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मेरा ब्लॉग : आकर्षण करोति इति श्री कृष्ण

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सीनसिनाटी, ओहायो (USA) से लावण्या शाह
 
कालो वा कारणम राज्ञो
नमो भगवते तस्मै
नारायणं नमस्कृत्यम
नारायणं सुरगुरुं जग्देकनाथं
सत्यम सत्यम पुन: सत्यम II
 वामन पुराण में महाविष्णु नारायण के स्वरूप का वर्णन है। ईश्वर के विविध आयुध जो वे सदैव ग्रहण किए रहते हैं उनमे से एक सुदर्शन चक्र भी है। इसे कालचक्र भी कहते हैं। सुदर्शन चक्र छ: नुकीले नोकों वाला तीक्ष्ण आयुध है।  जिसके छ : विभक्त भाग छ : ऋतुओं के द्योतक हैं। 12 निहित हिस्से 12 देवताओं, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण इंद्र, इन्द्राग्नि, वायु, विश्वदेव, प्रजापति व धन्वंतरी इत्यादि का प्रतिनिधित्व करते हैं।

चक्र का मध्य भाग वज्र धातु से बना है जिसके गुण हैं भृवि माने समता, भग माने तेज, निर्देश माने गति और सम्पदा ! सुदर्शन चक्र की हर नोक पर 'सहस्त्रात् हुं फट्' अक्षर लिखे हुए हैं। विभिन्न कोणों में नारी शक्तियों का निवास है जिसका वर्णन इस प्रकार है ..
 
1) योगिनि - शक्ति क्रिया जो परिपूर्ण है 
2) लक्ष्मी - लक्ष्य प्राप्ति की शक्ति जो परम सत्य का द्योतक है। 
3) नारायणी - सर्वत्र व्याप्त महाशक्ति 
4) मुर्धिनी - मस्तिष्क रेखा से रीढ़ की हड्डी तक व्याप्त शक्ति 
5) रंध्र - ऊर्जा की वह गति जो सूक्ष्मतर होती रहती है  
6) परिधि - ' न्र ' शक्ति का स्वरूप 
7) आदित्य - तेज जो कि प्रथम एवं अंतहीन है 
8) वारूणी -चतुर्दिक व्याप्त जल शक्ति जिस के कारण सुदर्शन की गति अबाध है 
9) जुहू - व्योम स्थित तारामंडल से निस्खलित अति सूक्ष्म , ज्योति शक्ति व गति 
10 ) इंद्र - सर्व शक्तिमान
11) नारायणी - दिग्दिगंत तक फ़ैली हुई पराशक्ति ऊर्जा या कुंडलिनी शक्ति 
12 ) नवढ़ा - नव नारायण , नव रंग, नव विधि की एकत्रित शक्ति  स्वरूप ऊर्जा 
13 ) गंधी - जो पृथ्वी तत्व की भांति चलायमान है 
14 ) महीश - महेश्वर में स्थित आदि शक्तियां
 
आकार : सुदर्शन चक्र का व्यास सम्पूर्ण ब्रह्मांड तक व्याप्त होकर उसे ढंक सकने में समर्थ है और इतना सूक्ष्म भी हो सकता है कि, वह एक तुलसी दल पर भी रखा जा सकता है। 
 
सुदर्शन प्रयोग व महत्ता  : 
 
1) गोवर्धन पर्वत उठाने के प्रसंग में श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत के नीचे सुदर्शन चक्र को आधार बना कर रखा था  
2)  शिशुपाल का वध इसी सुदर्शन चक्र से किया गया था  
3 ) जयद्रथ वध के समय सुदर्शन चक्र का प्रयोग सूर्य को ढंक कर सूर्यास्त करने में हुआ था 
4 ) अर्जुन ने जो दिव्यास्त्र महाभारत युद्ध के समय प्रयुक्त किए उन बाणों के घने आवरण को श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र आधार देकर उन्हें अभेद्य कर दिए थे। 
5) राजा अम्बरीष पर दुर्वासा ऋषि क्रोधित हुए तब श्रीकृष्ण ने, विष्णु रूप से दुर्वासा ऋषि पर सुदर्शन चक्र से प्रहार किया था 
6) नाथ सम्प्रदाय के परम तेजस्वी महागुरु गोरखनाथ जी ने अपनी शक्ति से सुदर्शन चक्र को स्तंभित कर दिया था। 

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