दिशा रवि की गिरफ्तारी क्या हुई हमारे नेताओं को जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया। जरा नजर उठा कर देख लीजिए। ट्वीट दर ट्वीट गिरफ्तारी के विरोध और दिशा रवि के समर्थन में आ गया।
पी चिदंबरम देश के गृहमंत्री रहे है। उनके कार्यकाल के दौरान देश में अनेक गिरफ्तारियां आतंकवाद के संदेह में हुईं। इस तरह कितने नेताओं ने सवाल उठाया कि फलां उम्र के या फलां स्तर के किसी व्यक्ति से देश को खतरा कैसे हो सकता है?
अगर पूर्व गृहमंत्री कह रहे हैं कि एक कॉलेज की छात्रा से देश को खतरा है तो देश कमजोर आधार पर खड़ा है तो मान लीजिए हमारी पूरी राजनीतिक व्यवस्था उससे कहीं ज्यादा दूषित और भ्रमित है जितनी हम कल्पना करते हैं। लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। पिछले डेढ़ दो दशकों से जिस भारत को हम देख रहे हैं उसमें हमेशा आतंकवादियों, देशद्रोहियों, हिंसक समूहों से जुड़े लोगों, माओवादियों, अलगाववादियों आदि के समर्थन में हर स्तर पर बड़ा समूह खड़ा होता रहा है। अगर ऐसा ना हो तो जरुर आश्चर्य व्यक्त करना चाहिए। इसलिए दिशा रवि की गिरफ्तारी एवं कुछ अन्य सोदिग्धों के खिलाफ कार्रवाई पर हो रही विरोधी प्रतिक्रियाओं को भारत की स्वाभाविक प्रकृति मानकर चलना होगा।
हालांकि राहुल गांधी, प्रियंका बाड्रा, जयराम रमेश, पी चिदंबरम, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, शशि थरूर, ममता बनर्जी आदि नेताओं को इस बात का जवाब भी देना चाहिए कि दिल्ली पुलिस द्वारा छानबीन के आधार पर सामने लाए जा रहे तथ्य सही हैं या नहीं? दिशा ने इतना तो न्यायालय में भी स्वीकार किया है कि उसने टूलकिट में हल्का संपादन किया था। निकिता ने भी कई बातें स्वीकार की है।
विडम्बना देखिए कि इमरान खान की ओर से आया ट्वीट भी दिशा रवि का समर्थन करता है। खालिस्तान की विचारधारा और हिंसक गतिविधियों में पाकिस्तान की सर्वप्रमुख भूमिका रही है। उसे तो समर्थन करना ही है। इस मामले में तो उसकी संलिप्तता की गंध भी मिल रही है। यह सामान्य सिद्धांत है कि न्यायालय जब तक किसी को दोषी करार न दे हम उसको दोषी नहीं मानते। लेकिन जो कुछ प्रत्यक्ष दिख रहा है और पुलिस छानबीन से भी जैसे तथ्य सामने आ रहे हैं उनकी निष्पक्ष विवेचना तो की ही जाएगी।
दिल्ली पुलिस ने पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को ग्रेटा थनबर्ग द्वारा किसान आंदोलन को लेकर शेयर की गई टूल किट के मामले में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से एक मानकर गिरफ्तार किया। निकिता जैकब और शांतनु जैसे कई लोगों की संलिप्तता सामने आ चुकी है। इन दोनों को न्यायालय ने तत्काल गिरफ्तारी से राहत दे दी है, लेकिन यह अंतिम नहीं है। अभी पूरे मामले में अनेक गिरफ्तारियां होंगी। जैसे-जैसे परतें खुलेंगी अनेक छिपे हुए चेहरे सामने आएंगे और इसी के साथ विरोधी प्रतिक्रियाएं भी हमको सुनने को मिलेगी।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिशा रवि, निकिता और शांतनु ने ही स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग को टूल किट मुहैया कराई थी। दिशा रवि ने एक वॉट्सएप ग्रुप शुरू किया था, जिसमें टूलकिट डॉक्युमेंट तैयार करने के लिए कई लोगों के साथ समन्वय किया गया था। पुलिस ने जो तथ्य सामने लाए हैं उनके अनुसार टूलकिट को निकिता जैकब, शांतनु और दिशा रवि ने साथ मिलकर तैयार किया था।
इस गूगल डॉक्युमेंट को शांतनु की ओर से बनाई गई ईमेल आईडी के जरिए तैयार किया गया था। 26 जनवरी को लाल किला की हिंसा सबको नागवार गुजरा। हिंसा न रोक पाने के लिए सरकार को आप जिम्मेदार बता सकते हैं, लेकिन हिंसा की साजिश के पीछे के संदिग्ध चेहरे, जिनकी संलिप्तता और सक्रियता के कुछ स्पष्ट सबूत मिले हैं, अगर गिरफ्तार होते हैं तो आपको समस्या है। इनसे पूछा जाना चाहिए कि खालिस्तान का झंडा उठाने वाला भारत विरोधी पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के साथ काम करना या सक्रिय संपर्क रखना देश के विरुद्ध अपराध माना जाएगा या नहीं? अगर माना जाएगा तो फिर दिशा रवि, निकिता और शांतनु का उसके साथ संपर्क सामने है।
पोएटिक फाउंडेशन का सह संस्थापक खालिस्तान की विचारधारा फैलाने का काम करने वाले भारत विरोधी मो धालीवाल के साथ निकिता, दिशा और शांतनु की जूम मीटिंग भारत में सकारात्मक योगदान के लिए तो नहीं हुआ होगा। इसमें 70 लोग शामिल थे। धालीवाल खुलेआम कहता है कि मैं खालिस्तानी हूं और खालिस्तान आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। यह प्रश्न तो उठेगा कि पर्यावरण एक्टिविस्ट खालिस्तान समर्थक के साथ मीटिंग में क्या रहे थे? इसका एजेंडा 26 जनवरी के विरोध को वैश्विक करना था।
टूलकिट भेजने वालों की सूची में भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी और पीटर फ्रेडरिक का नाम भी है। भिंडर खुलेआम खालिस्तान की बात ही नहीं करता, उसके लिए हिंसा की भी बात और प्रयास करता है। ये दोनों आईएसआई के मोहरे हैं और हर सरकार में इनसे सचेत रहने की खुफिया रिपोर्ट रहीं हैं। पीटर को भी यूपीए सरकार ने ही रडार पर रखा और भिंडर को भी। क्या यह सब गहरी साजिश की ओर संकेत नहीं करता? दिशा ने ही ग्रेटा थनबर्ग को बताया कि उनका टूलकिट सार्वजनिक हो गया है। इसके बाद ग्रेटा में उस टूलकिट को डिलीट किया था। दिशा ग्रेटा की बातचीत सामने आई है। दिशा ग्रेटा को कह रही है कि मुझे आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी निरोधक कानून या यूपीए का सामना करना होगा।
दिशा ने व्हाटसएप्प ग्रूप भी डिलीट कर दिया। जिस टूल किट में किसान विरोध प्रदर्शन का लाभ उठाकर उसको किस ढंग से प्रचारित करने, आक्रामक बना देने की पूरी कार्ययोजना हो उसके निर्माता, उसका संपादन करने वाले, फॉरवर्ड कर संबंधित लोगों तक पहुंचाने वाले तथा जारी होने के बाद उस पर नजर रखने वाले दोषी नहीं हो सकते ऐसी धारणा भारत में ही संभव है।
देश विरोधी संगठन भी तात्कालिक रूप से अपना निशाना सरकारों को ही बनाती हैं। पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन, आस्क इंडिया ह्वाई डॉट कॉम जैसे वेबसाइट भले सतही तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार विरोधी अभियान चलाते दिखते हों, आप गहराई से इनका स्वर देखेंगे तो यह भारत विरोध में परिणत हो जाता है। आंतरिक राजनीति में सरकार से मतभेद, उसका विरोध स्वाभाविक है। सीमा के बाहर सरकार ही देश की प्रतिनिधि है।
कोई भी देश अगर अंदर बाहरी शक्तियों या देश विरोधी शक्तियों के विरुद्ध एकजुट रहे तो उसका बाल बांका असंभव है। देश विरोधी, हिंसक अलगाववादी समूह या व्यक्ति तभी सफल होते हैं जब देश के अंदर से साथ मिलता है। कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा आंदोलन हमारा अपना मामला है। हम उसके समर्थक और विरोधी हो सकते हैं। भारत विरोधी शक्तियां उसका लाभ उठाएं, विदेशों के ऐसे संगठनों से उनका संपर्क रहे, उनके लिए काम करें, उनकी तैयारी में योगदान करें तो फिर यह नहीं देखा जाएगा कि ऐसा करने वाले की उम्र, जाति, लिंग क्या है? विश्वभर में ना जाने 18 वर्ष से कम उम्र के कितने आतंकवादी भीषण आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त पाए गए हैं।
जम्मू कश्मीर में ही पाकिस्तान से घुसपैठ कराए गए कई आतंकवादी किशोर उम्र के मिले हैं। तो क्या उनको आतंकवादी नहीं माना जाएगा? क्या उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी? दिशा तो वैसे भी 22 वर्ष की हैं। वो ग्रेटा थनबर्ग द्वारा स्थापित संगठन फ्राईडेज फॉर फ्यूचर की भारत प्रमुख हैं। पर्यावरण के झंडाबरदार के रूप में उनके लेख प्रकाशित होते हैं, बयान सामने आते हैं। देश-विदेश में व्यापक संपर्क रखने वाली, सक्रिय रहने वाली एक युवा लड़की देश विरोधी अपराध कर ही नहीं सकती ऐसे मानने वालों की सोच पर तरस आता है। कभी नहीं भूलना चाहिए कि न्यायालय ने इनको पुलिस रिमांड दिया है। अगर केस कमजोर होता है तो न्यायालय सामान्यता न्यायिक हिरासत में संदिग्ध को भेजती है। इनसे पूछताछ के बाद आंदोलन का आड़ लेकर की जा रही साजिशों के और तथ्य सामने आ सकते हैं।
वास्तव में अब जब यह साफ हो गया है कि किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी शक्तियां भारत में हिंसा और अराजकता अलगाववाद पैदा करने का षड्यंत्र कर रहीं हैं तो फिर उनके भारतीय हाथों का पकड़ा जाना अपरिहार्य हो चुका है। यह राजनीतिक नहीं, देश की सुरक्षा, एकता अखंडता और संप्रभुता से जुड़ा मामला है। इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए थी। तो राजनीति को नजरअंदाज करते हुए पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को कार्रवाई जारी रखनी चाहिए। उन लोगों का चेहरा सामने आना जरूरी है जो ऐसी साजिशों में संलिप्त हैं।
कठोर कार्रवाई से ही ऐसी शक्तियां हतोत्साहित होंगी और भारत के विरोध में सिर उठाने वाले कुछ करने के पहले सौ बार विचार करेंगे।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी राय है, वेबदुनिया से इसका संबंध नहीं है)