Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गुरु नानक देव की जयंती

Advertiesment
हमें फॉलो करें गुरु नानक जयंती विशेष
गुरु नानक ने दिया समभाव का संदेश 

 
तोहिद की यह आवाज बुलंद करके वर्ण, वर्ग, पाखंड, आडंबर, ऊंच-नीच और कर्मकांड में जकडे़ इंसानों को झंझोड़कर उठाने वाले निरंकारी गुरु नानक थे। जिनका जन्म सन्‌ 1469 की कार्तिक पूर्णिमा को तलवंडी पंजाब में हुआ। युगांतकारी युगदृष्टा गुरुनानक का मिशन मानवतावादी था। उनका चिंतन मानवीय धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों का मूल आधार था।

इसीलिए उन्होंने संपूर्ण सृष्टि में मजहबों, वर्णों, जातियों, वर्गों आदि से ऊपर उठकर 'एक पिता एकस के हम बारिक' का दिव्य संदेश दिया। वे कहते थे कि इस सृष्टि का रचियता एक ईश्वर है। उस ईश्वर की निगाह में सब समान हैं।

गुरुजी जपुजी साहिब नामक वाणी में फरमाते हैं- 'नानक उत्तम-नीच न कोई।' गुरुजी समता, समानता, समरसता आधारित समतामूलक समाज की स्थापना के प्रबल पैरोकार थे। गुरुजी किसी धर्म के संस्थापक नहीं अपितु मानव धर्म के संस्थापक थे।

'नानक शाह फकीर/हिन्दू का गुरु मुसलमान का पीर'। एक मर्तबा गुरुजी सुलतानपुर के पास बेई नदी में स्नान करने गए तो काफी समय तक बाहर नहीं आए। लोगों ने समझा नानकजी पानी में डूब गए हैं। तीसरे दिन नानकजी प्रकट हुए। बाहर आते ही उन्होंने पहला उपदेश दिया था - 'न कोई हिन्दू न मुसलमान'।

webdunia
 
गुरुजी का कहना था- सारी सृष्टि को बनाने वाला एक ही ईश्वर है। हिन्दू और मुसलमान में अंतर नहीं है, ये एक ही खुदा के बंदे हैं। सभी धर्म श्रेष्ठ हैं। आवश्यकता है धर्म के सच्चे वसूलों को मन, वचन, कर्म से व्यवहार में लाने की। क्योंकि ईश्वर-खुदा के दर पर वही कबूल होगा, जिनका निर्मल आचरण होगा एवं कर्म नेक होंगे।

उन्होंने विभिन्न आध्यात्मिक दृष्टिकोणों के बीच सृजनात्मक समन्वय उत्पन्ना कर विभिन्ना संकुचित धार्मिक दायरों से लोगों को मुक्त कर उनमें आध्यात्मिक मानवतावाद और विश्व बंधुत्व के अनिवार्य संबंध स्थापित किए। गुरु नानक देवजी विलक्षण व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बहुमुखी प्रतिभा संपन्ना दरवेश थे। उनका दार्शनिक चिंतन गहरा था। उनका मिशन 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' का लोक परोपकारी मिशन था।

उन्होंने निरंकुशता, धर्मांधता, अंध विश्वासों, आडंबरों से जक़डी हुई उपासना की रूढ़िवादी औपचारिकता के कष्टप्रद भार को दूर कर धर्म के सत्य ज्ञान प्रकाश से सहज, सरल मार्ग प्रशस्त किया। जपुजी साहब में वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं- 'बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी सांप्रदायिकता में विश्वास नहीं करता, क्योंकि उसका संबंध विश्व धर्म के सत्यमर्म के साथ है।

गुरुजी ने अपनी वाणी में उच्चारित किया है- 'जैते जिया तेते बाटानु'। अर्थात संसार में जितने जीव हैं उतने ही पंथी हैं। किंतु मनुष्य केवल आत्म संयम और अपने मन को जीतने से विजय प्राप्त कर सकता है।

गुरुजी की मान्यता है कि इंसान अपने वर्ग भेदों से ऊपर उठकर सत्य मानव धर्म का निर्वाह कर सकता है। इस दिव्य विचारधारा को लेकर गुरुजी ने सर्व-धर्म-समभाव एवं सौहार्दता का लोक कल्याणकारी संदेश दिया।

- प्रीतमसिंह छाबड़ा

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi