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नागपंचमी : आओ लें संकल्प प्रकृति और नागों की सुरक्षा का...

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राजश्री कासलीवाल

नागपंचमी पर क्यों न पिलाएं नाग देवता को दूध..., जानिए 
 

 
भारतभर में पुराने समय से श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी पर्व के रूप में लोग बड़ी श्रद्धा और आस्‍था से मनाते आ रहे हैं। पहले नागपंचमी के दिन शहर की तमाम गलियों में 'सांप को दूध पिलाओ' की आवाजें सुनाई देती थीं, जो कि आजकल सुनाई नहीं देती हैं। 
 
इस संबंध में यह तर्क दिया जाता है कि बड़ी ही बेरहमी व अमानवीय तरीके से सांपों के दांतों व इसके विष को निकालने से इसका असर सर्प के फेफड़ों पर होने से कुछ दिन बाद इनकी मृत्यु हो जाती है और दांत निकालते समय 80 प्रतिशत सर्प मर जाते हैं। इस कारण वन विभाग की टीम द्वारा सपेरों पर सख्ती से नजर रखी जाती है ताकि नाग जाति की रक्षा हो सके। 
 
इतना ही नहीं, कई विशेषज्ञों ने भी सर्प को दूध पिलाया जाना गलत बताया है। उनके अनुसार सर्प के लिए दूध हानिकारक होता है, जबकि भारतीय पौराणिक परंपराओं के अनुसार वर्षों से नागदेव को लोग दूध पिलाते आ रहे हैं। गत कुछ वर्षों से नागदेव को दूध न पिलाने की अपील  की जा रही है। 
 
इसको कुछ लोग उचित मान रहे हैं तो कई लोगों का कहना है कि इस तरह की नई-नई वैज्ञानिक बातों को लाकर लोगों की श्रद्धा व आस्थाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है जिससे हमारी भारतीय संस्कृति की परंपराओं को नष्ट करने की योजना है।
 
सभी जानते और मानते हैं कि भारतीय संस्कृति में नाग पूजा की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन यह पर्व परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया  जाता है। 
 
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हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है, जहां धन-धान्य को प्रमुखता दी जाती है और ऐसे में लगभग एक-चौथाई खाद्य उपज प्रतिवर्ष चूहे व अन्य जीव नष्ट कर देते हैं। एक ओर, जहां नाग-सांप बड़े ही प्रभावी ढंग से चूहों का खात्मा कर उनकी आबादी को रोकते हैं, वहीं वे चूहों के बिलों में भीतर तक जाकर उनका सफाया करते हैं। चूहों की 80 प्रतिशत आबादी को सांप नियंत्रित करते हैं और ये हमारे अन्न को बचाते हैं। 
 
पौराणिक मान्यता है कि हमारी धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई है, लेकिन अगर वैज्ञानिक और जीवनचक्र के हिसाब से देखा जाए तो नाग/ सांप धरती पर जैविक क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नाग-सर्प प्रकृ‍ति के अनुपम उपहार हैं और उनका जीवन नष्ट होने से बचाना हमारा पहला कर्तव्य है अत: नागपंचमी के दिन नागों को दूध न पिलाकर उनकी रक्षा करना बहुत जरूरी है। यही दूध हम किसी गरीब-असहाय व्यक्ति को देकर जीवन में पुण्य भी कमा सकते हैं। 
 
वैसे भी बढ़ती आबादी वाले इस देश में जहां पर्यावरण अनियंत्रित हो रहा है, लोग वृक्षों को उजाड़कर वहां बड़ी-बड़ी मंजिलों का भवन निर्माण करने को प्राथमिकता दे रहे हैं, घरों में आने वाले कीट-जंतु को हम अपने आसपास भी भटकने नहीं देते, ऐसी परिस्थिति में वह दिन बहुत ज्यादा दूर नहीं है, जब हम ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस दुनिया को नष्‍ट करने में अहम भूमिका  निभाएंगे। 
 
ऐसी स्थिति से बचने के लिए ही हमें जहां अपने पर्यावरण और प्रदूषण के सुधार पर ध्यान देने के साथ-साथ कीट-जंतुओं को भी बचाने की आवश्यकता है और इसी कड़ी में हमें प्रकृति को बचाने के साथ-साथ नाग जाति की रक्षा करने की आवश्यकता है। नागपंचमी हो या अन्य कोई  भी दिन, हमें नाग समुदाय के जीवन का संरक्षण कर पुण्य के भागी बनना चाहिए अत: नागपंचमी के पावन पर्व पर हम नागों को दूध न पिलाने का प्रण लेकर वही दूध किसी जरूरतमंद को दें ताकि हम हमारी धरती, प्रकृति तथा प्रकृति के अनुपम एवं अमूल्य उपहार नागों/सर्पों की रक्षा कर सकें।
 
हम नागपंचमी का पर्व तो अवश्‍य मनाएं, उसके लिए हमें किसी जीव को हानि पहुंचाने की जरूरत नहीं है, बस जरूरत है तो सही मार्ग अपनाने की जिससे हम हमारी सुरक्षा के साथ-साथ प्रकृति, पर्यावरण, प्राणी जगत तथा सभी के जीवन की सुरक्षा का संकल्प लेकर किसी भी त्योहार का आनंद उठाएंगे तो निश्चित ही हमारी खुशी सौ गुना बढ़ेगी और जब हमारा मन प्रसन्न होगा, तो निश्चित ही इस बढ़ती आबादी वाले देश में भी हम अतिआनंद के साथ जीवन का लुत्फ उठा पाएंगे और हमारी आने वाली पीढ़ी-दर-पीढ़ी को सभी की सुरक्षा के प्रति जागरूक कर सकेंगे। 
 

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