पृथ्वी अपनी पीड़ाओं का इलाज करना जानती है। कुदरत अपने घाव खुद भर लेती है। लेकिन कभी ना खत्म होने वाले इंसानी स्वार्थ के बार-बार किए जा रहे प्रहार धरती का सीना छलनी करने लगे हैं। हवा-पानी से लेकर पहाड़ और जीव-जंतुओं से लेकर जंगलों तक, अपने सुख के लिए हम प्रकृति के हर पहलू को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पशु-पक्षी-पेड़-पौधे सभी हमारी ज्यादती झेल रहे हैं। जबकि इस धरती की गोद से रिसते नेह की नमी पर उनका भी हक़ है।
सबकी साझी है यह धरती पर हम तो हवा, ज़मीन और पानी हर जगह मनमर्ज़ी चला रहे हैं। बावजूद इसके पृथ्वी खुद को संवारती रहती है। मानो बच्चों की गलतियां माफ़ कर धरती मां सांस लेने को हवा और जीने को अन्न-जल दे रही हो। ऐसे में सरकारें और समाज बस इतनी कोशिश करें कि पर्यावरण का कोई बिगाड़ ना हो। सरोकार भरी यह सोच धरती की सुन्दरता बचाने को काफी है।
हम गंदगी ना फैलाएं तो नदियां खुद को साफ़ रखना जानती हैं। इंसानी गतिविधियां धुएं का गुबार ना छोड़ें तो हवा अपनी स्वच्छता बनाए रखना जानती है। सच तो यह है कि खुद को ही नहीं अपने बच्चों को बचाने का काम भी कुदरत बखूबी जानती है। बस, हम बच्चे प्रकृति के आंगन को दोहन के घाव ना दें।