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यह ‘क्र‍िएटि‍व आजादी’ हर बार और बार-बार एक ही धर्म को लेकर क्‍यों दिखाई जाती है?

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नवीन रांगियाल

तनिष्‍क के एक विज्ञापन में अल्‍पसंख्‍यक परिवार द्वारा बहुसंख्‍यक धर्म से जुड़ी लड़की की गोद भराई का दृश्‍य दि‍खाने पर विवाद शुरू हो गया है। पिछले दो दिनों से ट्व‍िटर पर हैशटैग बायकॉट तनिष्‍क ट्रेंड कर रहा है।

विज्ञापन देखने के बाद बहुसंख्‍यक समुदाय के लोग भड़के हुए हैं, जबकि कुछ लोगों का तर्क है कि विज्ञापन में सांप्रदायिक‍ सौहार्द दिखाया गया है। दूसरी तरफ विज्ञापन का विरोध करने वालों का कहना है कि यह सांप्रदायिक सौहार्द हमेशा बहुसंख्‍यक लड़कि‍यों और महिलाओं को लेकर ही क्‍यों दिखाया जाता है, इसकी जगह अल्‍पसंख्‍यक लड़की को इस तरह दिखाने की हिम्‍मत विज्ञापन और बॉलीवुड वाले क्‍यों नहीं करते हैं।

सोशल मीडि‍या पर इसे लेकर बहस और विवाद अपने चरम पर है। मामले गर्म है। सभी अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। फेसबुक और ट्व‍िटर पर इसे लेकर आलेख लिखे जा रहे हैं। कोई इसके पक्ष में हैं तो कोई इससे नाराज दिख रहे हैं।

दरअसल, आजकल सोशल मीडि‍या पर हर बात पर‍ बहस और विवाद चल रहे हैं। किसी भी मुद्दे को लेकर ट्विटर पर ट्रेंड शुरू हो जाता है। चाहे वो बॉलीवुड हो, कोई फि‍ल्‍म हो या कोई शख्‍सियत। किसी भी मुद्दे को लेकर लोग आमने-सामने हो जाते हैं।

हालांकि तनिष्‍क ने अपना यह विज्ञापन किस नीयत के साथ बनाया है यह तो वही लोग जानते हैं, जिन्‍होंने विज्ञापन में इस थीम को चुना। लेकिन यह भी सही है कि ‘क्र‍िएटि‍व फ्रीडम’ के नाम पर अक्‍सर बहुसंख्‍यक समुदाय के लोगों की आस्‍था के साथ खि‍लवाड़ किया जाता रहा है। चाहे वो किसी फि‍ल्‍म में किसी ब्राह्मण के चरित्र को खराब या लालची दिखाना हो या हिंदू धर्म से जुड़ी आस्‍था और उनके प्रतीकों को पाखंड बताना हो।

अक्‍सर बेहद ही लापरवाही के साथ एक खास वर्ग के प्रतीकों और धार्मिक आस्‍था के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है, जबकि दूसरे को श्रेष्‍ठ बताया जाता है। चाहे कोई फि‍ल्‍म हो, वेब सीरीज हो या फि‍र विज्ञापन। यह आजकल बहुत देखा जा रहा है।

क्रि‍एटि‍व आजादी के नाम पर यह सब किया जाता है और जब अपनी आस्‍था को लेकर लोग विरोध दर्ज कराते हैं तो उसे असहिष्‍णुता करार दे दिया जाता है। सवाल यह है कि क्‍या सेक्‍यूलरिज्‍म और सांप्रदायि‍क सौहार्द के उदाहरण पेश करने के लिए हर बार एक ही एक ही धर्म या प्रतीक या उस धर्म की आस्‍था का ही इस्‍तेमाल किया जाता रहेगा।

कई मामलों में देखा गया है कि अल्‍पसंख्‍यक समुदाय को लेकर दिखाए गए इस तरह के किसी भी उदाहरण में तुरंत फतवा जारी कर दिया जाता है। ऐसे में जरुरी है कि बहुसंख्‍यक समुदाय के लोगों की आस्‍था का भी ख्‍याल रखा जाए।

दरअसल, फि‍ल्‍म, कहानियों, नाटकों और वेब सीरीज में क्र‍िएटि‍व आजादी के नाम पर हर बार और बार-बार एक ही धर्म को नीचा दिखाने की आदत को बदलना होगा। उन्‍हें ऐसा संतुलन बनाना होगा कि किसी एक पक्ष या वर्ग को न लगे कि उनके साथ पक्षपात बरता जा रहा है। यह काम और संतुलन उन लोगों को बनाना होगा जो यह दावा करते हैं कि वे सेक्‍यूलर हैं और इंटलएक्‍च्‍युअल्‍स हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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