सच खंड में निराकार परमात्मा का निवास है। वह सृष्टि की रचना करके उसकी देखभाल करता है और अपनी कृपा दृष्टि से निहाल भी करता है। वहाँ असंख्य खंड, मंडल और ब्रह्माण्ड हैं। यदि कोई कथन करना चाहे तो उसके अंत का कोई अंत नहीं है। वहाँ असंख्य लोकों के लोगों का आकार है।
जैसे-जैसे उसका हुक्म होता है उसके अनुसार ही सारा काम चलता है। जब वे देखते हैं तो आनंद विचार से प्रफुलित हो उठते हैं। हे नानक! उस अवस्था का वर्णन करना लोहे के समान कठिन और ठोस है। आह! पुनर्मिलन की अवस्था अवर्णनीय है।
हे प्यारे अपने आपको जीतने की भठ्ठी तपाओ अर्थात् इन्द्रियों और मन को विषय वासनाओं से दूर रखो, धैर्य रूपी सुनार बनो, सुमति का लौह-पिण्ड रखो और ज्ञान का हथौड़ा हो। भय की धौंकनी और तपस्या की अग्नि जलाओ। प्रेम भाव की प्याली हो जिसमें अमृत (मानुष देही) डालें। इस प्रकार सच्ची टकसाल में आप शब्द नाम का सिक्का बनाएँ।
याद रहे कि जिन पर उसकी अपार कृपा दृष्टि होती है वह ही इस कार्य में लगते हैं। हे नानक! वे सत् कर्ता की कृपा दृष्टि से निहाल हो जाते हैं अर्थात् वह सदैव-सदैव के लिए उसमें समा जाते हैं और कृतार्थ हो जाते हैं।
जगत का गुरु पवन है, पानी पिता है और धरती महान माता है। यह सारा जगत (बालकवत्) खेल रहा है और उसको दिन रूपी दाया खिलाता है और रात रूपी दाई सुलाती है। इस प्रकार सारे जगत का खेल चल रहा है। अच्छे बुरे कर्मों का वाचन धर्मराज (न्याय का राजा) भगवान की उपस्थिति में करता है। अपने-अपने कर्मों से कोई उसके निकट और कोई उससे दूर है। परमात्मा के लिए दूरी और समीपता का कोई प्रश्न नहीं है, वह सर्वत्र है। परंतु, जिन्होंने (इस खेल घर में) नाम का ध्यान किया है, वे सदा के लिए कठिन परिम अर्थात् नाम जपकर मनुष्य देही सफल कर गए।
हे नानक! उनके मुख वहाँ (सत्य खंड में) उज्ज्वल होते हैं अर्थात् वे जन्म-मरण से छूट जाते हैं और कितने ही उनके साथ (मोह-माया और आवागमन से) मुक्त हो जाते हैं।
साभार- (गुरु नानक देव की वाणी)