Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्योंकि मैं पिता हूं पाषाण नहीं

हमें फॉलो करें क्योंकि मैं पिता हूं पाषाण नहीं
webdunia

गरिमा संजय दुबे

पिता बनने पर ही जाने जा सके 
पिता होने के सुख 
और दुःख भी।
कहते है मां होना बहुत कठिन है 
पर पिता होना कहां सरल है?
अक्सर समझ लिया जाता हूं,
कठोर अपने अनुशासन के कारण।
नहीं हो पाता मुखर मां की तरह,
नहीं कर पाता व्यक्त अपनी ख़ुशी 
आंसू बहा कर, क्योंकि ऐसे ही 
कुछ नियम कायदे देखते सुनते 
आया हूं  अपने आस पास। 
बच्चे थोड़ी सी बात कर पूछने लगते
हैं मां के बारे में, पकड़ा देता हूं 
फ़ोन खुशी-खुशी मां  को ,
लेकिन करता हूं इंतज़ार,
कभी सिर्फ मेरे लिए ही आए फ़ोन 
और बात हो मेरी ही।
याद रहते हैं मुझे बेटी की पसंद के
सारे रंग, 
और बेटे की पसंद के सारे व्यंजन,  
जुटा लेता हूं सब उनके लिए ,
पर मां की तरह चहक-चहक कर 
यह बताने में कर जाता हूं संकोच 
कि यह मैंने किया है तुम्हारे लिए।
पता नहीं कैसे मां अपना किया बखान लेती है 
"देख यह लाई हूं, या यह बनाया है तेरे लिए"।
और मैं  नींव के पत्थर की तरह नहीं कर पाता
प्रदर्शित अपना प्रेम।
मां के साथ अद्वैत है तुम्हारा ,
मेरे साथ कहीं न कहीं द्वैत में रहते हो तुम, 
गले में बाहें डाले और माँ की गोद में रखे 
तुम्हारे सर, और बांहों को वैसे ही सहलाने का 
मन मेरा भी होता है, लेकिन ठहर जाता हूं,
और देखकर ही खुश हो जाता हूं,
तुम दोनों की आंखों में छलकती ख़ुशी ।
हां  तुम सबकी आंखें ख़ुशी से छलकती 
रहे इसीलिए तो अपनी आंखों में भर 
लिया है कुछ रूखापन, कुछ कठोरता ,
लेकिन सच मानो मेरे अंदर भी बहता 
है एक झरना भावनाओं का ,
ठीक तुम्हारी मां की तरह ,
क्योंकि मैं पिता हूं  
पाषाण नहीं ।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

फादर्स डे स्पेशल : पहेली