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हिन्दी गीत : सावन का बादल

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निशा माथुर 
मेरी आंखों के काजल-सा, मदिर सावन का बादल,
मस्ताना सा उड़ता है, आवारा, छिपता-दिखता है।
धुंधले कांच पर जमी धुंध सा, यादों को लिखता है, 
कलियों सा हंसता है, कभी मौसम सा रचता है।
 

 
बारिश की बूंद-बूंद को, अपनी मुट्ठी में कसता है, 
मेरी सांसों के बिस्तर पर, एक खुशबू सा बसता है। 
वो सावन का बादल, मेरी मृगतृष्णा को जीता है, 
मेये नयनों की भाषा की, कई चिट्ठियां लिखता है ।। 
 
रातों की कोरी चादर पर, झुनझुन नूपुर-सा बजता है, 
मन-मंदिर के आंगन पर, भोले बचपन सा खि‍लता है।
कनक थाल में चांद लिए, मेरे अहसासों को बुनता है, 
मेरी भीगी-भीगी जुल्फों में क्यों मादक बन हंसता है।
वो सावन का बादल, ख्वाहिशों का आचमन करता है, 
मेरे सपनों संग अठखेलियां और अभिसार करता है। 
 
मेरे लफ्जों की बंदिश में, सुर-रागों सा सजता है, 
मुझको हरपल सुनने-गुनने की, फुसरत में रहता है। 
ख्यालों की पोटली से मेरी, अल्फाजों को चुनता है, 
पुतली-पुतली आंख मिचौली, मेरी नींदों में जगता है। 
वो सावन का बादल कभी, मेरे अधरों पे मचलता है, 
मेरी मुस्कान सजा दिल, सावन के बादल सा जीता है।। 

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