प्रस्तुति : सुधीर शर्मा व धर्मेन्द्र सांगले
नाग को भगवान शिव का श्रृंगार माना गया है, लेकिन सनातन धर्म में नाग की पूजा भी की जाती है। विविध प्रकारों के देवताओं की तरह नाग पूजन होता है और इसके लिए पंचमी तिथि मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार नाग पूजन से पितरों की शांति भी होती है।
पं. कृष्णकांत उप्रैती 'भैयाजी' के अनुसार सनातन धर्म में सभी देवताओं को तिथि दी गई है। इसमें नागों की पूजा के लिए पंचमी तिथि मानी गई है। नाग दो शब्दों से मिलकर बना है 'ना', इसका अर्थ होता है नारायण और 'ग' का मतलब गति से माना गया है अर्थात नाग साधना से मनुष्य को नारायण गति प्राप्त होती है।
नाग पूजन से जीवन में सुख-समृद्धि, वैभव, सारी संपदाएं प्राप्त की जा सकती हैं। राहु-केतु को पितृ दोष का कारक माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि नाग पूजन से सर्प दोष और पितृ दोष दूर होता है। किसी भी जातक की जन्मकुंडली में अगर सर्प दोष या पितृ दोष हो तो किसी भी नाग मंदिर में जाकर कच्चे दूध से अभिषेक कर और श्रीफल चढ़ाकर नाग पूजन किया जा सकता है। नाग मंदिर नहीं हो तो शिव मंदिर में जाकर पंचमी के दिन पूजन किया जा सकता है।