यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के पांचवें दिन, युद्ध की स्थिति उस परिस्थिति से एकदम अलग दिखाई देती है, जो 24 फरवरी को हमले की घोषणा के समय दुनिया समझ रही थी। किसी ने नहीं सोचा था कि दुनिया की सबसे अधिक प्रशिक्षित और अपने से कई गुना बड़ी फ़ौज को यूक्रेन की छोटी सी सेना चार दिनों तक न सिर्फ़ रोक लेगी बल्कि उन्हें इस हद तक हताश कर देगी कि मॉस्को में बैठे उनके आका चिन्तित हो जाएंगे।
यद्यपि यूक्रेन और भारत के राजनैतिक रिश्ते भी गहरी दोस्ती के नहीं रहे, व यूक्रेन ने कई मर्तबा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का विरोध करने से साथ ही पाकिस्तान को काफ़ी मात्रा में छोटे हथियार व टैंक बेचे, किन्तु फिर भी यहां यूक्रेन से कुछ सीखा जा सकता है। इस युद्ध के दो छोरों पर बैठे हैं दो नेता, भारत के मित्र व्लादीमीर पुतिन और विरोधी वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की।
पुतिन ने अपना पूरा जीवन फ़ौज और जासूसी संस्थाओं के भिंचे हुए होठों और तनी भृकुटियों वाले जनरलों और जासूसों के बीच बिताए हैं, जबकि ज़ेलेन्स्की राजनीति में आने से पहले पेशे से जीवन को सरलता से जीने वाले कॉमेडियन थे। एक दूसरे से एकदम विपरीत व्यक्तित्व, परिस्थितियां और जीवन के अनुभव। लेकिन ऐसे दो नेताओं के एक ही परिस्थिति और अनुभव में आमने-सामने आने पर जो हुआ, वह आम इंसान के अलावा मनोविज्ञान अथवा मैनेजमेंट के विद्यार्थियों के लिए भी सीखने का बहुत बड़ा बिन्दु है।
युद्ध की शुरुआत में, हर कोई ये मान रहा था कि परिस्थितियां पूरी तरह रूस के पक्ष में हैं। यूक्रेन की अधिकतर छोटे हथियारों और थोड़े से वायु और नौसैनिक बल के भरोसे लड़ रही 2 लाख फ़ौज के बनिस्बत रूस की दुनिया की सबसे प्रशिक्षित, हथियारों में अमेरिका के बराबर ताकतवर और संख्याबल में पांचवीं सबसे बड़ी सेना की आपस में कोई तुलना नहीं हो सकती थी।
किन्तु अन्त में, जैसा कि कहा जाता है, वॉर्स आर वन इन द जनरल्स टेन्ट - यानी युद्ध रणभूमि में नहीं, सेनापति के टेन्ट के अन्दर जीता जाता है। इस का अर्थ यह होता है कि युद्ध जीतने का तरीका सही रणनीति बनाना और शान्त दिमाग से युद्ध का संचालन करना होता है, अत्यधिक शक्ति या क्रूरता नहीं। पुतिन ने अचानक ही हमले की घोषणा की थी। उनके रणनीतिकारों ने सोचा था कि एक या अधिक से अधिक दो दिनों में यूक्रेन की राजधानी कीव पर उनकी सेना का कब्ज़ा हो जाएगा, और जैसे कुछ महीने पहले तालिबान ने एक ही दिन में काबुल पर अधिकार कर लिया था, वे आसानी से अपनी पसंदीदा सरकार स्थापित कर देंगे। पुतिन ने शायद यूक्रेन की नई सरकार में किसे राष्ट्रपति बनाना है और कब शपथ दिलाना है, यह भी सोच रखा होगा।
लेकिन लगता है रूसी युद्ध मशीनरी ने ज़ेलेन्स्की के व्यक्तित्व को केवल एक कॉमेडियन समझकर ठीक से उसका अध्ययन नहीं किया, और यही रूस की राह में बड़ा रोड़ा बन गया। युद्धों के दौरान कई प्रकार के सूचना युद्ध साथ में चलते हैं। गलत ख़बरें उड़ाई जाती हैं, अपने पक्ष को भारी बताया जाता है और विपक्षी की हार की ख़बरें मीडिया में प्लान्ट की जाती हैं। रूसी सरकारी मीडिया एजेन्सीज़ ने पहले ही दिन यूक्रेन की सेना के हथियार डालने की शुरुआत होने की ख़बरें प्रसारित करना शुरू कर दी थीं, जबकि उनकी सेना दोनेत्स्क और लुहान्स्क में ही उलझी हुई थी। लेकिन इस सूचना युद्ध के सामने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की ने बेहद सधा हुआ तरीका अपनाया। ज़ेलेन्स्की रोज़ सामने आकर युद्ध की परिस्थिति की जानकारी देने से साथ अपने देश का हौसला बढ़ाने और पश्चिम से आवश्यक मदद मांगने लगे। नतीजा यह हुआ कि एक-दो दिनों में ही दुनिया रूस के सूचना युद्ध की बजाय ज़ेलेन्स्की के नपे-तुले बयानों पर ध्यान देने लगी।
उधर पुतिन का पूरा ध्यान युद्ध को जल्द जीत लेने के साथ ही अपने को अजेय बताने और दुनिया के सामने यह जताने पर था कि वे न किसी की परवाह करते हैं न ही कोई उन्हें हरा सकता है। ज़ेलेन्स्की ने कभी अपने को अजेय नहीं बताया, केवल यह कहा कि वे पूरी शक्ति से लड़ेंगे और अपने लोगों के साथ रहकर युद्ध का संचालन करेंगे। रूस ने भ्रम की स्थिति बनाने के लिए अफ़वाह उड़ाई कि ज़ेलेन्स्की यूक्रेन छोड़कर भाग गए हैं। लेकिन कुछ ही देर बाद ज़ेलेन्स्की ने कीव की सड़क पर इमारतों के बीच खड़े होकर एक वीडियो शूट करके बता दिया कि वे कहीं नहीं गए हैं अपने देश के साथ खड़े हैं।
फिर ख़बर उड़ी की ज़ेलेन्स्की व प्रधानमंत्री श्मायहाल को अमेरिका ने युद्ध क्षेत्र से निकाल लिया है। इस बार ज़ेलेन्स्की ने अपने पूरे राजनैतिक व सैनिक नेतृत्व के साथ एक वीडियो जारी करके कहा कि पूरा नेतृत्व देश में ही है, और युद्ध पूरी शक्ति से लड़ा जा रहा है। वीडियो में ज़ेलेन्स्की के पीछे खड़े लोगों ने अपने मोबाइल में वीडियो शूट किए जाने की तारीख व समय दिखाया। अपने देश को सभी बातें स्पष्ट बताते रहने और रूसी भ्रामक प्रचार को ध्वस्त कर देने का नतीजा यह हुआ कि उनके देश की जनता अपने राष्ट्रपति के साथ बनी रही, जबकि इसके विपरीत रूस में पुतिन का विरोध शुरू हो गया। दुनिया-भर में रूसी हमले के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के साथ ही मॉस्को में हो रहे प्रदर्शनों में बढ़ती भीड़ के वीडियो वायरल होने पर शायद रूसी सरकार कुछ हद तक अचकचा गई, जबकि यूक्रेन की सरकार और कम संसाधनों के साथ लड़ रही सेना को संबल मिलता रहा।
ज़ेलेन्स्की के नेतृत्व के इस तरीके, व उनकी हिम्मत ने उनकी सेना को बेहद संबल दिया, और सेना के साथ ही देश के आम नागरिक व बच्चे-बूढ़े भी रूसी सैनिकों और गाड़ियों के सामने खड़े होने लगे। रूसी सेना यह नहीं चाहती थी कि आम नागरिकों की हत्या अथवा संपत्ति के नुकसान की ख़बरें वायरल हों, क्योंकि इससे यूक्रेन के भीतर रूसी भाषा बोलने वालों के साथ ही दुनिया के अन्य देशों में रूस समर्थकों का उन्हें समर्थन कम हो सकता था। लेकिन फिर भी हताशा में उन्होंने कुछ ऐसी घटनाओं को अंजाम दे दिया जिनके कारण रूस का समर्थन कमज़ोर हुआ जबकि यूक्रेन अपने नागरिकों को हथियार देकर उन्हें रूसी सेना को रोकने के लिए उतारने में सफल रहा।
इसके साथ ही बीतते हुए दिनों ने युद्ध के जल्दी खात्मे से रूस को होने वाले लाभ को ख़त्म करके यूक्रेन को लाभ की स्थिति में ला दिया। नतीजा यह हुआ कि यूक्रेन के साथ रूस को भी वार्ता की मेज पर आने को मजबूर तो होना ही पड़ा, लेकिन 28 फ़रवरी की सुबह बेलारूस में होने वाली वार्ता के लिए रूसी वार्ताकारों को यूक्रेन के वार्ताकारों के आने का इंतज़ार भी करना पड़ा। कूटनीति के क्षेत्र में इस परिस्थिति का महत्व यह है कि इससे ऐसा प्रतीत हुआ कि शक्तिशाली रूस हमले से टूटे-फूटे यूक्रेन की तुलना में बातचीत को अधिक आतुर है। इसके साथ ही पुतिन द्वारा अपनी परमाणु कमांड को अलर्ट करना यह दिखाता है कि रूसी सेना ही नहीं नेतृत्व भी यूक्रेन द्वारा लड़े गए युद्ध से परेशान और उद्विग्न हो चुका है।
वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने अपनी हिम्मत, उत्कृष्ट नेतृत्व और ठंडे दिमाग से अपने से कई गुणा शक्तिशाली शत्रु को जिस प्रकार बातचीत के लिए मजबूर किया है, वह सफलता युद्धभूमि में होने वाले परिणाम को पहले ही ग्रसित कर चुकी है। राजनैतिक या सामरिक विरोध के बावजूद ज़ेलेन्स्की के व्यक्तित्व ने हमें सीखने के कई अवसर दिए हैं।