टिकटॉक नाम तो सुना ही होगा। ये वो हाथ में ले कर टिकटॉक बजाने वाला खिलौना नहीं है रे। ये एक अलग ही ततुम्बा है। हो सकता है आपके घरों में भी सदस्यों के द्वारा इसे धड़ल्ले से इस्तेमाल भी किया जा रहा हो या आपका भी टिकटॉक वीडियो बनाया जाता हो। पर बात कुछ और है। जैसे हर चीज के दो पहलू होते हैं वैसे ही कभी आपने ध्यान दिया कि इस और इसके जैसे कई सारे एप्प हमें, हमारी युवा पीढ़ी को क्या दे रहे हैं।
जहां इनकी अच्छाइयों को हम मानते हैं वहीं इनकी बुराइयों को कतई नजरंदाज नहीं कर सकते। अभी अभी इस पर एक एसिड अटैक की मानसिकता, बलात्कार की विकृत मानसिकता को बड़े बहादुरी के काम के समान बताया गया। जहां हम इनके खिलाफ क़ानून बना रहे, जंग लड़ रहे वहां यही कृत्य युवा व किशोरों के मन में धतूरे के बीज बो रहा है। कई लोगों की रोजी रोटी का प्रदाता बना बैठा ये जहर धीरे धीरे यौन कुंठाओं की अफीम बच्चों की रगों में घोल रहा है। छोटे-छोटे दुधमुंहे बच्चों से प्रणय निवेदन की बातें हमें कहां ले जा रहीं हैं आप खुद ही विचारिए।
लड़कियों द्वारा कम कपड़ों में बनाए जा रहे स्वेच्छा से वीडियो जिस तरह से उपलब्ध हो रहे हैं उसमें कोई हर्ज नहीं पर फिर यदि उनका इस्तेमाल ‘पोर्न’ के रूप में हो जाए तो साइबर क्राइम को मत कोसिएगा। गन्दी अश्लील हरकतें, इशारे, द्विअर्थी शब्दों का इस्तेमाल करने में न केवल लड़के बल्कि लड़कियां भी इन्हें मात देती आ रहीं हैं।
आज तक एक बात समझ नहीं आई है कि जो बात, जो संस्कार, जो कृत्य समाज व देश के लिए वर्ज्य या निषेध है उस कृत्य को लड़का या लड़की में विभाजित तो नहीं किया जा सकता। न ही किसी को लिंग के आधार पर अश्लीलता, नाजायज हरकतें, नैतिक पतन परोसने का लाइसेंस मिल सकता है। कभी देखिए तो इन्हें फुर्सत निकाल कर शर्म से आंखें न झुक जाए तो कहना। ऐसी होड़ मची है स्वांग की कि पूछिए मत। सभी एक-दूसरे को गन्दगी में परस्त करने में लगे हुए हैं।
लड़के, लड़कियां बन कर अपने वीडियो अपलोड कर रहे। लडकियां भद्दे मजाक, डायलोग, गानों पर मस्ता रहीं। घर में बेटे-बेटी, अन्य सदस्य लगे पड़े हैं। अपने आपको मॉडल, हीरो, हीरोइन की दुनिया का हिस्सा मानते हुए। यथार्थ की दुनिया से बेखबर। इस मायावी दुनिया में।
भाषा, संस्कार, मर्यादा, की निकलती मैय्यत इन्हें दिखाई ही नहीं दे रही। ऐसे एप्प का कोई इमान-धरम नहीं होता। लाइक, शेयर, कमेंट की दुनिया में सांस लेते ये सारे शिकार बच्चे असल दुनिया के लायक नहीं रह जाएंगे। केवल टिकटॉक ही नहीं अन्य कई जादू इस बाजार में भरे पड़े हैं। इनकी सतरंगी दुनिया इन सभी की जिंदगी की राह को भूल-भुलैया में बदल चुकी है। खुले आम जहरीला धुंआ उगलते गिलास टकराते ये वीडियो सभी को चरसी मानसिकता की ओर धकेल रही है।
रातोंरात प्रसिद्ध हो जाने की भूख इन्हें शार्टकट की ओर बेतहाशा दौड़ा रही है। ये अंतहीन है। अपनी जान की भी परवाह नहीं है इन्हें। अपना अच्छा-बुरा सोचने समझने की शक्ति इन एप्स को इन्होने गिरवे रख दी है। ऐसे कई उदाहरण रोज हमारे सामने हैं। दिल्ली में रहने वाला 19 वर्षीय मोहम्मद सलमान अपने दोस्त सुहैल मालिक के हाथों टिकटोक वीडियो शूट करते समय मारा गया।
फरवरी में तमिल नाडू में तीन छात्र ऐसे ही एक वीडियो को शूट करते समय अपनी स्कूटी चलाते समय बस से टकरा गए।
पंजाब में वीडियो शूट करते समय एक आदमी का पैर फिसल गया और खुद के ट्रेक्टर के टायर के नीचे आ गया। ट्रेक्टर से जुडी हुई कल्टीवेटर मशीन में फंसता चला गया और मर गया ।
चेन्नई में गला काटने की नौटंकी का वीडियो बनाते समय एक आदमी से वाकई में गला कट गया और खून रोकने की कोशिश के बावजूद सारा खून बह जाने से उसकी मौत हो गई।
भारत में टिकटोक के 5।4 करोड़ यूजर्स हैं और दुनिया भर में ये आंकड़ा 800 मिलियन से भी ज्यादा है ।ये तो मात्र कुछ ही बातें हैं। लाखों की तादाद में कई प्रकार के हादसे दुर्घटनाएं होती होंगी। बावजूद इस जहर का सेवन किए जा रहे हैं।
मानसिक रूप से रोगी होने, कुंठित होने, फ्लॉप होने, सृजनात्मकता के क्षरण के साथ साथ कई तरह के शारीरिक व गुप्त रोगों के भी शिकार होते ये बच्चे असमय वयस्क होने का दंड भोग रहे हैं और समाज को कलंकित कर रहे हैं। इन्हें छुप कर देखने की प्रवृत्ति इन्हें समाज से काट कर अकेलेपन की ओर धकेल जीवन का नैराश्य बढा रही है।जो आत्मघाती सिद्ध हो रहा है।
श्रीराम, श्रीकृष्ण बुद्ध, गांधी, विवेकानंद, सुभाषचंद्र जैसे अनेक महापुरुषों की धरती पर ऐसा जाल बिछाया गया है जिसे काटने के लिए घोर परिश्रम, कड़ी नजर, अनुशासन की छेनी और नियमों क़ानून का सख्त हथौड़ा जरुरी है। वर्ना वो दिन दूर नहीं जब हमारी युवापीढ़ी चलती-फिरती लाशों के समान केवल धरती की छाती पर बोझ बन मनुष्यता के नाम पर केवल नमूना मात्र रह जाए। जागिए,नजर रखिए,अपने देश के भावी कर्णधारों पर....