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मोबाइल का यूं बंद होना...

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मनोज लिमये

असीम फुर्सत वाले समय की फसल को काटने में जो औजार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वो है अपना टच वाला मोबाइल। व्हॉट्स ऐप, फेसबुक और कैंडी क्रश की कैंडियां तोड़ते-तोड़ते कब समय गुजर जाता है, इसका आभास ही नहीं होता है। गत सप्ताह पूरा आधा घंटा बीत गया, परंतु सामने रखे मोबाइल से एक भी प्रकार की आवाज सुनाई नहीं दी। 

मैंने अनजान भय के साथ जब उसे हाथ में उठाया तो मेरी आशंका निर्मूल नहीं थी। मोबाइल में किसी भी प्रकार का कोई नेटवर्क नहीं था। 3-4 घंटे गुजर जाने के बाद भी जब स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ तो मेरे हाव-भाव आईसीयू में भर्ती मरीज के समान हो गए। शाम के 6 बजे चौराहे पर स्थित मोबाइल दुकान पर मैं किसी याचक की भांति खड़ा था। मोबाइल वाला लड़का बेहद व्यस्त था।
 
उसने जैसे ही मेरी और भौंहें उचकाईं, मैंने लपककर कहा कि इसको जरा देख लेते। सुबह तक तो बढ़िया काम कर रहा था और कहीं गिरा-विरा भी नहीं।
 
अपने हाथ से लड़के ने मेरे हाथ से मोबाइल ले निर्ममता से उसे खोल मारा। लड़के ने उसमें ब्रश इत्यादि घुमाया फिर बैटरी निकालकर लगाई और फैसला सुनाने के अंदाज में कहा कि 'सिम नी ले रिया है आपका फोन।' 
 
उसके द्वारा कही गई इस अति-सारगर्भित बात को मैं समझ नहीं पाया। मेरे चेहरे के भाव से वो समझ गया कि मुझे समझ नहीं आया है। वो बोला कि 'सिम की प्रॉब्लम दिख री है, सिम को कंपनी में दिखाओ।'
 
उस लड़के के बताए मार्ग पर मैं तुरंत प्रशस्त होना चाहता था किंतु मुझे खयाल आया कि अपनी सिम तो सरकारी कंपनी वाली है और 'सरकारी समय' में ही इस समस्या का निराकरण हो सकता है। अगले दिन ठीक 10 बजे मैंने अपनी गाड़ी सरकारी एक्सचेंज के अहाते में पार्क कर दी। 
 
11 बजने के बाद धीरे-धीरे वहां रौनक बढ़ने लगी। पूछताछ का आरंभिक युद्ध जीतकर मैं एक अधिकारी के समक्ष बैठ गया। अधिकारी हर दृष्टि से 'सरकारी' था। उसने कुछ समय तक मेरी ओर देखा भी नहीं। मैं वहां मोबाइल का वजूद तलाशने गया था लेकिन मुझे मेरा वजूद ही खतरे में दिख रहा था।
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जैसे ही मेरी ओर उस अधिकारी की निगाहें मिलीं, मैंने कहा- 'साब ये सिम कल से काम ही नहीं कर रही है, परेशान हो गए हम तो।' मेरी कही बात से उसके चेहरे के भावों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।
 
उन्होंने मेरी सिम किसी अन्य फोन में लगाई और फिर लैंडलाइन से डॉयल करते हुए बोले- 'इस नंबर पर तो कोई रिस्पॉन्स ही नहीं है।' 
 
'साहब', मैंने नम्रता का प्रदर्शन कर कहा- 'जी वही तो मैं भी अर्ज कर रहा था श्रीमान से।'
 
अधिकारी बोला- 'अरे आप समझ नहीं रहे हैं। जब तक इस बात की तस्दीक नहीं होगी कि जो सिम आप लेकर आए हों, वो सिम वो ही है, जो नंबर आप हमें बता रहे हैं। तब तक कुछ नहीं हो सकता है।'
 
मैंने कहा- 'जब सिम खराब ही है तो उस पर फोन कैसे लगेगा जनाब? और सिम की पहचान कैसे हो सकेगी? आप तो उपाय बताओ?'
 
वे बोले- 'एक ही रास्ता है। शपथ पत्र बनेगा इस मैटर में।' 
 
मैंने घड़ी की ओर देखा। लगभग 1 बज रहा था।
 
मैंने कहा- 'जिला कोर्ट से बनवाकर लाता हूं।
 
वे बोले- 'आपको समय लग जाएगा, कल क्यों नहीं आ जाते?'
 
मेरी समझ में आ चुका था कि इतना प्रपंच अपने से होने वाला नहीं है। मैंने शहीद हो चुकी अपनी सिम को जेब-ए-सुपुर्द किया और नई सिम लेने के पवित्र भाव से अपनी पहचान संबंधी दस्तावेजों की छायाप्रति करवाने के लिए खुल्ले पैसे तलाशने लगा!

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