भुगतना पड़ेगा। सबसे बढ़कर मानसिकता के उपचार को लेकर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। मुस्लिम समाज के जो लोग या संगठन इसमें साथ देने को तैयार नहीं, या सरेआम जमात के बचाव में लगे हैं... उनको भी चिन्हित कर कानून की सीमाओं में लाया जाए।

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