Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

यूक्रेन की 'आपदा' में भी 'अवसर' गंवा दिया विश्वगुरु ने!

हमें फॉलो करें यूक्रेन की 'आपदा' में भी 'अवसर' गंवा दिया विश्वगुरु ने!
webdunia

श्रवण गर्ग

, शनिवार, 5 मार्च 2022 (20:21 IST)
'विश्वगुरु' भारत को अगर यह गलतफहमी हो गई थी कि ह्यूस्टन (टेक्सास, अमेरिका) की रैली में 'भक्तों' से 'अब की बार ट्रंप सरकार' का नारा लगवा देने भर से रिपब्लिकन मित्र डोनाल्‍ड ट्रंप की अमेरिका में फिर से सरकार बन जाएगी, रूस और यूक्रेन दोनों से शांति की अपील कर देने भर से ही तानाशाह मित्र पुतिन अपनी सेनाएं वापस बुला लेंगे, और उसके एक इशारे पर पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और मोल्डोवा की सरकारें और वहां के नागरिक कीव आदि युद्धग्रस्त क्षेत्रों से अपनी जानें बचाकर पहुंचे हमारे हज़ारों छात्रों को आंखों में काजल की तरह रचा लेंगे तो वह अब पूरी तरह से समाप्त हो जाना चाहिए।

यूक्रेन के रेल्वे स्टेशनों, सड़कों और पोलैंड की सीमाओं पर हमारे छात्रों को जिस तरह का व्यवहार झेलना पड़ रहा है वह इस बात का प्रमाण है कि सरकार में बैठे ज़िम्मेदार लोगों ने अपने स्व-आरोपित आत्मविश्वास के चलते हज़ारों बच्चों को कितनी गम्भीर त्रासदी में धकेल दिया है।इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यूक्रेन में अध्ययनरत दो छात्रों (एक कर्नाटक से और दूसरा पंजाब से) द्वारा रूसी सैन्य कार्रवाई में जानें गंवा देने के समाचार हैं।

सरकारी दावों के विपरीत यूक्रेन से बाहर निकलने के लिए संघर्षरत सभी सैकड़ों या हज़ारों बच्चों की कुशल-क्षेम के ईमानदार समाचार प्राप्त होना अभी भी बाक़ी हैं। हज़ारों बच्चे अभी भी वहां फंसे हुए बताए जाते हैं और उन्हें ज्ञान दिया जा रहा है कि युद्ध क्षेत्र के बंकरों में संकट का सामूहिक रूप से सामना कैसे करना चाहिए! भारतीय छात्र-छात्राओं द्वारा युद्धग्रस्त यूक्रेन और उसकी पश्चिमी सीमाओं से लगे पड़ौसी देशों में भुगती गईं/जा रहीं यातनाओं को ठीक से समझने के लिए इस घटनाक्रम को भी जानना ज़रूरी है :

काबुल से अपने सभी नागरिकों और समर्थकों को वक्त रहते सुरक्षित निकाल पाने की कोशिशों में दूध से जले राष्ट्रपति बाइडन ने दस फरवरी (तारीख़ ध्यान में रखें) को ही यूक्रेन में रह रहे सभी अमेरिकियों के लिए चेतावनी जारी कर दी थी कि वे रूसी आक्रमण की आशंका वाले देश को तुरंत ही छोड़ दें। उन्होंने चेतावनी में यह भी कहा कि रूसी हमले की स्थिति में उनका प्रशासन नागरिकों को बाहर नहीं निकाल पाएगा।

अमेरिका ही नहीं, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया,इटली, इसराइल, जापान सहित कोई दर्जनभर देशों ने भी अपने नागरिकों, राजनयिक स्टाफ़ और उनके परिवारजनों को यूक्रेन तुरंत ही ख़ाली करने को कह दिया था। सिर्फ़ हमारी ही दिल्ली स्थित सरकार और कीव स्थित भारतीय दूतावास बैठे रहे।

भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए जवाबदेह हमारे दूतावास ने क्या किया? उसने पंद्रह फरवरी (तारीख़ पर ध्यान दें) यानी बाइडन की अपने नागरिकों को दी गई चेतावनी के पांच दिन बाद भारतीय छात्रों को ‘सलाह’ दी कि मौजूदा अनिश्चित स्थिति को देखते हुए, भारतीय नागरिक, विशेषकर छात्र जिनका कि वहां रहना ज़रूरी नहीं है, यूक्रेन को अस्थाई तौर पर छोड़ने पर विचार कर सकते हैं।

वहां निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिकों को यह सलाह भी दी गई कि यूक्रेन के भीतर भी उन्हें ग़ैर-ज़रूरी यात्राएं नहीं करना चाहिए। उक्त सलाहें भी इन आशंकाओं के बीच जारी कीं गईं कि रूसी हमला किसी भी समय हो सकता है।

भारतीय दूतावास द्वारा ‘सलाह पत्र’ जारी किए जाने के वक्त तक लगभग सभी देशों की विमान सेवाओं ने यूक्रेन से अपनी उड़ानें बंद कर दीं थीं।जो एक-दो बचीं भी थीं उनमें भी सीटें नहीं मिल रहीं थीं और किराए दो गुना से ज़्यादा हो गए थे।

एक छात्र ने तब टिप्पणी की थी कि दूतावास ने सूचना इतने विलंब से जारी की है कि वे यूक्रेन छोड़ ही नहीं सकते।रूसी सेनाओं की बमबारी के बीच छात्रों से जो कहा जा रहा था, उसका अर्थ यह था कि वे हज़ार-पंद्रह सौ किलोमीटर की यात्रा किसी भी साधन से पूरी करके पड़ौसी देशों में पहुंचें।

यूक्रेन के घटनाक्रम पर विचार करते समय स्मरण किया जा सकता है कि जिन तारीख़ों में छात्र अपनी जानें बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, उन तारीख़ों (मतदान के चरणों) में सरकार और सत्ताधारी पार्टी के बड़े नेता यूपी में सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

यूक्रेन पर जब 24 फ़रवरी को तीन तरफ़ से आक्रमण हो ही गया, तब केंद्र सरकार पूरी तरह से हरकत में आई, पर तब तक देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और नागरिकों के आत्मविश्वास को जो चोट पहुंचना थी, पहुंच चुकी थी। भारतीय छात्रों के दर्द को सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर शेयर की जा रही व्यथाओं में पढ़ा जा सकता है।

यूक्रेन से अपने नागरिकों को समस्त संसाधनों का उपयोग करके सुरक्षित तरीके से समय रहते निकाल लेने में उसी तरह की लापरवाही बरती गई जैसी कि तालिबानी हमले के समय काबुल से या उसके भी पहले कोरोना के पहले विस्फोट के तुरंत बाद वुहान (चीन) से भारतीयों को निकालने के दौरान देखी गई थी।वुहान में रहने वाले भारतीयों द्वारा अपने अपार्टमेंट्स से मदद के लिए जारी की गई वीडियो अपीलों और यूक्रेन के छात्रों के वीडियो संबोधनों में एक जैसी पीड़ाएं तलाशी जा सकतीं हैं।

याद दिलाने की ज़रूरत नहीं कि 1990 में वीपी सिंह की राजनीतिक रूप से कमजोर और आर्थिक तौर पर लगभग दिवालिया सरकार ने भी किस तरह से युद्धरत देशों कुवैत और इराक़ से एक लाख सत्तर हज़ार भारतीयों को सफलतापूर्वक बाहर निकाल लिया था।

जिस समय हमारे हज़ारों बच्चे यूक्रेन की कठिन परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए घरों को लौटने की जद्दोजहद में लगे हैं, हमारी आंखों के सामने उन लाखों प्रवासी मज़दूरों, नागरिकों और बच्चों के चेहरे तैर रहे हैं, जिन्होंने बिना किसी तैयारी और पूर्व सूचना के थोपे गए लॉकडाउन में सड़कों पर भूखे-प्यासे सैकड़ों किलोमीटर पैदल यात्राएं कीं थीं।

पंचवटी’, ‘यशोधरा’ और ‘साकेत’ जैसी अद्वितीय रचनाओं के शिल्पकार और ‘भारत भारती’ जैसी प्रसिद्ध काव्यकृति के रचनाकार मैथिलीशरण गुप्त ने वर्ष 1912-13 में जो सवाल किया था, वह आज भी जस का तस क़ायम है, हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी! अंग्रेज़ी अख़बार ‘द टेलिग्राफ़’ ने यूक्रेन के कारण भारत पर आई मुसीबत से संबंधित एक खबर का शीर्षक यूं दिया है, आपदा में अवसर उलटा पड़ गया।(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वायु प्रदूषण से 1.5 साल कम हुई जीवन प्रत्‍याशा, विश्‍व में 9 पायदान पर भारत