Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बड़ी चुनौती किसके सामने? मोदी के या राहुल के?

हमें फॉलो करें बड़ी चुनौती किसके सामने? मोदी के या राहुल के?
webdunia

श्रवण गर्ग

Lok Sabha Elections 2024: ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ पर मोदीजी अगर अन्य आसनों के साथ ‘शवासन’ की मुद्रा में भी कुछ समय के लिए गए होंगे तो उनके मन में किस तरह के विचार उठे होंगे? चुनाव के नतीजों के बाद उनका यह पहला योग दिवस था और उसे उन्होंने श्रीनगर में मनाया था। नियमित रूप से योगाभ्यास करने वाले कुछ लोग इस आसन के पहले चरण में आत्मा को शरीर से मुक्त कर परमात्मा से साक्षात्कार करते हैं और कुछ समय बाद वापस शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। कुछ अन्य अभ्यासी आत्मा को शरीर से अलग कर शरीर के इर्द-गिर्द चलने वाले सांसारिक घटनाक्रम का ऊपर से अवलोकन करते हैं। कुछ अन्य इतने थके होते हैं कि इस आसन के दौरान गहरी निद्रा में लीन हो जाते हैं। 
 
भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त होने में लगभग उतनी ही सीटें कम पड़ीं जितनी कि नई सीटें अखिलेश यादव ने पिछले चुनाव के मुक़ाबले भाजपा-बसपा से इस बार छीन लीं। यूपी की सीटों ने दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की दुनिया बदल डाली। सब लोग अचानक से मोदीजी के पीछे पड़ गए। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बिना नाम लिए क्या-क्या नहीं कह डाला! उन्होंने जो नहीं कहा उसकी संघ के अंग्रेज़ी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ के आलेख ने भरपाई कर दी! राहुल गांधी ने कह दिया मोदीजी मनोवैज्ञानिक रूप से टूट चुके हैं। ‘टूट जाने’ के लिए उन्होंने अंग्रेज़ी शब्द ‘क्रिपल्ड’ का उपयोग किया। राहुल गांधी ख़ुद भी अच्छे से जानते हैं कि विजय और पराजय के बीच क्या फ़र्क़ होता है!
 
पिछले (2019) चुनाव में तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस को देश भर से सिर्फ़ 52 सीटें मिल पाईं थीं। राहुल तब पार्टी अध्यक्ष थे और प्रियंका पूर्वी यूपी की प्रभारी। राहुल अपनी अमेठी की सीट भी नहीं बचा पाए थे। कांग्रेस को यूपी की कुल 80 सीटों में सिर्फ़ एक रायबरेली की मिली थी। इस बार तो जैसे सपा और कांग्रेस दोनों का ही यूपी में भाग्योदय हो गया।
 
राहुल की याददाश्त में हमेशा बना रहेगा कि 2019 की पराजय के बाद कांग्रेस का लगभग हर बड़ा नेता उनके पीछे पड़ गया था। पार्टी के असंतुष्टों द्वारा तब हार के कई कारणों में एक यह भी गिनाया गया था कि कांग्रेस ‘एक परिवार’ की चार दीवारों के भीतर ही सिमट कर रह गई है। राहुल के अहंकार की चर्चा तब इस रूप में की गई कि उनसे मुलाक़ात कर पाना ही असंभव है। पार्टी के अंदर असंतुष्टों का ‘ग्रुप ऑफ़ 23’ बन गया। उस ग्रुप में वे नेता भी शामिल थे जो आज ‘राहुल गांधी ज़िंदाबाद’ के नारे लगा रहे हैं।
 
पिछले पांच सालों के दौरान राहुल ने न सिर्फ़ ख़ुद को निराशा के दौर से बाहर निकाला, कांग्रेस को भी फिर से खड़ा कर दिया। वे तमाम चुनावी विश्लेषक जो कांग्रेस के लिए 40 से कम सीटें गिना रहे थे 4 जून के नतीजों के बाद से भौचक हैं। ममता ने भी कांग्रेस के लिए इतनी ही सीटें गिनी थीं।
 
अपनी तमाम उपलब्धियों के बावजूद कांग्रेस को अभी इसलिए ज़्यादा खुश नहीं होना चाहिए कि 12 राज्यों की 337 सीटों में उसे सिर्फ़ 26 सीटें ही हासिल हुईं। इनमें भी 8 राज्यों की 128 सीटों में से सिर्फ़ 3 सीटें मिलीं। 5 राज्यों (एमपी, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, आंध्र) में उसे एक भी सीट नहीं मिली! तीन राज्यों (छत्तीसगढ़, उड़ीसा, गुजरात) में एक-एक सीट और एक अन्य राज्य (बिहार) में तीन सीटें मिलीं। एमपी और छत्तीसगढ़ कांग्रेस की हुकूमत वाले राज्य रहे हैं। साल 2018 के चुनावों में कांग्रेस एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को हरा चुकी है। हिमाचल में तो अभी कांग्रेस की ही सरकार है।
 
राहुल गांधी के सामने चुनौती यह है कि उन्हें कांग्रेस को भी मज़बूत करना है और गठबंधन के दलों को भी एकजुट रखना है। वे ममता और केजरीवाल पर उतना भरोसा नहीं कर सकते जितना स्टालिन, अखिलेश और तेजस्वी पर कर सकते हैं। आम आदमी पार्टी ने संकेत दे दिए हैं कि वह हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ सीटों का समझौता नहीं भी कर सकती है! लोकसभा चुनावों में उसने पंजाब में समझौता नहीं किया था। ममता ने भी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों के साथ सीटें नहीं बांटी थीं। नीतीश के ‘इंडिया गठबंधन’ छोड़ने के पीछे भी मुख्य भूमिका इन्हीं दो नेताओं की रही थी।
 
मोहन भागवत द्वारा बिना नाम लिए की गई मोदी की आलोचना में संघ के दो प्रकार के डरों को पढ़ा जा सकता है। पहला तो यह कि मोदी ने अपनी व्यक्तिगत छवि को भाजपा से इतना बड़ा कर लिया है कि उसके (छवि) ध्वस्त होते ही पार्टी भी बिखर जाएगी और फिर से इसलिए नहीं खड़ी हो पाएगी कि मोदी ने किसी भी अन्य नेता को अपने समकक्ष उभरने ही नहीं दिया। दूसरा डर यह कि राहुल का अगला बड़ा हमला संघ के ख़िलाफ़ हो सकता है। 
 
राहुल और इंडिया गठबंधन के लिए आगे की सफलता इसी बात में छुपी है कि अगले महीने सात राज्यों की 13 रिक्त विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों और साल की अंतिम तिमाही में होने वाले महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा विधानसभाओं के चुनावों से लोकसभा के नतीजों की पुष्टि होती है या नहीं! चार जून के नतीजों में भाजपा को यूपी और राजस्थान के अलावा इन्हीं राज्यों से धक्का लगा था। मोदी ने विधानसभा चुनावों की तैयारियां प्रारंभ भी कर दी हैं।
 
हक़ीक़त यह है कि राहुल ने कांग्रेस की सीटें 52 से बढ़ाकर 99 (इंडिया 234) तो कर दीं पर भाजपा की फिर भी 240 (एनडीए 293) हो गईं। ऐसा तब हुआ जब कोई पुलवामा-बालाकोट नहीं हुआ था, विपक्ष पूरी तरह से संगठित था और सरकार के ख़िलाफ़ मुद्दों में जनता उसके (विपक्ष के) साथ थी। अतः सवाल यह है कि आगे आने वाले समय में ज़्यादा बड़ी चुनौती किसके सामने मानी जानी चाहिए? राहुल गांधी के या नरेंद्र मोदी के? (ये लेखक के अपने विचार है, वेबदुनिया का इससे सहम‍त होना जरूरी नहीं है) 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

इन 11 टिप्स की मदद से करें आंखों की थकान दूर, जानें आसान उपाय