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मेरा ब्लॉग : मनु के मामा की शादी है...!

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शैली बक्षी खड़कोतकर

शैली बक्षी खड़कोतकर का ब्लॉग : मनु श्रृंखला 


 
'अरे... रे... मामा... मैं नहीं... प्लीज। मुझे नहीं आता डांस...' मनु की कातर दृष्टि मम्मा को खोज रही है। मनु के अनुनय-विनय का इतना ही असर हुआ कि हाथ खींचने के बजाय मामा ने उसे बाकायदा उठाया और थिरकते भाई-बहनों के बीच खड़ा कर दिया।

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सच है, भरत मामा की शादी का मनु को बहुत क्रेज था, पर ऐसे ‘स्वागत’ की तो उसने कतई कल्पना नहीं की थी। मम्मा तीन दिन पहले ही पहुंच गई थी। मनु ने पापा के साथ छोटे नाना के घर में कदम रखा ही था कि यह हादसा हो गया।
 
मनु के लिए इने-गिने चार लोगों के परिवार से इतर ननिहाल के विशालकाय कुनबे में जाना ही अपने-आप में बड़ा बदलाव हो जाता है। मनु छोटा था तो अपने राम मामा के अलावा बाकी सारे मामाओं में कन्फ्यूज हो जाता। हर ट्रिप में एक नए मामा से साक्षात्कार होता, 'बेटू, ये श्रेयस मामा हैं, नीदरलैंड्स में हैं।'
 
'पर ये तो गोवा में रहते हैं न?'
 
'नहीं, वो सुयश मामा हैं।'
 
'मम्मा, जब ऐसी जम्बो साइज फैमिली हो तो कम से कम नाम तो कन्फ्यूजिंग नहीं रखने चाहिए न? इससे तो संस्कृत के शब्द-रूप याद रखना आसान है।' बाद में मनु का एक्सपर्ट कमेंट।
 
खैर, धीरे-धीरे मनु न सिर्फ नाम बल्कि गुण, धर्म, विशेषताओं से भी परिचित होता गया। फिर भी हर ट्रिप में कुछ सरप्राइज तो उसे मिल ही जाता है, जैसे अभी हुआ।
 
'मम्मा आपने बताया नहीं आज संगीत है।' मनु मम्मा को क्षणभर को अकेला पाकर कुनमुनाया।
 
'अरे, ऐसा कोई फॉर्मल प्रोग्राम थोड़ी है।' 
 
मनु ने देखा, घर का हॉल और अनौपचारिक-सा माहौल। कोई दीवान पर पसरा है, कोई मुड्ढे पर टिका है, तो कोई सीढ़ियों पर जा चढ़ा है। कोई गीत शुरू करता है, तो दूसरा स्टूल पर ताल देने लगता है, कोई हिप-हॉप की कोशिश करता है, तो दूसरा उसमें भांगड़ा का तड़का लगा देता है।
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भजन से होती हुई महफिल अब 50-60 के स्वर्णिम दौर की ओर मुड़ चली है। किशोर दा, मुकेश, लता दी... 'यार इन लोगों की मेमोरी गजब है, इतने गानों के लीरिक्स कैसे याद रहते हैं, पूछना पड़ेगा। बायो रटने में काम आएगा।' मनु सोनू के कान में फुसफुसा रहा है। 
 
तभी नन्ही सान्वी ने डांस की इच्छा जाहिर की और युवा वर्ग डांस के लिए नेट पर अपने पसंद के गीत तलाशने में जुट गया।
 
ट्रैक बज रहा है, ‘उड़ी जब-जब जुल्फें तेरी...’ और सीनियर सिटीजन अपना स्थान छोड़ने को विवश हैं। हर कोई खुश है, थिरक रहा है, मस्ती में मगन है। निर्मल आनंद की एक हिलोर-सी उठी है, जो मनु को भी छू रही है, हौले-से।
 
'मम्मा, मैंने फर्स्ट टाइम इतना डांस किया है। थक गया, यार। अच्छा, गुड नाइट, मैं हॉल में सोऊंगा सबके साथ।'
 
अगले दिन मनु फॉर्म में आ चुका है, 'नाना, मैंने सारे लगेज पर स्टिकर्स लगा दिए हैं।' 'मौसी, मैं सर्व करूं।' 'मैं ड्रॉप करता हूं न भैया को, मुझे आती है स्कूटी चलाना।' मनु के समझदार होने के बाद घर की शादी का यह पहला अवसर है। 
 
आजकल के छोटे परिवार और व्यस्त जीवनशैली में बच्चे न रिश्ते समझ पाते हैं, न उनकी अहमियत। इसीलिए मम्मा यही चाहती थी कि मनु इस शादी में मेहमान की तरह नहीं, बल्कि घर के सदस्य की तरह शामिल हो, जुड़े और जुड़ाव महसूस करे। लहकते-महकते संबंधों की खुशबू से सराबोर हो। थिरकते रिश्तों की लय-ताल को समझे और चारों ओर पसरी आत्मीयता को दिल में सहेज ले।
 
मम्मा को विरासत में एक भरा-पूरा कुनबा मिला जिसकी शाखाएं अब भले ही देश-विदेश के सुदूर कोनों तक जा पहुंची हों, पर जड़ें यहीं गहरे तक समाई हैं, तभी तो शादी-समारोह में सारे ‍भाई-बहन खिंचे चले आते हैं और फिर होती है अनलिमिटेड मस्ती और धमाल।
 
'ए मनु, पता है, तेरी मम्मी ने एक बार हमको खूब पिटवाया था।' प्रीतीश मामा दांत निपोरकर हंस रहा है।
 
निशु मामा ने तुरंत शर्ट ऊपर कर अपने ठेठ नौटंकी वाले अंदाज में कोई चोट का निशान दिखाया, ‘सबूत अब भी बाकी है, मेरे दोस्त।' 
 
कुलदेवता की पूजा और खाने के बाद सब दोपहर को सुस्ता रहे हैं और भाई-बहन पुरानी यादों की जुगाली कर रहे हैं, हमेशा की तरह।
 
'ए, चल रे, तुम लोग तो वैसे भी आए दिन पिटते थे।' मम्मा ने प्रतिकार का प्रयास किया।
 
'मामा बताओ न... प्लीज।' मनु को मम्मा की बचपन की शैतानियां सुनने में ज्यादा मजा आ रहा है। (इसका सदुपयोग बाद में कैसे किया जाएगा, मम्मा खूब समझती है।)
 
'सुन..., हम सब गर्मी की छुट्टी में बड़े मामा के यहां रहने आए थे। पीछे एक अमराई थी...।' 

 
फिर तो किस्सों पर किस्सों का दौर चल पड़ा है। चुहलबाजी, नोकझोंक और खिलखिलाहटों से दीवार हिलने लगी है। बड़ी नानी तीन बार सबको झपकी में खलल डालने के लिए डपटने के बाद खुद आसन पर आ जमी हैं और किस्सों का कैलेंडर कुछ और पीछे सरक गया है। बच्चे अपने मम्मी-पापा का यह रूप देखकर परम आनंदित हैं।
 
वैसे मनु के मजे के और भी कारण हैं। शादी वाला घर, सो लड्डू, बर्फी, मिठाइयों से घर अटा पड़ा है। फिर सबका खास इंदौरी अंदाज, 'भाभी! नाकोड़ा के यहां गरम-गरम निकल रही थी जलेबी और कचोरी। दो-दो किलो तुलवा लाया बच्चों के लिए।' छोटे नाना सामान की थैली बड़ी नानी को थमा रहे हैं।
 
'ओफ ओ! मैंने तो आज आलू-टिकिया और गुलाब जामुन का प्रोग्राम रखा था।' छोटी नानी का अलग ही राग।
 
'तो वो भी खा लेंगे छोटी नानी। टेंशन लेने का नई।' मनु सब्जियों और फलों के चंगुल से मुक्ति का भरपूर लुत्फ उठा रहा है।
 
विवाह समारोह के दो दिन तो मम्मा-मनु जैसे अलग ग्रह के प्राणी हो गए हैं। मनु कहां है, क्या खा रहा है, कहां सो रहा है, मम्मा को कुछ पता नहीं। गाहे-बगाहे मामाओं के साथ दौड़ते-भागते या फिर छोटे अक्षत के साथ क्रिकेट खेलते नजर आ जाता है। बच्चे कौतूहल से नई मामी को घेरे बैठे हैं। 
 
'मनु, चलो बेटा!' 
 
पापा कार लेकर तैयार हैं जिसमें मिठाई-उपहार पहले ही रखे जा चुके हैं। मम्मा सबके गले लगकर विदा ले रही है। मनु ने देखा, मम्मा की आंखों में कुछ झिलमिला रहा है, पानी-सा, पारदर्शी। उसमें कितनी आकृतियां समा गई हैं।

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मनु ने मम्मा का हाथ थाम लिया है और उन्हें धीरे-धीरे कार की तरफ ले जा रहा है। पूरा परिवार कार की खिड़की के पास सिमट आया है। लाड़-दुलार, हिदायतें-वादे... कार रफ्तार ले चुकी है।
 
बहुत कुछ पीछे छुटने की कसक है, पर कुछ-कुछ समेट लेने का संतोष भी है। मनु के लिए, अटूट रिश्तों की विरासत...।

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