राकेश कुमार
एक कहावत है ‘इंतजार का फल मीठा होता है’। वाकई, इंतजार का फल मीठा होता है मगर ज्यादात्तर समय इसका अनुभव कड़वा ही होता है। इंतजार बहुत ही छोटा शब्द हैं मगर इसका अर्थ बहुत ही बड़ा होता है।
जैसे समुद्र तो लिखने और पढ़ने में बहुत ही छोटा होता है मगर जब हम उसे वास्तविक रुप में देखते हैं तब मालूम होता है कि समुद्र क्या है। ठीक वैसा ही ये इंतजार शब्द।
मगर क्या आपको मालूम है लोग इंतजार शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं तो आप कहेंगे, किसी कार्य का हल निकालने या अपने कार्य से छुटकारा पाकर आपसे मिलने के लिए। मगर ये उत्तर गलत है क्योंकि इस शब्द का ज्यादा प्रयोग लोग किसी चीज से पीछा छुड़ाने के लिए करते हैं और कुछ लोग आपका मज़ाक उड़ाने के लिए।
अंग्रेजी के वेट शब्द का हिन्दी अनुवाद है इंतजार, जो 18वीं शताब्दी में उस समय आया जब अंग्रेजी से हिन्दी शब्दकोष का निर्माण हुआ। इंतजार दो भाषाओं के दो शब्दों से मिलकर बना है संस्कृत के इत और उर्दू के ज़ार शब्द से। संस्कृत में इत का अर्थ होता है-थोड़ा सा और उर्दू के ज़ार का अर्थ होता है रुकावट, रुकना। इन दोनों शब्दों को जोड़ने से बनता है इंतजार, जिसका अर्थ होता है थोड़ा रुकना।
उस दौरान इस शब्द का प्रयोग प्रतीक्षा करने जैसे शब्द के बदले में आया। प्रतीक्षा शब्द कुछ ज्यादा ही कठोर शब्द है जिसे कहने पर सामने वाले व्यक्ति को बुरा भी लग सकता है मगर इंतजार शब्द बहुत ही व्यवहारिक शब्द है।
आपका पाला अक्सर इस शब्द से पड़ता है। रेलवे का टिकट हो या बस का टिकट, होटल में खाना खाना हो या उसका बिल जमा करना, नौकरी ढूंढना हो या पढ़ाई करने के लिए अच्छे संस्थान चुनना, अपने परीक्षा का परिणाम जानना हो या फिल्म के लिए टिकट खरीदना हो, बिल जमा करना हो या नया कनेक्शन लेना हो, सभी जगह इंतजार करना पड़ता है।
आज इस शब्द का सबसे ज्यादा मजाक उड़ाया जाता है। जब आप अपने परीक्षा के परिणाम जानने के लिए संस्थान पहुंचते हैं, जब आप किसी संस्था में नौकरी के लिए जाते हैं, किसी अच्छे संस्थान में दाखिला देने के लिए जाते हैं या किसी सरकारी अस्पताल में अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए जाते हैं, सभी जगह बस इसी शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे सभी आपका कार्य करने से परोक्ष रुप से मना नहीं कर सकते, इसलिए आपसे कहते हैं कि आप कुछ पल इंतजार करें, आपका कार्य हो जाएगा, मगर कब होगा ये नहीं बताते। अंतत: आप स्वयं उस स्थान को छोड़ देंगे या हट जाएंगे।
यह तो फिर वैसे भी बात हो जाती है जब आप किसी संस्थान में नौकरी प्राप्त करने के लिए साक्षात्कार के लिए जाते हैं। आपके साक्षात्कार के बाद आपसे कहा जाता है कि आप बाहर इंतजार करें या आपको कुछ दिनों में परिणाम बता दिया जाएगा, मगर आपका इंतजार खत्म नहीं होता और आखिरकार अपने आप से यह सवाल करते हैं कि क्या वाकई इंतजार का फल मीठा होता है? क्या वाकई इंजतार करना सही होता है?, क्या उनके लिए हमारे समय की कोई कीमत नहीं है? इन्हीं सभी प्रश्नों के उत्तर खोजते समय आप नकारात्मक हो जाते हैं। मगर अभी भी आपको उस परिणाम का इंतजार होता है।
आखिर में फिर वहीं सवाल रह जाता है कि क्या वाकई इंतजार का फल मीठा होता है? क्या दूसरों का समय हमारे समय से ज्यादा महत्वपूण होता है? क्या उनकी नजर में हमारी वैल्यू कुछ नहीं होती? आखिर हम कब तक इंतजार करें, कब हमारे सब्र का बांध टूटेगा और हम कहेंगे, बस अब नहीं कर सकते और इंतजार। मगर यह भी सच्चाई है कि हम यह शब्द नहीं कह सकते क्योंकि कहीं ना कही व किसी ना किसी रुप में हम दूसरों पर निर्भर होते हैं और हमारा कार्य उनके बिना नहीं हो सका। इसलिए हमें इंतजार करना होगा और ऐसा भी हो सकता है कि यह इंतजार कुछ लंबा ही करना पड़े। मगर यह बात जरुर सही है कि आप जितना इंतजार करेगें, लोग आपसे उतना ही इंतजार कराएंगे और कहेंगे, बेटा इंतजार का फल मीठा होता है।