राजेश ज्वेल
मेरे पास मां है... यह फिल्मी डायलॉग तो पुराना हो गया है। अब तो राजनीति में नया डायलॉग चल रहा है कि तुम्हारे पास (कांग्रेस) अगर रॉबर्ट वाड्रा है तो हमारे पास (भाजपा) भी दुष्यंत सिंह है। भला हो ललित मोदी का, जिसने कम से कम कांग्रेस की कुछ तो लाज रख ली और दामादजी वाले मामले पर पीट रही भद के बीच अब वसुंधरा के लाड़ले का मामला उजागर हो गया। अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ और देश की जनता की याददाश्त भी कमजोर नहीं है, जब उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर पूरी भाजपा को भाषणों में यह कहते सुना होगा कि रॉबर्ट वाड्रा के पास ऐसा कौन सा जादुई कारोबारी नुस्खा है, जिसके बलबूते पर उन्होंने अपने एक रुपए को एक करोड़ में तब्दील कर डाला।
हालांकि इन भाषणवीरों ने सत्ता में आते ही दामादजी यानि रॉबर्ट वाड्रा को जेल भिजवाने की कसमें भी कम नहीं खाई थी, मगर हर पार्टी में रॉबर्ट वाड्रा हैं इसलिए ऐसे भाषण चुनावों तक ही सीमित रहते हैं। सत्ता में आने पर भाजपा भी दामादजी को भूल गई और साथ ही विदेशों में जमा काला धन जुमले में तब्दील हो गया। और तो और काले धन के एक बड़े प्रतीक और भगोड़े ललित मोदी को बचाने का कलंक अवश्य सालभर तक भ्रष्टाचार के मामले में खुद को पाक साफ बताने वाली भाजपा के माथे पर लग गया है। सुषमा स्वराज ने तो ललित मोदी की मदद की ही, मगर उससे भी बड़ी मददगार तो राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे निकली, जिन्होंने ललित मोदी पर किए गए उपकारों के बदले में अपने बेटे दुष्यंत सिंह की कम्पनी नियंत हैरीटेज होटल्स प्रा.लि. में 11.63 करोड़ रुपए का निवेश ललित मोदी की कम्पनी आनंद हेरीटेज होटल्स के मार्फत करवाया और 10 रुपए मूल्य के शेयर मोदी ने 96 हजार 190 रुपए में खरीदे। अब कांग्रेस भी पूछ सकती है कि दुष्यंत सिंह ने ऐसा क्या करतब दिखाया कि उनका 10 रुपए का शेयर 96190 हजार रुपए का हो गया?
यह ठीक उसी तरह का मामला है जैसा रॉबर्ट वाड्रा ने डीएलएफ के साथ संगनमत होकर किया था। हालांकि तमाम बड़े राजनेताओं ने इसी तरह के गौरखधंधे कर रखे हैं। ये तो रॉबर्ट वाड्रा के बाद दुष्यंत सिंह का खुलासा हो गया, जिस पर अब राजनीति से लेकर मीडिया में हल्ला मचा है। इस पूरे प्रकरण से अब भाजपा को भी रॉबर्ट वाड्रा से कारोबारी समझ लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि उनकी खुद की पार्टी के पास दुष्यंत सिंह जैसा जादूगर मौजूद है। यानि भाजपा फिजूल ही बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा पीटती रही। रॉबर्ट वाड्रा तो सक्रिय राजनीति में नहीं कूदे और दामादजी होने का ही पर्याप्त सुख भोगते रहे, लेकिन वसुंधरा राजे के करतबी कारोबारी पुत्र दुष्यंत सिंह तो बकायदा झालावाड़ से निर्वाचित भाजपा सांसद हैं।
अब देश की निगाह प्रधानमंत्री के उन बयानों पर भी टिकी है, जिसमें वे स्वच्छ और पारदर्शी शासन देने के दावे करते हुए खम ठोंककर अपने छप्पन इंची सीने के साथ यह कहते रहे कि वे ना खाएंगे और ना खाने देंगे। हुजूर अब तो आपकी नाक के नीचे ही खाऊ ठिये खुल गए हैं। सुषमा-वसुंधरा पर ही कार्रवाई करके अपने दावों की लाज रख लो।
(लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार हैं और सांध्य दैनिक अग्निबाण से संबद्ध भी हैं।)