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कोरोना से उपजे महासंकट में कई मोर्चों में लड़ने की जरूरत

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

देश कोरोना जैसी महामारी से युध्द स्तर पर लड़ रहा लॉकडाउन घोषित होने के बाद स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग सहित प्रशासनिक अधिकारी वर्ग उच्च पायदान से लेकर ग्राम्य की प्रारंभिक ईकाई तक मुस्तैदी के साथ कार्य कर रहे हैं।

वहीं तबलीगी जमात के कारण कोरोना के प्रसार में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी देखने को लगातार मिल रही है। निजामुद्दीन की मरकज से देश के विभिन्न शहरों में फैलकर जमातियों ने देश को कोरोना का हब बना दिया।

ज्यादती तो तब और ज्यादा हो गई जब कोरोना संक्रमितों के टेस्ट के लिए गए मेडिकल स्टाफ के साथ इन्दौर, दिल्ली एवं उप्र के कई शहरों में जमातियों ने मेडिकल स्टाफ और पुलिस बल के ऊपर हिंसक हमले किए गए। तो नर्सिंग स्टाफ के साथ अश्लील हरकतें एवं अभद्रता करने के घ्रणित कृत्य भी सामने आए।

कहीं पुलिस वालों एवं डॉक्टरों के ऊपर थूंकते रहे और आईसोलेशन में मांसाहार की मांग करते हुए उत्पात मचाया। जो कि निहायत ही निकृष्ट और राक्षसी प्रवृत्ति का परिचायक है किन्तु आज भी इन जमातियों को डिफेन्ड करने के लिए तथाकथित वर्ग उतावला होकर ताल ठोंक रहा है, जबकि कुकृत्य करने वालों को जीवन के अधिकार से वंचित कर देना चाहिए।

वहीं अब भी देशभर में जमातियों का झुण्ड फैला हुआ है जो देश में कोरोना के आत्मघाती बम से कम नहीं हैं। इसके साथ शातिर देशद्रोहियों की टीम मिलकर सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों के द्वारा नफरत का प्रसार करने पर लगे हुए हैं।

इसी टीम के द्वारा टिक-टॉक में वीडियो बनाकर उन्हें वायरल कर देश के मुसलमानों को कोरोना से भयभीत न होने के लिए और सरकार के द्वारा घोषित लॉकडाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने के खिलाफ देशद्रोही कार्य अंजाम दिए जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को कंपनियों के प्रमुखों से बात कर नियंत्रण के सख्त निर्देश देने चाहिए, आवश्यक हो तो ऐसे एप्लिकेशन को बैन करने से भी संकोच नहीं बरतना चाहिए।

सरकार ऐसे में भले ही छुटपुट  रासुका लगाने की बातें करती हो लेकिन इनके विरुद्ध त्वरित कठोरतम कार्रवाई करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे में मानवता के इन दुर्दांत अपराधियों के प्रति किसी भी प्रकार की दया दिखाने लायक नहीं है।

ऐसे जितने भी लोग हैं जो ऐसा अमानवीय कृत्य कर रहे हैं, उनको चिन्हित कर कठोर दण्ड तो दिया जाए इसके साथ ही उनकी सारी संपत्ति की जब्ती की जानी चाहिए। क्योंकि जब तक ऐसे मानवद्रोहियों को कानून और प्रशासन का रौद्र रुप नहीं दिखाया जाता है, तब तक इनके मंसूबों से देश व सम्पूर्ण मानव समाज को खतरा है। सरकार को ऐसे में सख्ती से निपटने की आवश्यकता है जिसका दूरगामी सन्देश जाए।

अन्य देशों की तुलना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की सूझबूझ एवं दूरदर्शिता के कारण जहां लॉकडाउन घोषित कर उसके पालन की जनता से अपील की गई, जिसके चलते परिस्थिति को नियंत्रित करने की व्यापक रणनीति को धरातलीय कार्यान्वयन का मूर्त रुप दिया गया।

भले ही कोरोना से प्रभावित मरीजों की मृत्युदर में कमीं हो लेकिन इसके इतर कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार हो रही बढ़ोतरी के चलते ऐसे हालात पैदा होते जा रहे हैं कि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाए जाने की संभावना एवं आवश्यकता प्रतीत होती है। जिसकी सिफारिश विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ राजनेताओं ने किया है।

व्यापक जनहित को देखते हुए यदि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाया जाना आवश्यक है तो अनिवार्यतः बढ़ाया जाना चाहिए। ऐसे में यदि लॉकडाउन की अवधि बढ़ी है तो सरकार को कई मोर्चों में डटकर तैयार रहना पड़ेगा।

क्योंकि लॉकडाउन घोषित होने के बाद जहां दिल्ली से बिहार, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों के दिहाड़ी मजदूरों का पलायन हुआ जिसके कारण लॉकडाउन के उपरांत भी जनसमूह का सैलाब देखने को मिला जो कि निश्चित ही किसी खतरे को मोल लेने से कम नहीं था।

इसके पीछे राजनीति सहित मुख्य कारण भरण-पोषण एवं सरकारी मदद के न पहुंच पाने के कारण ऐसे कठोर कदम लोगों द्वारा उठाए गए। इससे हमें यह समझना होगा कि वास्तव में मजदूरी एवं दैनिक वेतनभोगी सहित अन्य छोटे-मोटे व्यवसाय पर आश्रित रहने वाले लोगों के समक्ष भूख सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा।

इसलिए अब यह और ज्यादा जरूरी हो जाता है कि विभिन्न शहरों में लॉकडाउन के चलते दैनिक रोजगार यथा-मजदूरी, ठेला लगाने वाले हों या गरीब निर्धन वर्ग हो उनके समक्ष पेट पालने की समस्या मुंह बाएं खड़ी हो चुकी है, उसको हल करने के सरकारी प्रयासों में तेजी एवं गतिशीलता लाने की आवश्यकता है।

लगातार देखने में आ रहा है कि लॉकडाउन के चलते विभिन्न शहरों में भोजन की परेशानी से हजारों की संख्या में लोग जूझ रहे हैं, ऐसे में समाजसेवी भी उतरकर अपने-अपने स्तर से भोजन मुहैया करवा रहे हैं। किन्तु वहीं दूसरी ओर गरीबों को भोजन प्रदान करने के बदले सेवाभाव दिखलाते हुए तथाकथित स्वयंभू समाजसेवी एवं राजनैतिक जमात के लोगों द्वारा राजनैतिक रोटी सेंकने के प्रयास होते दिख रहे हैं तथा इसे भी एक प्रचार-प्रसार का माध्यम बनाया जा रहा है।

गौर करने वाली बात यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग एवं सुरक्षात्मक उपायों की सरेआम धज्जियां उड़ाते हुए भी कई समाजसेवी देखे जा रहे हैं जो भोजन के पैकेट तो प्रदान कर रहे हैं लेकिन वहीं लोगों की भीड़ को बढ़ावा भी दे रहे हैं।

अगर ऐसा ही चलता रहा आया तो क्या इस प्रकार सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन कर मदद करने की बजाए ऐसी स्थितियां संकट में डालने वाली नहीं हैं?

कोरोना को मात देने के लिए पुलिस ,स्वास्थ्यकर्मी सभी विधिवत अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं साथ ही कुछ लोग लॉकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

अतएव ऐसे में आमजनमानस को भी यह समझना चाहिए कि लॉकडाउन का उल्लंघन किसी भी परिस्थिति में न किया जाए क्योंकि यदि कोरोना से कोई बचा सकता है तो वह सोशल डिस्टेंसिंग का अमोघ अस्त्र.ही है।

अर्थव्यवस्था एवं विकास का पहिया थम जाने के कारण सम्पूर्ण प्रक्रियाएं जहां बाधित हुई हैं वही नौकरी संकट के साथ-साथ जीवन यापन के आमूलचूल प्रश्न खड़े हो चुके हैं।

ऐसे में सभी के भरण-पोषण के लिए खाद्यान्न उपलब्ध करवाने एवं आर्थिक मदद करने तथा जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं  के विकल्पों को सोचकर धरातलीय अमल में लाना पड़ेगा।

वहीं प्राइवेट क्षेत्र में मध्यमवर्गीय नौकरी पेशा लोगों के लिए प्रधानमंत्री जी ने जो अपील संवैतनिक अवकाश की बात कही थी उसे कंपनियों से चर्चा कर मूर्त रुप देना होगा। क्योंकि इन लोगों के समक्ष नौकरी न हो पाने के कारण जीवन यापन के लिए आर्थिक संकट खड़ा हो चुका है यदि ऐसे में इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो एक बड़ा वर्ग हाशिए पर जा सकता है।

इसके साथ ही उद्योगों के लिए राहत पैकेज के तौर पर कदम उठाने की भी आवश्यकता है जिससे सभी का मनोबल बना रहे।

कुलमिलाकर कोरोना महामारी एवं इससे उपजे संकट को हराने के लिए व्यापक स्तर पर अनेकानेक मोर्चों पर वास्तविक -जमीनी एवं तीव्र गति से निदानात्मक उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।

यदि हम इन सभी मोर्चो में लड़ाई लड़ते हुए समस्याओं को पराजित करने में सफल हो जाएंगे तो निश्चित ही कोरोना को तो हराएंगे ही इसके साथ आमजनजीवन को पुनश्च पटरी पर लाने में कामयाब होंगे!!

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