राजस्थान में नागपंचमी या नागपूजा का पर्व श्रावण मास की कृष्ण पंचमी के दिन मनाया जाता है। इसके लिए नाग-नागिन की चांदी या तांबे की प्रतिमा का पूजन अर्चन कर, नाग देवता को प्रसन्न किया जाता है।
राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में चांदी सा तांबे की प्रतिमा की जगह रस्सी का उपयोग भी पूजन में किया जाता है। यदि कोई प्रतिमा निर्माण नहीं करवा सकता, तो वह रस्सी में 7 अलग-अलग गांठें लगाकर प्रतीक स्वरूप नाग देवता की पूजा करता है।
इस दिन घर में पूजन अर्चन के अलावा, सपेरे को नाग देवता के निमित्त दूध, मिष्ठान्न के साथ अन्य सामग्री देने का भी विधान है। संभव होने पर नाग की बांबी का पूजन कर उसकी मिट्टी को अपने घर में लाया जाता है। इस मिट्टी में कच्चा दूध मिलाकर इससे घर के चूल्हे पर नाग देवता की आकृति बनाई जाती है। नाग देवता की बनी इस आकृति का श्रद्धा के साथ पूजन होता है।
इसके बाद बांबी से लाई गई मिट्टी को थोड़ा सा बचा लिया जाता है, और इसमें अन्न के बीज बोए जाते हैं। बांबी से लाई गई मिट्टी में अन्नबीज बोने की इस प्रथा को खत्ती गाढ़ना कहा जाता है।
राजस्थान के कुछ इलाकों में नागपंचमी के दिन पूजन के अलावा, भीगा हुआ बाजरा या मोठ खाने का भी रिवाज है। इन परंपराओं का आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन किया जाता है।