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जायरा वसीम का माफीनामा

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अवधेश कुमार

फिल्म दंगल में गीता फोगाट की भूमिका निभाने वाली जम्मू कश्मीर की जायरा वसीम के फेसबुक पेज पर माफीनामा पोस्ट देखकर या उसके बारे में सुनकर देश के वे सारे लोग हतप्रभ रह गए, जो किसी के उसका प्रोफेशन चुनने की या किसी प्रकार की मान्य आजादी के समर्थक हैं। हालांकि उस माफीनामे पर देश भर में मचे तूफान के बाद कुछ ही घंटे अंदर इसे हटा भी दिया। किंतु यह नौबत आई ही क्यों, कि उसे माफी मांगने वाला पोस्ट लिखना पड़ा? पोस्ट हटाने का कारण देते हुए उसने लिखा है कि उस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं है। यह बात आईने की तरह साफ है कि माफीनामा लिखने और उसे हटाने, दोनों में अलग-अलग प्रकार का दबाव उसके पीछे काम कर रहा था। 


एक दिन पहले जो लड़की टीवी चैनलों को साक्षात्कार देते फूले नहीं समा रही थी। वह कह रही थी कि जब लोग प्रशंसा करते हैं कि मैंने अच्छा काम किया, लोग साथ में तस्वीरें खिंचवाते हैं, तो गर्व महसूस होता है। वही लड़की अपने पोस्ट में यह लिख रही है- कि मैं जो कुछ कर रही हूं उससे मुझे गर्व महसूस नहीं होता! वह लिखती है कि उसे रोल मॉडल बनाकर जो पेश किया जा रहा है, वह गलत है... वह युवाओं की रोल मॉडल नहीं हो सकती। जो वास्तविक हीरो हैं उनके बारे में युवाओं को बताया जाए, वे ही रोल मॉडल हो सकते हैं। उसने लिखा कि यह एक खुली माफी है। ....मैं उन सभी से माफी मांगना चाहती हूं जिन्हें मैंने अनजाने में दुखी किया। मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि मैं इसके पीछे उनके जज्बात समझती हूं। खासतौर से पिछले 6 महीनों में जो हुआ, उसके बाद। 
 
कोई भी समझ सकता है कि यह सामान्य वक्तव्य नहीं है। इसके पीछे गहरा मनोवैज्ञानिक दबाव और उससे पैदा अवसाद नजर आता है। आखिर उस 16 साल की लड़की ने ऐसा क्या कर दिया, कि उसे इस तरह का माफीनामा लिखने को मजबूर होना पड़ा? कुछ लोगों का मानना है कि उसने जैसे ही मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती से मुलाकात की, उसकी ट्रोलिंग आरंभ हो गई, लोग उसके खिलाफ तरह-तरह के कमेंट करने लगे। इसमें उसे लगा कि उसके पास माफीनामा लिखने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। यह सच है किंतु इससे बड़ा सच यह है कि जम्मू कश्मीर के कट्टरपंथी तत्व पहले से ही फिल्म में उसकी भूमिका के खिलाफ थे। जब दंगल चल निकली और जायरा की प्रशंसा होने लगी, उसकी तस्वीरें और साक्षात्कार अखबारों में छपने लगे, टीवी पर वह दिखने लगी तो कट्टरपंथियों का पारा चढ़ने लगा। उन लोगों ने बाजाब्ता सोशल मीडिया एवं बाहर उसके खिलाफ अभियान चलाया है। वो सिनेमा को और उसमें निभाई गई भूमिका को मजहब के विरुद्ध बता रहे हैं। पूरा माहौल उसके खिलाफ बना दिया गया। इसी बीच उसकी मुख्यमंत्री से मुलाकात होती है और मुख्यमंत्री अपने एक भाषण में कई युवाओं के साथ उसका नाम लेकर कहतीं हैं कि हमारे प्रदेश की युवक-युवतियां कई क्षेत्रों में अच्छा काम कर रही हैं उसके बाद मानो तूफान आ गया। यह वर्ग इस बात को सहन नहीं कर सका कि फिल्म में काम करने वाली एक लड़की को इतना महत्व मिले और उसे रोल मॉडल बताया जाए! फिर ऐसी स्थिति पैदा की गई कि कल तक खुशियों से उछल रही और अपने काम पर गर्व महसूस कर रही 16 साल की इस लड़की को माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। 
 
भारत जैसे देश में यह कौन वर्ग है, जो इस तरह का वातावरण तैयार कर रहा है कि कोई युवक-युवती चाहकर अपने मनमाफिक काम का चयन न कर सके? आखिर उसने कौन-सी गलती की जिसे उसे स्वीकार करना पड़ा है? जरा सोचिए न, किस मानसिकता में उसने लिख होगा कि लोगों को याद होगा कि मैं सिर्फ 16 साल की हूं। मुझे लगता है कि आप मुझे वैसे ही समझेंगे। मैंने जो किया उसके लिए माफी मांगती हूं, मगर यह मैंने जानबूझकर नहीं किया। शायद लोग मुझे माफ कर सकेंगे।..... मुझे कश्मीरी यूथ के रोल मॉडल की तरह प्रोजेक्ट किया जा रहा है। मैं साफ कर देना चाहती हूं कि मेरे नक्शे कदम पर चलने या मुझे रोल मॉडल मानने की जरूरत नहीं है। कल्पना कीजि‍ए, कितना दबाव होगा उस पर! उसने मेहनत से अपना स्क्रीन टेस्ट दिया, फिर चयन के बाद पूरी मेहनत से फिल्म में पहलवान गीता फोगट की भूमिका निभाई। अपने बेहतरीन अभिनय से उसने साबित किया कि उसके अंदर अभिनय की प्रचुर प्रतिभा भरी हुई है। एक स्वस्थ समाज का तकाजा तो यह था, कि जगह-जगह उसकी वाहवाही होती और उसे प्रोत्साहन दिया जाता ताकि कश्मीर जैसे प्रदेश में युवाओं को नई दिशा में सोचने और अपनी प्रतिभा के अनुसार आगे बढ़ने के लिए परिश्रम और प्रयास करने की प्रेरणा मिले। लेकिन इसका उल्टा हो रहा है।
 
आप टीवी पर होने वाली बहस को सुन लीजिए। कश्मीर से टीवी पर बैठे शख्स फिल्मों को बेहयाई और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं। यहां तक कि कुश्ती को भी औरतों के खिलाफ साबित किया जा रहा है। पूरा माहौल उसके खिलाफ बना दिया गया है, ताकि वह तो आगे से फिल्म में काम करने की जुर्रत नहीं ही करे, कोई दूसरा भी ऐसा करने का साहस न कर सके। विचित्र तर्क है। इनको शायद नहीं मालूम कि दुनिया के मुस्लिम देशों में बाजाब्ता फिल्में बनतीं हैं और उसमें पुरुष के साथ महिलाएं भी काम करतीं हैं। उनके लिए यह मजहब विरोधी नहीं है, तो जम्मू कश्मीर के कुछ कठमुल्लों के लिए यह कैसे हो गया? पूरी दुनिया के मुस्लिम देशों की लड़कियां कुश्तियों सहित अन्य खेलों में भाग लेती हैं और उनका वस्त्र वही होता है जो अन्यों का। उनको तो कोई आपत्ति नहीं! फिर जम्मू कश्मीर में इस पर आपत्ति क्यों? जो आपत्ति करने वाले हैं, आपत्ति तो उनके व्यवहार पर होनी चाहिए। कुछ महीने पहले कश्मीर के प्रगाश गर्ल बैंड के साथ ऐसा ही हुआ था। उन्हें भी गाने से रोका गया था। गीतकार जावेद अख्तर ने सही लिखा है कि जो छतों पर खड़े होकर आजादी के नारे लगाते हैं वो दूसरों को आजादी नहीं देते। शर्म आती है कि जायरा को अपनी कामयाबी पर भी माफी मांगनी पड़ रही है।
 
यह अच्छी बात है कि ऐसे काफी लोग जायरा वसीम के साथ खड़े हो गए हैं। उसे कहा जा रहा है कि उसने कुछ गलत नहीं किया है कि उसे माफी मांगनी पड़े। उन कट्टरपंथियों की लानत-मलानत हो रही है। किंतु वे मानने को तैयार नहीं है। जाहिर है, उनका और जोरदार तरीकों से विरोध करना होगा ताकि इसमें जायरा जैसी लड़कियां और उनका परिवार पराजित महसूस न करें।
 
 कश्मीर में कट्टरपंथियों के विचारों के विपरीत एक नई हवा भी दिख रही है। बोर्ड परीक्षाओं में भारी संख्या में छात्र-छात्राएं शामिल होते हैं। कोई प्रशासनिक सेवा में जा रहा है तो कोई सीआरपीएफ के कमांडेट में वरीयता प्राप्त करता है, कोई क्रिकेट में आगे आ रहा है और कोई फिल्म में। इस बदलती हुई हवा को ताकत दिए जाने की जरुरत है। ज्यादा से ज्यादा युवक-युवतियां वहां से अपने मनोनुकूल पेशे और नौकरियों में जाएं तो उससे देश और समाज के प्रति उनकी सोच बदलेगी और उससे भारतीय और दुनियावी समाज के साथ उनका एकीकरण होगा। कट्टरपंथी और कठमुल्ले तो मानने वाले नहीं। वो अपना काम करें और हम अपना काम करें। पूरा देश उनके खिलाफ और जायरा के समर्थन में सक्रिय रुप से खड़ा हो। जायरा और उसके परिवार को यह विश्वास हो जाए कि देश उनके साथ है और कट्टरपंथी बोलने के अलावा उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। यह हम सबका दायित्व भी है। ऐसा वातावरण बनाकर ही हम जायरा जैसी लड़कियों की काम करने की आजादी सुनिश्चित कर सकते हैं। जिस तरह अभी 16 साल की वो लड़की और उसका परिवार दबाव में आ गया है उससे बाहर निकाला जाना जरुरी है, अन्यथा दूसरा ऐसा करने का जल्दी साहस नहीं करेगा। यह केवल उनकी नहीं हम सबकी, पूरे देश की पराजय होगी।

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