कांग्रेस के किसी भी अखिल भारतीय अधिवेशन के किसी एक सत्र में इस तरह का सन्नाटा शायद पहले नहीं व्यापा होगा जैसा 26 फरवरी 2023 को रायपुर में पसर गया था। देशभर से जमा हुए कोई पंद्रह हज़ार डेलीगेट्स, इनसे कई गुना ज़्यादा वे जो रायपुर नहीं पहुंच पाए होंगे और इन सबके साथ वे करोड़ों देशवासी जो टीवी के पर्दों पर उत्सुकता के साथ नज़रें और कान लगाए उम्मीद कर रहे थे कि बावन-तिरपन साल का दाढ़ी वाला जो शख़्स बिना कोई काग़ज़ देखे मंच से बोल रहा है किसी भी पल कोई बड़ा राजनीतिक तहलका मचा सकता है!
राहुल गांधी बोल रहे थे और लोग चुपचाप सुनते जा रहे थे।ऐसा लग रहा था जैसे राहुल अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान सड़क के दोनों ओर खड़े लोगों के साथ बतिया रहे हों, उनका दुख-दर्द बांट रहे हों, बता रहे हों कि देशवासियों ने उन्हें रास्ते में किस तरह अपनी ज़िंदगी से जुड़ी कहानियां सुनाईं। इन मिलने वालों में कैसे वह औरत भी शामिल थी जिसका पति उसे पीटता है और वह उससे बचकर राहुल से मिलने पहुंची थी। कैसे यात्रा के प्रारंभ में ही केरल में नौकायन के दौरान कॉलेज की पढ़ाई के दौरान घुटने में लगी पुरानी चोट का दर्द उभर आया था, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
राहुल जब बोल रहे थे, मां सोनिया गांधी उनकी तरफ़ नहीं देख रहीं थीं। वे ऐसा जान-बूझकर कर रहीं थीं।राहुल ने रुककर कहा भी कि मां उनकी ओर नहीं देख रहीं हैं।सोनिया गांधी ने फिर भी अपना चेहरा बेटे की तरफ़ नहीं किया। वे शायद चेहरे पर लगे मॉस्क के पीछे आंसुओं को समेटे बेटे द्वारा अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' पर लिखी गई चार हज़ार किलोमीटर लंबी कविता के शब्दों में डूब गईं थीं। वे बेटे के मुंह से उस कश्मीर घाटी की वादियों में मिली हज़ारों लोगों की मोहब्बत का ज़िक्र सुन रहीं थीं, जहां से निकलकर नेहरू परिवार के वंशज कभी मैदानी इलाक़ों में पहुंचे होंगे।
राहुल गांधी ने अपने पैंतालीस-पचास मिनट के भाषण में ज़्यादा कुछ नहीं कहा। कोई ग़ुस्सा नहीं ज़ाहिर किया। प्रधानमंत्री को लेकर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की। इतने बड़े और ऐतिहासिक अवसर का कोई राजनीतिक अथवा चुनावी लाभ लेने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की।
राहुल गांधी ने सिर्फ़ एक छोटी सी बात कही! वह यह कि 1977 में भी उनके पास कोई मकान नहीं था। तब वे सिर्फ़ छह साल के थे और आज भी कहीं कोई घर नहीं है।इलाहाबाद का पुश्तैनी मकान (आनंद भवन) भी उनका नहीं है। नई दिल्ली में तुग़लक़ लेन स्थित घर भी उनका अपना नहीं है।
राहुल गांधी ने देश की हुकूमत और रायपुर में उपस्थित कांग्रेसजनों के लिए घोषणा की कि अब भारत की सड़कें ही उनका घर बनने वाली हैं। इसी घर के अहातों में वे 'भारत जोड़ो यात्रा' के दिनों की तरह देश के अमीर और ग़रीब हरेक देशवासी से मुलाक़ातें करेंगे। कांग्रेस के हज़ारों कार्यकर्ताओं के साथ अपनी इस तपस्या को वे तब तक जारी रखेंगे, जब तक कि उनके द्वारा संसद में पूछे गए सवालों के जवाब नहीं प्राप्त हो जाते।
राहुल ने कहा कि देश की आज़ादी की लड़ाई भी सिर्फ़ एक (ईस्ट इंडिया) कंपनी द्वारा जारी की गई भारत की लूट के ख़िलाफ़ संघर्ष से प्रारंभ हुई थी।इस समय इतिहास फिर अपने आपको दोहरा रहा है।देश के हितों के ख़िलाफ़ अगर कोई काम होगा, कांग्रेसजन अपना खून-पसीना बहा देंगे। प्रधानमंत्री को बताना ही पड़ेगा कि अडाणी के साथ उनका रिश्ता क्या है? सचाई जब तक सामने नहीं आ जाती सवाल पूछते रहेंगे। राहुल ने जब अपना बोलना बंद किया, तब सोनिया गांधी का चेहरा बेटे की ओर था और वे गर्व के साथ तालियां बजा रहीं थीं।